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दशकों से करते आ रहे खेती, मगर सरकार नहीं मानती किसान! देखें ये स्पेशल रिपोर्ट - तिगीपुर गांव

ईटीवी भारत की टीम इस कोरोना संकट में किसानों का हाल जानने उनके पास पहुंची. केंद्र और दिल्ली सरकार के तमाम दावों के बीच यहां हकीकत कुछ और ही नजर आई. यहां मालूम चला कि सरकार लाखों किसानों को किसान मानती ही नहीं है, ना ही उन्हें कोई सुविधाएं मिल रही हैं.

Delhi farmers
तिगीपुर के किसान
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Published : Jul 4, 2020, 3:51 PM IST

नई दिल्ली: कोरोना महामारी काल में एक तरफ केंद्र और दिल्ली सरकार समाज के तमाम वर्गों के हितों का ध्यान रखते हुए नई-नई योजनाओं का ऐलान कर रही है. श्रमिकों, किसानों के लिए भी कई योजनाओं का ऐलान किया गया है, लेकिन इनका लाभ वाकई उन्हें मिलना शुरू हुआ है या नहीं, ये जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम किसानों के पास पहुंची. यहां हकीकत कुछ और ही नजर आई.

'किसानों को किसान नहीं मानती सरकार'

दिल्ली में जहां लाखों की संख्या में किसान हैं, उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा किसान का दर्जा नहीं दिए जाने से वे तमाम सुविधाओं से वंचित हैं. ये किसान सबकुछ अपने बल पर ही करने को मजबूर हैं.

किसानों का छलक उठा दर्द

ईटीवी भारत की टीम जब इन किसानों के पास पहुंची तो इन्होंने कहा कि पीढ़ियों से उनके यहां खेती होती आ रही है. उनके जीवन-यापन का जरिया ही खेती है, लेकिन सुविधाएं न मिलने से काफी परेशानी हो रही है. उनका कहना है कि अगली पीढ़ी शायद खेती ना करे, ऐसे में फिर सरकार क्या करेगी?

बाहरी दिल्ली के तिगीपुर गांव में रहने वाले किसान पप्पन सिंह ने कहा-

साल 2008 तक दिल्ली की तत्कालीन शीला सरकार ने कुछ खेती करने वालों को किसान का दर्जा दिया था, लेकिन ये भी गिने-चुने हैं. अधिकांश लोग जिनके पास खेती की जमीन है और खेती करते हैं, उन्हें ना ही तब शीला सरकार और ना अब केजरीवाल सरकार किसान मानती है. उन्हें इस बात का बड़ा दुख है कि दशकों से उनका पूरा परिवार खेती कर रहा है, लेकिन आज तक ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार से किसी भी तरह की सहायता मिली है.

'कमर्शियल दर पर मिलती है बिजली'

किसान कहते हैं कि खेतों में जो ट्यूबवेल भी लगाया है, उसका बिल भी दिल्ली सरकार कमर्शियल दर से लेती है. जिससे इन लोगों को काफी परेशानी होती है. दिल्ली सरकार अनाज नहीं खरीदती है, इसे बेचने खुले बाजार में जाना पड़ता है. दिल्ली में ट्रैक्टर नहीं खरीद सकते, क्योंकि यहां किसी तरह की सब्सिडी नहीं मिलती. हरियाणा में किसी रिश्तेदार के नाम पर ट्रैक्टर खरीदकर यहां खेती करते हैं. खाद, बीज सब का यही हाल है. सब मार्केट दर पर मिलती है.

'सरकार को खेती को बढ़ावा देना चाहिए'

वहीं एक अन्य किसान संजय सिंह बताते हैं कि वे धान, गेहूं की खेती और सब्जियों की खेती करते हैं. धान की खेती पूरी तरह पानी से होती है और ट्यूबवेल जो चलाते हैं, उसका बिल 6.5 रुपये प्रति यूनिट कमर्शियल दर पर सरकार वसूलती है. जबकि सरकार को खेती को बढ़ावा देना चाहिए.

किसान सतवीर सिंह कहते हैं-

हमारे पास तो और कोई विकल्प था नहीं. पीढ़ी दर पीढ़ी खेती होती आ रही थी, हमने भी खेती की. हमें लगता नहीं है कि हमारे बच्चे आगे खेती करेंगे. जय जवान-जय किसान वाले देश की राजधानी दिल्ली में किसानों की बदहाली के बारे में सरकार को जरूर सोचना चाहिए.

यहां तक कि मोदी सरकार की सबसे अहम योजनाओं में शामिल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का भी लाभ दिल्ली के किसानों को नहीं मिला है. इससे बड़ी विडंबना क्या होगी.

