नई दिल्ली: कोरोना नेगेटिव हो जाना मरीजों के ठीक होने की गारंटी नहीं है. राजधानी दिल्ली में कोरोना नेगेटिव हो जाने के बाद भी मरीज कई तरह की समस्याएं डॉक्टर्स को बता रहे हैं. यही नहीं कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट आने के बाद होने वाली मौतों के मामले भी सामने आने शुरू हो गए हैं.
21 अगस्त को दिल्ली सरकार के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में इन्हीं सब कारणों के चलते पोस्ट कोविड क्लीनिक बनाया गया था. इस क्लीनिक में पिछले 7 हफ्ते में अब तक 361 मरीज कोरोना नेगेटिव होकर अपनी समस्याएं लेकर आ चुके हैं, जिनका यहां इलाज चल रहा है.
नोडल अधिकारी ने दी जानकारी
राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में स्थित पोस्ट कोविड क्लीनिक के नोडल अधिकारी डॉ अजीत जैन ने बताया कि 14 से 70 साल तक के मरीज यहां अपनी समस्याएं लेकर आ रहे हैं. 25 से 30 फ़ीसदी मरीजों में मानसिक समस्या जैसी बेचैनी, घबराहट, अचानक से डर जाना, नींद और भूख कम लगना, अवसाद, उदासी और काम में ध्यान ना लगने की शिकायत है. ऐसी शिकायत करने वाले मरीज 14 से 30 साल के उम्र वर्ग के हैं.
30 से 40 फ़ीसदी लोगों ने थकान और बदन दर्द की शिकायत की है, तो वहीं 20 से 25 फीसदी लोगों ने सांस लेने में समस्या बताइ है. 45 से 70 साल के लोगों में सांस लेने की समस्या ज्यादा देखी गई. करीब 5 फ़ीसदी लोगों ने शिकायत की है कि कोरोना से रिकवर होने के बाद भी उनके सुनने और स्वाद लेने की स्थिति सामान्य नहीं हुई है.
361 मरीजों का इलाज
पोस्ट कोविड क्लीनिक के नोडल अधिकारी अजीत जैन ने कहा कि लगभग 361 मरीज अब तक हमें समस्याएं बता चुके हैं. इनमें से 25 फ़ीसदी के आसपास ऐसे मरीज हैं, जिनको न्यूरोसाइकैटरिस्ट प्रॉब्लम है. बदन दर्द की भी समस्या है. साथ ही सांस लेने में तकलीफ वाले मरीजों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.
अजीत जैन ने बताया-
पलमोनरी फाइब्रोसिस या पहले जिनको दमा था या वो दिल के मरीज थे, जिन की बाईपास सर्जरी हुई है, उनका भी ट्रीटमेंट हम कर रहे हैं. यहां डॉक्टरों की एक टीम बनाई गई है, जो यहां आने वाले सभी मरीजों की उचित देखभाल कर रही है.
पोस्ट कोविड क्लीनिक के न्यूरोसाइकेट्रिस्ट डॉक्टर अनुभव भूषण दुआ ने बताया कि कोरोना से नेगेटिव होने के बाद भी मरीज को 3 से 4 महीने लग रहे हैं ठीक होने में. कुछ मामलों में रह-रहकर सांस फूलने की समस्या देखी गई है, जबकि उनका ऑक्सीजन लेवल नापने पर सामान्य होता है. कई बार इसकी वजह फेफड़ों में नहीं होती, बल्कि दिमाग में हो रहे रासायनिक उतार-चढ़ाव के चलते ऐसा होता है. ऐसे मामले में मरीजों को घबराना नहीं चाहिए, बल्कि तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए.