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सुनिए शीला को कैसे याद कर रहे हैं, उनके पहले मुख्य सचिव उमेश सैगल

शीला दीक्षित के निधन के बाद दिल्ली से जुड़ी उनकी पहचान को एक अलग रूप में देखा जा रहा है. लोग दिल्ली को शीला की दिल्ली कहने लगे हैं. यह दिल्ली शीला की दिल्ली कैसे बनी, इसे लेकर ईटीवी भारत ने शीला दीक्षित के कार्यकाल के पहले मुख्य सचिव उमेश सैगल से बातचीत की.

शीला दीक्षित etv bharat
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Published : Jul 23, 2019, 8:32 PM IST

Updated : Jul 23, 2019, 8:54 PM IST

नई दिल्ली: उमेश सैगल ने बताया कि वे 1998 से 2000 तक शीला दीक्षित के समय दिल्ली के मुख्य सचिव थे. पहली बार मुख्यमंत्री बनीं शीला दीक्षित को उस समय ज्यादा अनुभव नहीं था और वे इस बात को मानतीं भी थीं.

पूर्व मुख्य सचिव से खास बातचीत

उन्होंने बताया कि 2 महीने पहले वे उन्हें इंडिया हैबिटेट सेंटर में मिली थीं, लोगों से उन्होंने मेरा परिचय भी इसी रूप में कराया कि ये मेरे पहले मुख्य सचिव थे, जिन्होंने मुझे एडमिनिस्ट्रेशन सिखाया.

'शीला दीक्षित की विद्यार्थी वाली प्रवृत्ति कभी नहीं गई'
उमेश सैगल ने कहा कि शीला दीक्षित की विद्यार्थी वाली प्रवृत्ति कभी नहीं गई. वे हमेशा सीखना चाहती थीं. वे सभी आईएस ऑफिसर्स को इज्जत की नजर से देखती थीं. वर्तमान समय में खासकर दिल्ली में सरकार और ब्यूरोक्रेसी के बीच का टकराव जगजाहिर है.

हमने उमेश सैगल से जानने की कोशिश की कि क्या शीला दीक्षित के समय भी ऐसा ही माहौल था तो उन्होंने कहा 'उस समय ऐसा नहीं था. कुछ बाकी मंत्रियों के साथ ऐसा हो सकता था, लेकिन शीला दीक्षित का अफसरों के रिलेशन बहुत स्मूथ था. अगर कभी ऐसा कुछ होता भी था, तो वे उसे ऑफिस में भी डिसकस नहीं करती थीं, अपने घर ब्रेकफास्ट पर बुला लेती थीं और वहां उसे समझने की कोशिश करती थीं कि क्या मुद्दा है. अफसरों और मंत्रियों को समझाने और उन्हें समझने को लेकर उनका एक अलग शिष्टाचार था.'

'डीडीए के फंड को दिल्ली के विकास में लगाया'
शीला दीक्षित के ना रहने पर दिल्ली मेट्रो को लेकर उन्हें भी याद किया जा रहा है. इसे लेकर जब हमने उमेश सैगल से जाने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा कि उस समय मेट्रो का काम तो स्टार्ट नहीं हुआ था, लेकिन श्रीधरण की अपॉइंटमेंट हो गई थी. उस समय बिजली बहुत बड़ी समस्या थी, बिजली की चोरी बहुत होती थी. सड़कों का बुरा हाल था, फ्लाईओवर नहीं थे, सरकार के पास फंड का अभाव था.

डीडीए के पास पैसे थे और डीडीए का नियंत्रण उपराज्यपाल के पास था. उमेश सैगल ने बताया कि उस समय उपराज्यपाल के साथ शीला दीक्षित के अच्छे संबंध थे और इसी के बल पर उन्होंने डीडीए से हजारों करोड़ के फंड निकलवाकर दिल्ली में विकास कार्य शुरू कराए.

'विज्ञापन पर विश्वास नहीं करती थी शीला'
उमेश सैगल ने यह भी बताया कि 'केंद्र के साथ उन्होंने कभी भी अपने संबंध खराब नहीं होने दिए. केंद्रीय मंत्रियों के साथ हमेशा अच्छा संबंध बनाकर रखा. यहां तक कि जब केंद्र में बीजेपी की सरकार थी तब भी आज के जैसा माहौल नहीं था.'

