नई दिल्ली: विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने उपराज्यपाल अनिल बैजल से मिलकर मांग की है कि उन्हें भी दिल्ली नगर निगम में तुरंत प्रभाव से मनोनीत किए जाने का मौका दिया जाए.
उपराज्यपाल से बीजेपी विधायक ने ये भी कहा कि विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने सरकार के 5 साल के कार्यकाल में नेता विपक्ष या अन्य बीजेपी विधायकों को नगर निगम सदस्य के तौर पर मनोनीत नहीं किया.
नगर निगम अधिनियम अनुच्छेद 3 का दिया हवाला
दिल्ली नगर निगम अधिनियम के मुताबिक हर विधानसभा सदस्य को 5 साल के कार्यकाल में कम से कम एक बार निगम सदस्य के तौर पर मनोनीत किया जाना अनिवार्य है. नगर निगम अधिनियम के अनुच्छेद तीन के मुताबिक हर साल विधानसभा के 14-14 सदस्यों को नगर निगम में मनोनीत करने का प्रावधान है. लेकिन 4 साल इंतजार करने के बाद जब 5वें साल के लिए 12 जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर नई सूची जारी की गई तो अंतिम मौका होने के बावजूद भी किसी भी बीजेपी सदस्य का नाम इसमें नहीं है.
पत्र लिख कर की थी शिकायत
इस संबंध में कुछ दिनों पहले विपक्ष ने एतराज जताते हुए विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल से इसकी पत्र लिखकर शिकायत भी की थी. मगर अध्यक्ष ने उसका कोई संज्ञान नहीं लिया. अब उपराज्यपाल अनिल बैजल से मुलाकात कर अपनी शिकायत दर्ज कराई है.
![नेता विपक्ष, नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/del-ndl-01-bjp-mp-call-upon-lg-demand-equal-opportunity-vis-7201354_23072019195209_2307f_1563891729_750.jpg)
'नोटिस वापस लेकर उसे संशोधित करें'
विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के मुखिया होते हैं. इस नाते वो विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश जारी करें कि 12 जुलाई को जारी किए गए नोटिस वापस लेकर उसे संशोधित करें और विपक्ष के सदस्यों को दिल्ली नगर निगम में मनोनीत करें.
बीजेपी विधायकों ने उपराज्यपाल से अनुरोध किया कि वे विधानसभा अध्यक्ष को दिशा निर्देश दे कि बीजेपी विधायकों को भी नगर निगमों में प्रतिनिधित्व का अवसर दिया जाए.
मजबूर होकर लेनी पड़ेगी कानून की शरण
विधानसभा के चालू 5 वर्षीय कार्यकाल के दौरान विपक्ष के एक भी विधायक को दिल्ली नगर निगम में मनोनीत नहीं किया गया. जबकि सत्ता पक्ष के कई विधायक ऐसे हैं जो लगातार तीन-तीन बार नगर निगम के सदस्य के रूप में मनोनीत किए जा चुके हैं. उन्होंने कहा कि अध्यक्ष संविधान के उल्लंघन की अपनी गलती को सुधारता है तो ठीक नहीं तो विपक्षी विधायकों को मजबूर होकर कानून की शरण में जाना पड़ेगा.