नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में संशोधन को लेकर शुरू हुआ बवाल अब थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(एबीवीपी) और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ(डूसू) ने पाठ्यक्रम संशोधन को लेकर आर्ट्स फैकल्टी पर सत्याग्रह शुरू कर दिया है.
एबीवीपी के इस प्रदर्शन को अकादमिक काउंसिल के सदस्य प्रोफेसर रसाल सिंह का भी समर्थन मिला और वह भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए. वहीं इस प्रदर्शन को लेकर डूसू के अध्यक्ष शक्ति सिंह ने कहा कि छात्र देश का भविष्य हैं, ऐसे में उन्हें जो पाठ्यक्रम पढ़ाया जाना चाहिए वो भारतीय संस्कृति और देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत होना चाहिए.
कॉउन्सिल में छात्रों को शामिल करें : शक्ति सिंह
शक्ति सिंह ने कहा कि किसी भी देश की संस्कृति और इतिहास उसके मनोविकास का मूल होता है और इसी संस्कृति से छेड़छाड़ की गई है. जो किसी भी परिस्थिति में हमें मान्य नहीं है. ऐसे में संस्कृति विरोधी वामपंथी मानसिकता को बढ़ावा देने वाले पाठ्यक्रम को डीयू का कोई छात्र नहीं अपनाएगा. उन्होंने कहा कि डूसू पक्षपात रहित और तथ्य आधारित पाठ्यक्रम के पक्ष में है. उन्होंने अकादमिक कॉउन्सिल में छात्रों को भी शामिल करने की भी मांग है, जिससे कि छात्र भी अपना पक्ष रख सकें.
छात्र विरोधी मनमानी बर्दाश्त नहीं : सिद्धार्थ यादव
इस सत्याग्रह को लेकर एबीवीपी दिल्ली के प्रदेश मंत्री सिद्धार्थ यादव ने कहा कि एग्जीक्यूटिव काउंसिल की छात्र विरोधी मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी. सिलेबस निर्धारित करने से पहले उस विषय को पढ़ाने वाले शिक्षकों से भी विचार-विमर्श नहीं किया गया और ना ही छात्रों से ही इस विषय को लेकर कुछ पूछा गया.
पाठ्यक्रम में राष्ट्र विरोधी विषयवस्तु है: रसाल सिंह
वहीं प्रदर्शन कर रहे एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को अकादमिक कॉउन्सिल के सदस्य प्रोफेसर रसाल सिंह का भी समर्थन मिला है. प्रोफेसर रसाल सिंह का कहना है कि इस पाठ्यक्रम संशोधन में कई विवादास्पद और राष्ट्र विरोधी विषयवस्तु है, जिनका हटना अनिवार्य है. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि अंग्रेज़ी में एक ऐसा पाठ डाला गया है जिसके जरिए वामपंथी दल यह बताना चाह रहे हैं कि 2002 के गुजरात में हुए दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसी प्रकार के अन्य संगठनों की अहम भूमिका रही है.
प्रोफेसर रसाल सिंह ने कहा कि यहां तक कि भारतीय संस्कृति की धरोहर हमारे मूलभूत तीज त्योहारों को भी निरर्थक, अंधविश्वास और संस्कृति के विरुद्ध करार दिया गया है. इस तरह की संस्कृति विरोधी, हिंसक मानसिकता से पूर्ण और देशद्रोही वाले पाठ्यक्रम को मान्यता देना देश, समाज और छात्र सभी के भविष्य से खिलवाड़ करना होगा. इसलिए मैं अकादमिक काउंसिल की बैठक में इस पाठ्यक्रम का विरोध किया था और आज भी वे इसके विरोध के समर्थन में खड़े हैं.