उन्होंने यह भी बताया कि उस समय हर हफ्ते उपराज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री की एक मीटिंग होती थी, जिसमें मुख्य सचिव भी हुआ करते थे. बहुत सारे मामले उसी मीटिंग में सुलझा लिए जाते थे. शीला दीक्षित के वर्क कल्चर को लेकर उमेश सैगल ने बताया कि वे ज्यादा विज्ञापन निकाले में विश्वास नहीं करतीं थीं, ज्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं करती थीं. शीला दीक्षित का घर लोगों के लिए हमेशा खुला रहता था, खासकर उनके विधायक उनसे कभी भी मिल सकते थे.

'शीला के व्यवहार में कोई अंतर नहीं'
यह पूछने पर कि आपने शीला दीक्षित की सियासी शुरुआत भी देखी और उनके जीवन के अंतिम दिन में भी, दोनों में आपको क्या अंतर दिखा, तो उन्होंने कहा कि 'अभी 2 महीने पहले जब शीला दीक्षित से मिले थे, तब भी उनमें कोई अंतर नहीं दिखा आज भी वे वैसी ही थीं. उनके व्यवहार में कोई अंतर नहीं दिखा.' उन्होंने यह भी कहा कि भले ही अब उनके पास पावर नहीं थी, लेकिन उनके प्रति हमारे रेस्पेक्ट से पावर का कोई सम्बन्ध नहीं था.

नई दिल्ली: उमेश सैगल ने बताया कि वे 1998 से 2000 तक शीला दीक्षित के समय दिल्ली के मुख्य सचिव थे. पहली बार मुख्यमंत्री बनीं शीला दीक्षित को उस समय ज्यादा अनुभव नहीं था और वे इस बात को मानतीं भी थीं.

पूर्व मुख्य सचिव से खास बातचीत

उन्होंने बताया कि 2 महीने पहले वे उन्हें इंडिया हैबिटेट सेंटर में मिली थीं, लोगों से उन्होंने मेरा परिचय भी इसी रूप में कराया कि ये मेरे पहले मुख्य सचिव थे, जिन्होंने मुझे एडमिनिस्ट्रेशन सिखाया.

'शीला दीक्षित की विद्यार्थी वाली प्रवृत्ति कभी नहीं गई'
उमेश सैगल ने कहा कि शीला दीक्षित की विद्यार्थी वाली प्रवृत्ति कभी नहीं गई. वे हमेशा सीखना चाहती थीं. वे सभी आईएस ऑफिसर्स को इज्जत की नजर से देखती थीं. वर्तमान समय में खासकर दिल्ली में सरकार और ब्यूरोक्रेसी के बीच का टकराव जगजाहिर है.

हमने उमेश सैगल से जानने की कोशिश की कि क्या शीला दीक्षित के समय भी ऐसा ही माहौल था तो उन्होंने कहा 'उस समय ऐसा नहीं था. कुछ बाकी मंत्रियों के साथ ऐसा हो सकता था, लेकिन शीला दीक्षित का अफसरों के रिलेशन बहुत स्मूथ था. अगर कभी ऐसा कुछ होता भी था, तो वे उसे ऑफिस में भी डिसकस नहीं करती थीं, अपने घर ब्रेकफास्ट पर बुला लेती थीं और वहां उसे समझने की कोशिश करती थीं कि क्या मुद्दा है. अफसरों और मंत्रियों को समझाने और उन्हें समझने को लेकर उनका एक अलग शिष्टाचार था.'

'डीडीए के फंड को दिल्ली के विकास में लगाया'
शीला दीक्षित के ना रहने पर दिल्ली मेट्रो को लेकर उन्हें भी याद किया जा रहा है. इसे लेकर जब हमने उमेश सैगल से जाने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा कि उस समय मेट्रो का काम तो स्टार्ट नहीं हुआ था, लेकिन श्रीधरण की अपॉइंटमेंट हो गई थी. उस समय बिजली बहुत बड़ी समस्या थी, बिजली की चोरी बहुत होती थी. सड़कों का बुरा हाल था, फ्लाईओवर नहीं थे, सरकार के पास फंड का अभाव था.

