नई दिल्ली: पूर्व आईपीएस अधिकारी और पुणे की पूर्व पुलिस कमिश्नर मीरा बोरवंकर ने सोमवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में अपनी किताब "मैडम कमिश्नर" में लिखी घटना का जिक्र किया. प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्होंने कहा कि पुलिस स्टेशन की जमीन बिल्डर को देने के लिए उन पर दबाव बनाया गया. बोरवंकर ने कहा कि किताब में जिक्र की हुई घटना में कोई मिलावट नहीं है और यह शत-प्रतिशत सच्ची घटना है.
क्या थी जमीन को लेकर दवाब घटना: प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में पूर्व आईएएस मीरा बोरवंकर ने कहा कि मैंने अपनी किताब "मैडम कमिश्नर" में एक घटना बताई है. यह घटना तब की है जब मैंने पुणे पुलिस आयुक्त का चार्ज लिया था. मुझे बताया गया कि सेंट्रल पुणे में तीन एकड़ एक जगह है जो एक प्राइवेट बिल्डर को देनी है. उस पर मैंने सवाल किया कि क्यों देनी है?
जवाब मिला कि बिल्डर की जगह पुलिस स्टेशन के दाएं और बाएं तरफ है और आपका पुलिस स्टेशन बीच में अटकता है. पुलिस स्टेशन बाजू में कर लीजिए और ये जगह आप बिल्डर को दे दीजिए. मेरा कहना था कि मैं पुलिस की जमीन प्राइवेट बिल्डर को क्यों दूं, जिस जगह कि पुणे पुलिस को जरूरत है.
वर्तमान में महाराष्ट्र की उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कार्यालय के लिए घर बनाने के लिए जो जमीन है वह हस्तांतरण करने को कहा लेकिन मैंने इनकार कर दिया. इसके बाद महाराष्ट्र के गृह विभाग ने एक मीटिंग बुलाई. मीटिंग में सबसे पूछा गया और निर्णय लिया गया कि जो यह जगह है वह पुलिस के पास ही रहेगी और आज भी वह पुलिस के ही पास है. उन्होंने आगे कहा कि हमने जमीन को बचा लिया. इसलिए जांच की आवश्यकता नहीं है और मैंने इसका जिक्र अपनी किताब में भी किया है.
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क्यों पड़ी प्रेस वार्ती की जरूरत: बोरवंकर ने अपनी किताब में दावा किया है कि अजित पवार ने पुलिस की जमीन नीलाम करवा दी थी, जो बाद में उन्हें वापस मिल गई. बीते कुछ दिनों से इस बात पर सियासत गरम है. बोरवंकर ने कहा था कि स जमीन को प्राइवेट बिल्डर को देने के लिए कई तरीके से उन पर दबाव भी बनाए गए लेकिन उन्होंने जमीन देने से साफ मना कर दिया. मामले को लेकर कुलसी से राजनीतिक सियासत तेज हो गई है. सियासत तेज होने पर अजीत पवार कार्यालय की ओर से इन आरोपों को खारिज किया गया है. इसके बाद पुणे की पूर्व पुलिस कमिश्नर मीरा बोरवंकर ने सोमवार को प्रेस वार्ता कर कहा कि उनकी किताब में उन्होंने जो कुछ भी लिखा है वह बिल्कुल सही है.
बोरवंकर ने कहा कि आज की स्थिति में राजनीतिक नेता बहुत ही पॉवरफुल हैं. अधिकारियों की पोस्टिंग इन पर निर्भर करती है लेकिन हमने अपने कार्यकाल के दौरान जो उचित समझा वह किया. हमने पुलिस की जगह प्राइवेट बिल्डर को नहीं दी. यह राजनीतिक लोगों को अच्छा नहीं लगा. उस समय सीआईडी में बिल्डर के खिलाफ बहुत बड़े पैमाने पर मामले दर्ज हो रहे थे.
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