नई दिल्ली : नवरात्रि पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है. नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. यहां ब्रह्मा का अर्थ तपस्या से है. माता दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला होता है.
माता ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है. माता ब्रह्मचारिणी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है. देवी की दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में माता ने कमंडल धारण किया है.
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
झंडेवालान स्थित झंडेवाली दुर्गा मंदिर के पुजारी अंबिका प्रसाद पंत ने बताया कि माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से सब कष्टों का निवारण होता है. पुजारी के अनुसार सबसे पहले जिन देवी देवताओं गणों एवं योगनियों को कलश में आमंत्रित किया है. उनका फूल, अक्षत,रोली, चंदन से पूजा करना चाहिए. उसके बाद दूध दही, शक्कर, धृत व मधु से उन्हें स्नान कराना चाहिए. प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा देनी चाहिए. कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल,नगर देवता, ग्राम देवता की पूजा करनी चाहिए.
माता को ब्रह्मचारिणी के नाम से क्यों जाना जाता है?
माता के बारे में कहा जाता है कि नारद मुनि ने उनके लिए भविष्यवाणी की थी कि उनकी शादी भगवान शंकर से होगी. जिसके लिए उन्हें कठोर तपस्या करनी होगी. माता को भगवान शंकर से शादी करनी थी, इसलिए वह तप करने के लिए जंगल चली गई थी. जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है.
ऐतिहासिक महत्व
नवरात्रि में भक्त मां ब्रह्मचारिणी की पूजा इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो सके और वे जीवन में आने वाली परेशानियों से निपट सके. मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में कमंडल विद्यमान रहता है. मां ब्रह्मचारिणी को पर्वत हिमवान की बेटी भी कही जाती है.