डीडीए के पास पैसे थे और डीडीए का नियंत्रण उपराज्यपाल के पास था. उमेश सैगल ने बताया कि उस समय उपराज्यपाल के साथ शीला दीक्षित के अच्छे संबंध थे और इसी के बल पर उन्होंने डीडीए से हजारों करोड़ के फंड निकलवाकर दिल्ली में विकास कार्य शुरू कराए.

'विज्ञापन पर विश्वास नहीं करती थी शीला'
उमेश सैगल ने यह भी बताया कि 'केंद्र के साथ उन्होंने कभी भी अपने संबंध खराब नहीं होने दिए. केंद्रीय मंत्रियों के साथ हमेशा अच्छा संबंध बनाकर रखा. यहां तक कि जब केंद्र में बीजेपी की सरकार थी तब भी आज के जैसा माहौल नहीं था.'

उन्होंने यह भी बताया कि उस समय हर हफ्ते उपराज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री की एक मीटिंग होती थी, जिसमें मुख्य सचिव भी हुआ करते थे. बहुत सारे मामले उसी मीटिंग में सुलझा लिए जाते थे. शीला दीक्षित के वर्क कल्चर को लेकर उमेश सैगल ने बताया कि वे ज्यादा विज्ञापन निकाले में विश्वास नहीं करतीं थीं, ज्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं करती थीं. शीला दीक्षित का घर लोगों के लिए हमेशा खुला रहता था, खासकर उनके विधायक उनसे कभी भी मिल सकते थे.

'शीला के व्यवहार में कोई अंतर नहीं'
यह पूछने पर कि आपने शीला दीक्षित की सियासी शुरुआत भी देखी और उनके जीवन के अंतिम दिन में भी, दोनों में आपको क्या अंतर दिखा, तो उन्होंने कहा कि 'अभी 2 महीने पहले जब शीला दीक्षित से मिले थे, तब भी उनमें कोई अंतर नहीं दिखा आज भी वे वैसी ही थीं. उनके व्यवहार में कोई अंतर नहीं दिखा.' उन्होंने यह भी कहा कि भले ही अब उनके पास पावर नहीं थी, लेकिन उनके प्रति हमारे रेस्पेक्ट से पावर का कोई सम्बन्ध नहीं था.

Intro:शीला दीक्षित के निधन के बाद दिल्ली से जुड़ी उनकी पहचान को एक अलग रूप में देखा जा रहा है. लोग दिल्ली को शीला की दिल्ली कहने लगे हैं. यह दिल्ली शीला की दिल्ली कैसे बनी, इसे लेकर हमने बातचीत की शीला दीक्षित के कार्यकाल के पहले मुख्य सचिव रहे उमेश सैगल से. हमने उनसे यह भी जानने की कोशिश की कि वे अब शीला दीक्षित को किस रूप में याद करते हैं.


Body:नई दिल्ली: उमेश सैगल ने बताया कि वे 1998 से 2000 तक शीला दीक्षित के समय दिल्ली के मुख्य सचिव थे. पहली बार मुख्यमंत्री बनी शीला दीक्षित को सियासी और प्रशासनिक नजरिए से कैसे देखते हैं, इस सवाल पर उमेश सैगल का जवाब था कि उनके पास उस समय ज्यादा अनुभव नहीं था और वे इस बात को मानती थीं. उन्होंने बताया कि हाल में 2 महीने पहले वे मुझे इंडिया हैबिटेट सेंटर में मिली थीं, तो लोगों से उन्होंने मेरा परिचय भी इसी रूप में कराया कि ये मेरे पहले मुख्य सचिव थे, जिन्होंने मुझे एडमिनिस्ट्रेशन सिखाया.

उमेश सैगल ने कहा कि शीला दीक्षित की विद्यार्थी वाली प्रवृत्ति कभी नहीं गई. वे हमेशा सीखना चाहती थीं. वे सभी आईएस ऑफिसर्स को इज्जत की नजर से देखती थीं और मानती थीं कि उनके पास जो अनुभव है, वह मेरे पास नहीं है.

