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जलवायु परिवर्तन और घटते जंगलों से कश्मीर में चरवाहों को खतरा, पशुपालन छोड़ने को मजबूर

हर साल लगभग 700,000 लोग लद्दाख में अल्पाइन चरागाहों अपने पशुओं को चराने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हैं.

कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स
कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

श्रीनगर: ऊंचे देवदार और कैल के पेड़ों के घने जंगल से ढकी एक खड़ी पहाड़ी ढलान पर, एक साधारण कंक्रीट का दो कमरों वाला घर आखिरी मानव पदचिह्न को दर्शाता है. यहां मौजूद पोर्च से कोई भी शख्स नीचे की ओर बनीं टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें, छोटी-छोटी टीन की छतें और दोपहर के सूरज के नीचे झिलमिलाती पर्वत चोटियों को देख सकता है.

यहां बकरवाल समुदाय के 74 वर्षीय पशुपालक अब्दुल रशीद कसाना अपनी भेड़-बकरियों के झुंड के साथ चरागाहों की तलाश में दश्कों से इन पहाड़ियों पर घूमते रहे हैं. लेकिन अब उन्हें रिटायर होने के लिए मजबूर होना पड़ा है. वे अपने दिन लोअर मुंडा के एक छोटे से गांव में बिता रहे हैं, जो उन ऊंचे इलाकों से बहुत दूर है जिन्हें वे कभी अपना घर कहते थे.

कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स
कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स (ETV Bharat)

जम्मू कश्मीर के गुज्जर-बकरवाल और गादी समुदाय ने लंबे समय से अर्धवार्षिक प्रवास का अभ्यास किया है. हर साल लगभग 700,000 लोग अप्रैल-मई में कश्मीर और लद्दाख में अल्पाइन चरागाहों और सितंबर-अक्टूबर में जम्मू के रिवर्स माइग्रेशन मैदानों के बीच अपने पशुओं को चराने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हैं.

अनियमित मौसम की घटनाओं का खतरा
यह अर्धवार्षिक प्रवास उनकी आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है और उनके पशुओं को चरम मौसम की स्थिति से बचाता है, लेकिन उन्हें बादल फटने, अचानक बाढ़ और बढ़ते तापमान सहित अनियमित मौसम की घटनाओं का खतरा भी रहता है. पिछले पांच साल में जम्मू में बढ़ते तापमान ने खानाबदोशों को मार्च या अप्रैल में पहले ही अपना प्रवास शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया है, लेकिन पहाड़ों में बर्फीली परिस्थितियों के कारण अक्सर उनके पशुओं भुखमरी से मर जाते हैं, जिससे काफी नुकसान होता है.

जंगल में घास चरते जानवर
जंगल में घास चरते जानवर (ETV Bharat)

पशुपालन छोड़ने को मजबूर हुए लोग
इन चुनौतियों ने उनके बच्चों की शिक्षा को भी बाधित किया है, जो प्रवास के दौरान मोबाइल स्कूलों पर निर्भर हैं. हालांकि, उन्होंने मई में पहाड़ों में बर्फ पिघलने तक कश्मीर घाटी में पहाड़ों के आसपास के निचले इलाकों में रहने की नई दिनचर्या अपना ली है, लेकिन बढ़ती गर्मी और उसके बाद बादल फटने और बेमौसम बारिश के कारण गर्मियों में अल्पाइन और घास के मैदान भी उनके लिए असहनीय हो गए हैं. इन प्राकृतिक परिवर्तनों ने कई लोगों को पशुपालन छोड़ने और अपने परिवारों को पालने के लिए मजदूरी या निर्माण कार्य करने के लिए मजबूर कर दिया है, लेकिन कसाना जैसे कई लोग नए व्यापार को अपनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

खाना बनाती महिला
खाना बनाती महिला (ETV Bharat)

2023 में आई थी बाढ़
2023 में वह एक दुखद रात को याद करते हैं जब राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर जम्मू से कश्मीर की ओर पलायन के दौरान बिजली गिरी और अचानक बाढ़ आ गई. कसाना कहते हैं, "बारिश में थके दिन चलने के बाद हम कुछ पेड़ों के नीचे आराम करने के लिए रुके थे.आधी रात को आसमान से एक तेज गड़गड़ाहट ने हमें जगा दिया. ऐसा लगा जैसे प्रलय आ गया हो. कुछ ही सेकंड में हम भीग गए और मेरी 20 भेड़ें गायब हो गईं." सुबह तक, कसाना को मिट्टी और कीचड़ के ढेर के नीचे दबी 12 भेड़ों के शव मिले. इसने हमारी जिंदगी और किस्मत बदल दी.

