नई दिल्ली: बवाना इंडस्ट्रियल एरिया सेक्टर 4 स्थित गंगा टोली मंदिर आसपास के करीब 2 दर्जन से ज्यादा गांवों की पूजा का स्थल है. इन गांव से निकलकर, जो लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में बसे हुए हैं, वो लोग भी मुख्य त्योहारों पर आकर इस मंदिर में पूजा करते हैं. यहां के पुजारी और स्थानीय लोगों ने जो इतिहास बताया वो बेहद रोचक है.
मंदिर में पूजा करने वाले महंत ने बताया कि साल 1854 में गंगा महाराज ने मंदिर एक मढ़ी की स्थापना की थी. यहां पहले सुनसान और बियाबान जंगल होता था. जिसमें बड़ी संख्या में हिंसक और जंगली जानवर रहा करते थे. आसपास के गांव के ग्वाले इस जंगल मे गाय चराने आया करते थे. उन्होंने देखा कि जंगल में एक कुटिया बनाकर साधु धुनी लगाकर तपस्या कर रहे थे. ग्वालों ने जब ये बात गांव के लोगों को बताइ तो आसपास के गांव के लोग साधु को देखने के लिए इकट्ठा हुए.
बताया जाता है कि ये मंदिर साल 1854 से 1990 तक अपनी प्राचीन आकृतियों के साथ रहा, लेकिन साल 1990 में जब गांव और उसके आसपास के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर मंदिर के जीर्णोद्धार का काम शुरू किया तो भव्य और विशाल मंदिर बना. मंदिर का प्रांगण करीब 5 एकड़ का है, जिसमें सभी भगवानों की विशाल मूर्तियां स्थापित की हुई हैं.
पंडित ने बताई रोचक जानकारियां
अगर मंदिर का इतिहास गांव के लोगों द्वारा बताई गई किदवंती और एक छोटी पुस्तक के आधार पर माने तो वो साधु गंगा महाराज थे. जो अंग्रेजों के सेना में एक अधिकारी थे और अंग्रेजी शासन के दौरान अत्याचार और मारकाट को देखकर वह इतने व्याकुल हो गए कि उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया.
उन्होंने अपनी उच्च पदस्थ नौकरी से इस्तीफा दिया और अपना घर बार छोड़कर जंगल में तपस्या करने के लिए चले गए. गंगा जी महाराज से जुड़ी कई ओर रोचक जानकारियां भी हैं.
चाहे स्वाद के लिए जिव्हा को नियंत्रित करना हो या समाधि में बाबा लंबे समय तक साधना में लीन होने की ही. एक बार गांव के लोगों ने देखा कि बाबा ब्रह्मलीन हुए तो इसकी चर्चा पूरे बवाना गांव और आसपास के इलाके में जंगल में आग की तरह फैल गई.
सुबह पूरा गांव जंगल में बाबा के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचा तो लोग देखकर हतप्रभ रह गए कि बाबा तो जिंदा हैं. जब पूरा वाकया बाबा को पता चला तो उन्होंने बताया कि ये समाधि की मुद्रा थी. मैं कुछ समय के लिए साधना में लीन हो गया था.
मंदिर का नाम गंगा टोली कैसे पड़ा
गंगा जी महाराज के पास साधु-सन्यासी आने लगे और सभी उस टोली में रहते थे और प्रभु की साधना करते थे. गंगा जी महाराज की और साधुओं से बनी टोली के कारण गांव वासियों ने उस मंदिर का नाम गंगा टोली बोलना शुरु कर दिया. आज भी यह मंदिर पूरे इलाके में गंगा टोली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.
शुरुआत में बाबा का एक छोटा सा शिवालय जिसे मढ़ी कहते हैं. वो जंगल में हुआ करता था, जिसमें आज 24 घंटे अग्नि प्रज्वलित रहती है. ये अग्नि काफी लंबे समय से चलती आ रही है क्योंकि साधुओं का धूना यहां लगातार चलता था. जिसे आज तक कभी खंडित नहीं किया गया.
लोगों की आस्था है, इसे बाबा का आशीर्वाद है, धुने के पास में एक छोटा कुआ भी है और उसके पास एक तालाब था जिसे आज सुंदर और मनमोहक आकार दिया गया है जिसमे भगवान शिव की प्रतिमा विधमान है.
दूर-दूर से आते हैं लोग
गांव ही नहीं आसपास के लोग भी गंगा टोली मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं. गांव और आसपास के लोग जब भी कोई शुभ कार्य करते है तो गंगा टोली मंदिर मे पूजा कर शुरू करते हैं.
इस मंदिर के निर्माण के लिए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने फंड भी दिया था. दिल्ली के पूर्व बीजेपी मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह और बवाना के पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार भी लगातार पूजा करने आते रहे हैं.
फिलहाल ये मंदिर बवाना इंडस्ट्रियल एरिया के बीच में स्तिथ है और यहां बड़े-बड़े उद्योगपति अपना व्यवसाय करते हैं. मंदिर की मान्यता को देखते हुए उद्योगपति भी इसमें अपने नाम से कमरा बनाने के लिए तैयार हैं.
मंदिर की कमेटी का कहना है कि जरूरत के हिसाब से वो काम कर आएंगे. साथ ही मंदिर में महंत और फिर उनके शिष्य के जरिए पूजा करने की ये परंपरा सालों से चली आ रही है, जो इस मंदिर की देखरेख भी करते हैं.