वर्तमान समय में खासकर दिल्ली में सरकार और ब्यूरोक्रेसी के बीच का टकराव जगजाहिर है. हमने उमेश सैगल से जानने की कोशिश की कि क्या शीला दीक्षित के समय भी ऐसा ही माहौल था. इस पर उनका कहना था कि 'उस समय ऐसा नहीं था. कुछ बाकी मंत्रियों के साथ ऐसा हो सकता था, लेकिन शीला दीक्षित का अफसरों के रिलेशन बहुत स्मूथ था. अगर कभी ऐसा कुछ होता भी था, तो वे उसे ऑफिस में भी डिसकस नहीं करती थीं, अपने घर ब्रेकफास्ट पर बुला लेती थीं और वहां उसे समझने की कोशिश करती थीं कि क्या मुद्दा है. अफसरों और मंत्रियों को समझाने और उन्हें समझने को लेकर उनका एक अलग शिष्टाचार था.'

वर्तमान समय में शीला दीक्षित के ना रहने पर दिल्ली मेट्रो को लेकर उन्हें भी याद किया जा रहा है. इसे लेकर जब हमने उमेश सैगल से जाने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा कि उस समय मेट्रो का काम तो स्टार्ट नहीं हुआ था, लेकिन श्रीधरण की अपॉइंटमेंट हो गई थी. उस समय बिजली बहुत बड़ी समस्या थी, बिजली की चोरी बहुत थी, बिजली बहुत जाती थी, सड़कों का बुरा हाल था, फ्लाईओवर नहीं थे, सरकार के पास फंड का अभाव था. डीडीए के पास पैसे थे और डीडीए का नियंत्रण उपराज्यपाल के पास था. उमेश सैगल ने बताया कि उस समय उपराज्यपाल के साथ शीला दीक्षित के अच्छे संबंध थे और इसी के बल पर उन्होंने डीडीए से हजारों करोड़ के फंड निकलवाकर दिल्ली में विकास कार्य शुरू कराए.

उमेश सैगल ने यह भी बताया कि 'केंद्र के साथ उन्होंने कभी भी अपने संबंध खराब नहीं होने दिए. केंद्रीय मंत्रियों के साथ हमेशा अच्छा संबंध बनाकर रखा. यहां तक कि जब केंद्र में भाजपा की सरकार थी और दिल्ली में शीला दीक्षित कांग्रेसी सरकार थी मुख्यमंत्री थीं, तब भी आज के जैसा हम नहीं सोच सकते थे कि दिल्ली का मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री और बाकी मंत्रियों के लिए कुछ भी बोल देगा. शायद यही कारण भी था कि हर मामले में मुख्यमंत्री से भी राय ली जाती थी.'

उन्होंने यह भी बताया कि उस समय हर हफ्ते उपराज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री की एक मीटिंग होती थी, जिसमें मुख्य सचिव भी हुआ करते थे. बहुत सारे मामले उसी मीटिंग में सुलझा लिए जाते थे. शीला दीक्षित के वर्क कल्चर को लेकर उमेश सैगल ने बताया कि वे ज्यादा विज्ञापन निकाले में विश्वास नहीं करती थीं, ज्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं करती थीं. शीला दीक्षित का घर लोगों के लिए हमेशा खुला रहता था, खासकर उनके विधायक उनसे कभी भी मिल सकते थे.

यह पूछने पर कि आपने शीला दीक्षित की सियासी शुरुआत भी देखी है और उनके जीवन के अंतिम दिन में भी मिले हैं, दोनों में आपको क्या अंतर दिखा, इसपर उमेश सैगल का कहना था कि अभी 2 महीने पहले जब शीला दीक्षित से मिले थे, तब भी उनमें कोई अंतर नहीं दिखा आज भी वे वैसी ही थीं. उनके व्यवहार में कोई अंतर नहीं दिखा. उन्होंने यह भी कहा कि भले ही अब उनके पास पावर नहीं थी, लेकिन उनके प्रति हमारे रेस्पेक्ट से पावर का कोई सम्बन्ध नहीं था.


Conclusion:दिल्ली तब भी शासनात्मक रूप से ऐसी ही थी, जैसी अब है. लेकिन वर्तमान समय में अधिकारियों और सरकार के मंत्रियों के बीच के टशन के मद्देनजर अगर देखें, तो शीला दीक्षित के प्रति उनके मुख्य सचिव रहे उमेश सैगल के शब्द शीला की शख्सियत को बखूबी बयां करने के लिए काफी हैं.
Last Updated : Jul 23, 2019, 8:54 PM IST
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