2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर की 12.54 मिलियन आबादी में गुज्जर और बकरवाल लगभग 1.1 मिलियन हैं. हालांकि, गर्मी, अचानक बाढ़ और बादल फटने जैसी चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं के कारण उनके पशुधन नष्ट हो रहे हैं और उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत उनसे छिन रहा है.

कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स
कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स (ETV Bharat)

आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, 2010 से 2022 के बीच जम्मू- कश्मीर में 168 चरम मौसम की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें ज्यादातर बादल फटने और अचानक बाढ़ आने की घटनाएं हैं. अकेले 2023 में साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल ने 12 बादल फटने की घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया, जिनमें से आठ जून और जुलाई के दौरान हुईं.

2022 में 16 तीर्थयात्रियों की मौत
गौरतलब है कि कश्मीर के सुरम्य पहलगाम के बर्फ से ढके पहाड़ों में 3,800 फीट की ऊंचाई पर स्थित हिंदू तीर्थ स्थल अमरनाथ गुफा में एक बड़े बादल फटने से 2022 में 16 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी. विशेषज्ञ और अधिकारी मानते हैं कि इनमें से कुछ घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है, लेकिन उनमें से कई पर पहुंच या कनेक्टिविटी की कमी वाले दूरदराज के इलाकों में होने के कारण किसी का ध्यान नहीं जाता है.

तापमान में वृद्धि
श्रीनगर में मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक डॉ मुख्तार बताते हैं, "बादल फटने की घटनाएं सीधे तौर पर बढ़ते तापमान से जुड़ी हैं. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, हवा में नमी और कम दबाव की व्यवस्था भी बढ़ती है, जिससे अचानक बारिश होती है." पिछले कुछ वर्षों में, जम्मू कश्मीर में औसत तापमान में 0.5 डिग्री की वृद्धि हुई है, जुलाई 2023 में 36 डिग्री से अधिक तापमान के साथ सात दशकों में सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया.मौसम विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार यह कश्मीर में 1946 के बाद से दूसरा सबसे गर्म जुलाई था.

वहीं, मौसम पूर्वानुमानकर्ता फैजान आरिफ ने कहा कि लंबे समय तक सूखे के बाद भारी बारिश के कारण बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "यह हाशिए पर रहने वाले समुदायों और ऊंचाई वाले इलाकों में रहने वालों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है." उन्होंने कहा कि इन जलवायु परिवर्तनों के कारण चरागाहों पर संकट आ गया है और जल संसाधन समाप्त हो गए हैं, जिसके कारण इस वर्ष कई स्थानों पर पशु ऊंचे चरागाहों से जल्दी लौट आए हैं.

पशुपालकों के साथ ऊंचे इलाकों के चरागाहों में जाने वाली सरकारी टीम में शामिल एक पशु चिकित्सक ने ईटीवी भारत को बताया कि वे लंबे समय तक सूखे के कारण 'चारागाह तनाव' को देख सकते हैं. उन्होंने कहा, "चारागाह हाई क्वालिटी हरी घास से भरे हुए हैं. निचले इलाकों की तुलना में इसमें अधिक पौष्टिक और औषधीय गुण हैं. अनुकूल तापमान के साथ, यह पशुओं को शरीर का वजन बढ़ाने में मदद करता है." लेकिन इस साल, पशु चिकित्सक ने कहा कि घास की सीमित उपलब्धता के कारण पशुधन ज्यादा वजन नहीं बढ़ा सके.

