नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में भूख की वजह से दो बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी. दिल्ली में हर साल कुपोषण की वजह से 50 से ज्यादा बच्चों की जान चली जाती है. समय के साथ स्थिति में सुधार होने चाहिए लेकिन सड़कों और बढ़ती अधनंगे बच्चों की संख्या और ट्रैफिक लाइट्स पर गाड़ियों के सामने फैलते हाथ किसी और तरफ इशारा करते हैं.
69 फीसदी बच्चे गंवाते हैं जान
साल 2019 में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में 69% बच्चों की मौत (5 साल से नीचे) कुपोषण की वजह से हो जाती है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, कुपोषण की वजह से साल 2013 से 2016 तक राजधानी दिल्ली में 244 मौत हुईं. इसमें बच्चों से लेकर बूढ़े, गरीब, बेघर, मानसिक तौर पर परेशान और बेसहारा लोग शामिल थे.
2018 में हुई थी 3 बहनों की मौत
साल 2018 में तीन बहनों की भूख के चलते हुई मौत भी यहां सुर्खियां बनी थीं. कुछ दिनों के लिए ये मुद्दा राजनीतिक खनक का कारण बन और फिर सब शांत हो गया. ऐसा तब है जबकि दिल्ली उन राज्यों की सूची में आता है जहां पर सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे मिलते हैं.
क्यों हो जाते हैं शिकार!
जानकार बताते हैं कि अक्सर कुपोषण को भुखमरी से जोड़कर देखा जाता है जो कि सही भी है लेकिन अमूमन पोषण की कमी और बीमारियां कुपोषण का सबसे बड़ा कारण होती है. यही कारण है कि गरीबी में रहने वाले लोग इस से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. इसीलिए यहां झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोग आसानी से इसका शिकार हो जाते हैं.
2020 में सुधरेंगे हालात?
कुपोषण और भुखमरी के नाम पर राजधानी दिल्ली के हालात चिंताजनक है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है और इससे सभी को उम्मीदें हैं. 2019 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स देश की स्थिति को गंभीर बताता है जबकि 119 देशों में भारत 102 में पायदान पर है.
केंद्र और राज्य सरकार की ऐसी कई स्कीम है जिनके तहत पोषण को जमीन तक पहुंचाया जा सकता है. हालांकि उसके बाद भी ये सिर्फ फ़ाइल और कागजों में दबकर रह जाती हैं. नए साल की शुरुआत हो रही है ऐसे में सरकारों को जरूरत है कि वह 21वीं सदी के भारत को कुपोषण और भुखमरी जैसी समस्याओं से ऊपर ले जाएं.