बता दें कि दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 5 विधानसभा क्षेत्र प्रमुख हैं, जिनमें काफी खेती होती है. नजफगढ़, मुंडका, बवाना, नरेला नांगलोई. तकरीबन 2.5 लाख किसान दिल्ली में हैं. कृषि की जमीनों का जब सरकार अधिग्रहण करती है, तब उन्हें क्या मुआवजा मिले ये तो तय है, लेकिन अन्य इस्तेमाल के लिए किसान अपनी जमीन बेच भी नहीं सकते. ऐसे में खेती करना ही उनके लिए विकल्प बचता है.

नई दिल्ली: कोरोना महामारी काल में एक तरफ केंद्र और दिल्ली सरकार समाज के तमाम वर्गों के हितों का ध्यान रखते हुए नई-नई योजनाओं का ऐलान कर रही है. श्रमिकों, किसानों के लिए भी कई योजनाओं का ऐलान किया गया है, लेकिन इनका लाभ वाकई उन्हें मिलना शुरू हुआ है या नहीं, ये जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम किसानों के पास पहुंची. यहां हकीकत कुछ और ही नजर आई.

'किसानों को किसान नहीं मानती सरकार'

दिल्ली में जहां लाखों की संख्या में किसान हैं, उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा किसान का दर्जा नहीं दिए जाने से वे तमाम सुविधाओं से वंचित हैं. ये किसान सबकुछ अपने बल पर ही करने को मजबूर हैं.

किसानों का छलक उठा दर्द

ईटीवी भारत की टीम जब इन किसानों के पास पहुंची तो इन्होंने कहा कि पीढ़ियों से उनके यहां खेती होती आ रही है. उनके जीवन-यापन का जरिया ही खेती है, लेकिन सुविधाएं न मिलने से काफी परेशानी हो रही है. उनका कहना है कि अगली पीढ़ी शायद खेती ना करे, ऐसे में फिर सरकार क्या करेगी?

बाहरी दिल्ली के तिगीपुर गांव में रहने वाले किसान पप्पन सिंह ने कहा-

साल 2008 तक दिल्ली की तत्कालीन शीला सरकार ने कुछ खेती करने वालों को किसान का दर्जा दिया था, लेकिन ये भी गिने-चुने हैं. अधिकांश लोग जिनके पास खेती की जमीन है और खेती करते हैं, उन्हें ना ही तब शीला सरकार और ना अब केजरीवाल सरकार किसान मानती है. उन्हें इस बात का बड़ा दुख है कि दशकों से उनका पूरा परिवार खेती कर रहा है, लेकिन आज तक ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार से किसी भी तरह की सहायता मिली है.

'कमर्शियल दर पर मिलती है बिजली'

किसान कहते हैं कि खेतों में जो ट्यूबवेल भी लगाया है, उसका बिल भी दिल्ली सरकार कमर्शियल दर से लेती है. जिससे इन लोगों को काफी परेशानी होती है. दिल्ली सरकार अनाज नहीं खरीदती है, इसे बेचने खुले बाजार में जाना पड़ता है. दिल्ली में ट्रैक्टर नहीं खरीद सकते, क्योंकि यहां किसी तरह की सब्सिडी नहीं मिलती. हरियाणा में किसी रिश्तेदार के नाम पर ट्रैक्टर खरीदकर यहां खेती करते हैं. खाद, बीज सब का यही हाल है. सब मार्केट दर पर मिलती है.

'सरकार को खेती को बढ़ावा देना चाहिए'

वहीं एक अन्य किसान संजय सिंह बताते हैं कि वे धान, गेहूं की खेती और सब्जियों की खेती करते हैं. धान की खेती पूरी तरह पानी से होती है और ट्यूबवेल जो चलाते हैं, उसका बिल 6.5 रुपये प्रति यूनिट कमर्शियल दर पर सरकार वसूलती है. जबकि सरकार को खेती को बढ़ावा देना चाहिए.

किसान सतवीर सिंह कहते हैं-

हमारे पास तो और कोई विकल्प था नहीं. पीढ़ी दर पीढ़ी खेती होती आ रही थी, हमने भी खेती की. हमें लगता नहीं है कि हमारे बच्चे आगे खेती करेंगे. जय जवान-जय किसान वाले देश की राजधानी दिल्ली में किसानों की बदहाली के बारे में सरकार को जरूर सोचना चाहिए.

यहां तक कि मोदी सरकार की सबसे अहम योजनाओं में शामिल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का भी लाभ दिल्ली के किसानों को नहीं मिला है. इससे बड़ी विडंबना क्या होगी.

बता दें कि दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 5 विधानसभा क्षेत्र प्रमुख हैं, जिनमें काफी खेती होती है. नजफगढ़, मुंडका, बवाना, नरेला नांगलोई. तकरीबन 2.5 लाख किसान दिल्ली में हैं. कृषि की जमीनों का जब सरकार अधिग्रहण करती है, तब उन्हें क्या मुआवजा मिले ये तो तय है, लेकिन अन्य इस्तेमाल के लिए किसान अपनी जमीन बेच भी नहीं सकते. ऐसे में खेती करना ही उनके लिए विकल्प बचता है.

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