यह भी पढ़ें- क्या हैं लेवल क्रॉसिंग इंटरलॉकिंग, VDC और कवच 4.0, जिनसे 70 फीसदी कम हुई रेल दुर्घटनाएं?

श्रीनगर: ऊंचे देवदार और कैल के पेड़ों के घने जंगल से ढकी एक खड़ी पहाड़ी ढलान पर, एक साधारण कंक्रीट का दो कमरों वाला घर आखिरी मानव पदचिह्न को दर्शाता है. यहां मौजूद पोर्च से कोई भी शख्स नीचे की ओर बनीं टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें, छोटी-छोटी टीन की छतें और दोपहर के सूरज के नीचे झिलमिलाती पर्वत चोटियों को देख सकता है.

यहां बकरवाल समुदाय के 74 वर्षीय पशुपालक अब्दुल रशीद कसाना अपनी भेड़-बकरियों के झुंड के साथ चरागाहों की तलाश में दश्कों से इन पहाड़ियों पर घूमते रहे हैं. लेकिन अब उन्हें रिटायर होने के लिए मजबूर होना पड़ा है. वे अपने दिन लोअर मुंडा के एक छोटे से गांव में बिता रहे हैं, जो उन ऊंचे इलाकों से बहुत दूर है जिन्हें वे कभी अपना घर कहते थे.

कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स
कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स (ETV Bharat)

जम्मू कश्मीर के गुज्जर-बकरवाल और गादी समुदाय ने लंबे समय से अर्धवार्षिक प्रवास का अभ्यास किया है. हर साल लगभग 700,000 लोग अप्रैल-मई में कश्मीर और लद्दाख में अल्पाइन चरागाहों और सितंबर-अक्टूबर में जम्मू के रिवर्स माइग्रेशन मैदानों के बीच अपने पशुओं को चराने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हैं.

अनियमित मौसम की घटनाओं का खतरा
यह अर्धवार्षिक प्रवास उनकी आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है और उनके पशुओं को चरम मौसम की स्थिति से बचाता है, लेकिन उन्हें बादल फटने, अचानक बाढ़ और बढ़ते तापमान सहित अनियमित मौसम की घटनाओं का खतरा भी रहता है. पिछले पांच साल में जम्मू में बढ़ते तापमान ने खानाबदोशों को मार्च या अप्रैल में पहले ही अपना प्रवास शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया है, लेकिन पहाड़ों में बर्फीली परिस्थितियों के कारण अक्सर उनके पशुओं भुखमरी से मर जाते हैं, जिससे काफी नुकसान होता है.

जंगल में घास चरते जानवर
जंगल में घास चरते जानवर (ETV Bharat)

पशुपालन छोड़ने को मजबूर हुए लोग
इन चुनौतियों ने उनके बच्चों की शिक्षा को भी बाधित किया है, जो प्रवास के दौरान मोबाइल स्कूलों पर निर्भर हैं. हालांकि, उन्होंने मई में पहाड़ों में बर्फ पिघलने तक कश्मीर घाटी में पहाड़ों के आसपास के निचले इलाकों में रहने की नई दिनचर्या अपना ली है, लेकिन बढ़ती गर्मी और उसके बाद बादल फटने और बेमौसम बारिश के कारण गर्मियों में अल्पाइन और घास के मैदान भी उनके लिए असहनीय हो गए हैं. इन प्राकृतिक परिवर्तनों ने कई लोगों को पशुपालन छोड़ने और अपने परिवारों को पालने के लिए मजदूरी या निर्माण कार्य करने के लिए मजबूर कर दिया है, लेकिन कसाना जैसे कई लोग नए व्यापार को अपनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

खाना बनाती महिला
खाना बनाती महिला (ETV Bharat)

2023 में आई थी बाढ़
2023 में वह एक दुखद रात को याद करते हैं जब राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर जम्मू से कश्मीर की ओर पलायन के दौरान बिजली गिरी और अचानक बाढ़ आ गई. कसाना कहते हैं, "बारिश में थके दिन चलने के बाद हम कुछ पेड़ों के नीचे आराम करने के लिए रुके थे.आधी रात को आसमान से एक तेज गड़गड़ाहट ने हमें जगा दिया. ऐसा लगा जैसे प्रलय आ गया हो. कुछ ही सेकंड में हम भीग गए और मेरी 20 भेड़ें गायब हो गईं." सुबह तक, कसाना को मिट्टी और कीचड़ के ढेर के नीचे दबी 12 भेड़ों के शव मिले. इसने हमारी जिंदगी और किस्मत बदल दी.

