नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर 26 नवंबर 2020 को दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर, सिंधु बॉर्डर समेत अन्य बॉर्डर पर किसान आंदोलन शुरू हुआ था. दिल्ली के बार्डर पर पहुंचे बड़ी संख्या में किसानों ने राजधानी में प्रवेश करने का प्रयास किया तो पुलिस ने लाठी चार्ज करने के साथ आंसू गैस के गोले छोड़े, वाटर कैनन का भी प्रयोग किया गया था. जिसमें कई किसान घायल भी हुए थे.
किसानों ने 26 जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकाली. इस दौरान कई जगह झड़पें हुईं और कुछ खालिस्तान समर्थकों ने लालकिले की प्राचीर पर खालिस्तानी झंडा लहरा दिए. कुछ लोगों द्वारा देश को शर्मसार करने की हरकत के बाद विभिन्न संगठन आंदोलन से चले गए, पुलिस ने मुकदमें भी दर्ज किए. तब लगा कि किसान आंदोलन खत्म हो जाएगा, लेकिन भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकट के आंसुओं ने आंदोलन में दोबारा जान भर दी थी. आखिर में केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की, तो 378 दिन बाद किसानों का आंदोलन खत्म हुआ था.
केंद्र सरकार जून 2020 में तीन कृषि बिलों को अध्यादेश के जरिए लाई. 14 जून को इस अध्यादेश को संसद में पेश किया गया. 17 सितंबर को लोकसभा से तीनों बिल पारित हुए. इस दौरान विपक्षी दलों ने इसका जमकर विरोध भी किया था. 27 सितंबर को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीनों बिलों को पास करने की अनुमति दी. तीनों कानून पास होने के बाद विरोध बढ़ता गया. 25 नवंबर को विभिन्न किसान संगठन तीनों कानूनों के विरोध में दिल्ली चलो आंदोलन शुरू किया और बड़ी संख्या में किसान ट्रैक्टर ट्राली, राशन व अन्य सामान लेकर दिल्ली के लिए निकल पड़े.
26 नवंबर 2020 को बार्डर पर शुरू हुआ आंदोलन: हजारों की संख्या में किसान 26 नवंबर 2020 को दिल्ली के गाजीपुर बार्डर (यूपी गेट) और सिंधू बार्डर पर पहुंचे. किसान दिल्ली के जंतर मंतर जाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन कई लेयर में दिल्ली पुलिस ने अपनी बैरिकेडिंग लगाने के साथ हजारों की संख्या में पुलिस बल तैनात किया हुआ था. किसानों ने ट्रैक्टर से बैरिकेडिंग तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश की. इसपर पुलिस ने लाठी चार्ज करने के साथ वाटर कैनन से पानी की बौछार की. इससे भगदड़ मच गई और कई किसान घायल हो गए. काफी जद्दोजहद के बाद किसान दिल्ली में नहीं जा सके तो गाजीपुर बार्डर और सिंधू बार्डर पर सड़क पर बैठ गए.
लालकिले पर खालिस्तानी झंडा फहराकर देश को किया शर्मसार: किसान आंदोलन दिल्ली के बार्डर पर चलता रहा. बीच-बीच में पुलिस से झड़पें होती रही. इस दौरान आंदोलन की आंच में अपनी सियासत की रोटी सेंकने के लिए राजनीतिक पार्टियां भी पहुंची और खुद को किसानों का हितैषी बताया. लेकिन किसान आंदोलन में किसी भी नेता को मंच नहीं दिया गया. 26 जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस पर किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली, गाजीपुर और सिंधू बार्डर से किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में प्रवेश किए. दिल्ली में कई स्थानों पर झड़पें हुईं. किसानों के बीच शामिल कुछ खालिस्तानी समर्थकों ने लालकिले की प्राचीर पर खालिस्तानी झंडा फहराकर देश के शर्मासर किया. इसकी लोगों ने पुरजोर विरोध किया. मामले में किसानों पर दिल्ली में मुकदमें भी हुए. इसके बाद कई किसान संगठन आंदोलन से समर्थन वापस लेकर चले गए.
राकेश किटैत के आसुंओं ने आंदोलन में भरी जान: दिल्ली में हिंसा पर मुकदमें के बाद किसान संगठन जाने लगे. वहीं, राकेश टिकैत के गिरफ्तार किए जाने की संभावना व्यक्त की जाने लगी. तब उन्होंने मीडिया को दिए इंटरव्यू में रो दिया और कहा कि जब तक किसान भाई उनके लिए घर से पानी लेकर नहीं आते हैं तब तक वह पानी नहीं पिएंगे. उनके इन आंसुओं ने आदोलन में दोबारा जान भर दी. बड़ी संख्या में किसान दोबारा बार्डर पर पहुंच गए. दिल्ली के बार्डर पर चल रहा किसानों का आंदोलन केंद्र सरकार के गले की फांस बन गया था. गुरु नानक जयंती पर केंद्र सरकार ने किसानों की सभी मांगें मान ली इसके बाद 387 दिन बाद 9 दिसंबर 2022 को किसानों का आंदोन खत्म हुआ था. भाकियू टिकैत गुट के राष्ट्रीय प्रेस प्रभारी शमशेर राणा का कहना है कि गाजीपुर बार्डर पर तीन लोगों को विभिन्न कारणों से मौत हुई थी.
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राहगीरों को हुई थी सबसे ज्यादा परेशानी: एनएच-9 और दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे के रास्ते गाजीपुर बार्डर से लोग दिल्ली में प्रवेश करते हैं. सिंधू बार्डर से हरियाणा और पंजाब के लोग दिल्ली में प्रवेश करते हैं. इन दोनों के साथ अन्य बार्डर पर किसानों के आंदोलन के चलते रोजाना लाखों राहगीरों को परेशानी का सामना करना पड़ा था. करीब एक साल से अधिक समय तक लोगों को वैकल्पिक रास्तों से दिल्ली जाना पड़ता था, जहां पर वाहनों का दबाव बढ़ने से नियमित जाम लगता था.