नई दिल्ली: शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी, आर्य सन्यासी स्वामी श्रद्धानंद के 97वें बलिदान दिवस के अवसर पर सोमवार को आर्य समाज द्वारा पुरानी दिल्ली के विभिन्न मार्गो से होती हुई एक विशाल शोभा यात्रा निकाली गई. शोभा यात्रा के अंत में रामलीला मैदान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया. आपको बता दें कि यह शोभा यात्रा पिछले 96 वर्षों प्रतिवर्ष निर्विघ्न आयोजित की जा रही है.
दिल्ली आर्य केंद्रीय सभा के तत्वावधान में आयोजित होने वाली 4 किलोमीटर लम्बी इस शोभा यात्रा और जन सभा में दिल्ली-एनसीआर की लगभग 400 आर्य संस्थाओं के लगभग 20 हज़ार सदस्य पूरे जोश और उत्साह के साथ शामिल हुए. चांदनी चौक स्थित टाउन हाल में स्थापित स्वामी श्रद्धानंद की विशाल प्रतिमा के समक्ष आर्य वीर दल के लड़के और लड़कियों द्वारा किया जाने वाला शौर्य प्रदर्शन इस शोभायात्रा का विशेष आकर्षण रहा. दिल्ली सभा के प्रधान धर्मपाल आर्य, आर्य केंद्रीय सभा के प्रधान सुरेंद्र रैली महामंत्री आर्य सतीश चड्डा, स्वामी प्रवणानंद, स्वामी सच्चिदानंद, तपस्वी सुखदेव वर्मा, महामंत्री विनय आर्य और अन्य महानुभावों ने शोभायात्रा का नेतृत्व किया.
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रामलीला मैदान में आयोजित रैली में आर्य समाज के वरिष्ठ नेताओं के इलावा विभिन राजनीतक संगठनों के शीर्ष नेता, शिक्षाविद व मूर्धन्य सन्यासियों ने जनसभा को संबोधित किया. सामाजिक उत्थान एवं सुदृढ़ राष्ट्र हेतु जिन विषयों को महर्षि दयानंद सरस्वती ने चिह्नित किया और स्वामी श्रद्धानंद ने प्रेरित होकर उनको वास्तविक धरातल देने हेतु अपना जीवन आहूत किया, उन्ही विषयों को वर्तमान सरकार अपने कार्यक्षेत्र में उचित स्थान दे रही है. दिल्ली प्रदेश, भाजपा के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि स्वामी श्रद्धानंद ने उन्हीं विषयों को उजागर किया जिन्हें किए बिना देश में जनकल्याण नही हो सकता.
उल्लेखनीय है कि महर्षि दयानंद के अनन्य भक्त, आर्य सन्यासी स्वामी श्रद्धानंद की 23 दिसंबर 1926 को पुरानी दिल्ली स्थित पीली कोठी में अब्दुल रशीद नामक व्यक्ति द्वारा हत्या कर दी गई थी. क्योंकि स्वामी श्रद्धानंद द्वारा देश भर में घर वापसी और शुद्धि आंदोलन चलाकर हजारों भटके लोगों की सनातन वैदिक धर्म में घर वापसी कराई जा रही थी. उनके इस आन्दोलन से प्रभावीत होने वालो में मुख्य लोगों में प्रसिद्ध अभिनेत्री तबसुम की मां शांति देवी भी शामिल थीं.
स्वामी श्रद्धानंद उस समय एक मात्र ऐसे सन्यासी थे जिन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ सभी मत-सम्प्रदायों के लोगों को एक करने में मुख्य भूमिका निभाई थी. उन्होंने जहाँ एक ओर जामा मस्जिद से सैकड़ों मुस्लिमों को संबोधित किया वहीं अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में बने अकाल तख्त से भी आजादी के आन्दोलन की हुंकार भरी. स्वामी श्रद्धानंद द्वारा अंग्रेजी शिक्षा पद्धिति के समकक्ष गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार की स्थापना गई. जो उस समय आजादी के दीवानों के लिए एक सुरक्षित स्थली तो बना ही बल्कि हजारों क्रांतिकारी और विद्वान भी इस संस्थान से निकले.
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