2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर की 12.54 मिलियन आबादी में गुज्जर और बकरवाल लगभग 1.1 मिलियन हैं. हालांकि, गर्मी, अचानक बाढ़ और बादल फटने जैसी चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं के कारण उनके पशुधन नष्ट हो रहे हैं और उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत उनसे छिन रहा है.

कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स
कश्मीर में जानवारों को जंगल ले जाता शख्स (ETV Bharat)

आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, 2010 से 2022 के बीच जम्मू- कश्मीर में 168 चरम मौसम की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें ज्यादातर बादल फटने और अचानक बाढ़ आने की घटनाएं हैं. अकेले 2023 में साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल ने 12 बादल फटने की घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया, जिनमें से आठ जून और जुलाई के दौरान हुईं.

2022 में 16 तीर्थयात्रियों की मौत
गौरतलब है कि कश्मीर के सुरम्य पहलगाम के बर्फ से ढके पहाड़ों में 3,800 फीट की ऊंचाई पर स्थित हिंदू तीर्थ स्थल अमरनाथ गुफा में एक बड़े बादल फटने से 2022 में 16 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी. विशेषज्ञ और अधिकारी मानते हैं कि इनमें से कुछ घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है, लेकिन उनमें से कई पर पहुंच या कनेक्टिविटी की कमी वाले दूरदराज के इलाकों में होने के कारण किसी का ध्यान नहीं जाता है.

तापमान में वृद्धि
श्रीनगर में मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक डॉ मुख्तार बताते हैं, "बादल फटने की घटनाएं सीधे तौर पर बढ़ते तापमान से जुड़ी हैं. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, हवा में नमी और कम दबाव की व्यवस्था भी बढ़ती है, जिससे अचानक बारिश होती है." पिछले कुछ वर्षों में, जम्मू कश्मीर में औसत तापमान में 0.5 डिग्री की वृद्धि हुई है, जुलाई 2023 में 36 डिग्री से अधिक तापमान के साथ सात दशकों में सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया.मौसम विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार यह कश्मीर में 1946 के बाद से दूसरा सबसे गर्म जुलाई था.

वहीं, मौसम पूर्वानुमानकर्ता फैजान आरिफ ने कहा कि लंबे समय तक सूखे के बाद भारी बारिश के कारण बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "यह हाशिए पर रहने वाले समुदायों और ऊंचाई वाले इलाकों में रहने वालों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है." उन्होंने कहा कि इन जलवायु परिवर्तनों के कारण चरागाहों पर संकट आ गया है और जल संसाधन समाप्त हो गए हैं, जिसके कारण इस वर्ष कई स्थानों पर पशु ऊंचे चरागाहों से जल्दी लौट आए हैं.

पशुपालकों के साथ ऊंचे इलाकों के चरागाहों में जाने वाली सरकारी टीम में शामिल एक पशु चिकित्सक ने ईटीवी भारत को बताया कि वे लंबे समय तक सूखे के कारण 'चारागाह तनाव' को देख सकते हैं. उन्होंने कहा, "चारागाह हाई क्वालिटी हरी घास से भरे हुए हैं. निचले इलाकों की तुलना में इसमें अधिक पौष्टिक और औषधीय गुण हैं. अनुकूल तापमान के साथ, यह पशुओं को शरीर का वजन बढ़ाने में मदद करता है." लेकिन इस साल, पशु चिकित्सक ने कहा कि घास की सीमित उपलब्धता के कारण पशुधन ज्यादा वजन नहीं बढ़ा सके.

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