नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में वर्तमान समय में बीते कुछ सालों में बढ़ती आबादी और बड़े हुए मौत के आंकड़ों के चलते अब ब्यूरियल ग्राउंड्स यानी कि कब्रिस्तान में भी जगह कम पड़ने लग गई है.जिसको देखते हुए तमाम संबंधित विभागों और कब्रिस्तान की देखरेख करने वाले एनजीओ और संगठनों से जुड़े लोगों के द्वारा जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं. ताकि अपने परिवार के लोगों की अंतिम यात्रा के लिए कब्रिस्तान आए लोगों को किसी प्रकार की असुविधा का सामना ना करना पड़े.
भविष्य को देखते हुए जरूरी कदम उठाना आवश्यक
देश की राजधानी दिल्ली में सबसे बड़ा कब्रिस्तान आईटीओ पर स्थित है, जो कि लगभग 45 से 50 एकड़ जमीन पर बना हुआ है. लेकिन यहां पर भी अब वर्तमान समय में जगह कम पड़ने लगी है. 1924 में इस कब्रिस्तान की स्थापना की गई थी.जिसके बाद सरकार के द्वारा 1964 में इसे 14 एकड़ अतिरिक्त जमीन देने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था. लेकिन अभी तक अतिरिक्त जमीन आईटीओ पर स्थित कब्रिस्तान को नहीं मिली है.बहरहाल हालात यह हैं कि राजधानी दिल्ली के आईटीओ पर बने सबसे बड़े कब्रिस्तान में भी अब लोगों को दफनाने के लिए जगह नहीं बची है.
कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले हाजी शमीम अहमद खान ने ईटीवी भारत को बातचीत के दौरान बताया कि जगह की कमी को देखते हुए कब्रिस्तान में अब किसी प्रकार से नई परमानेंट कब्रों को बनाने पर रोक लगा दी गई है और पुरानी कब्रों के ऊपर मिट्टी की 3 से 4 फीट मोटी परत चढ़ाई जा रही है.जिससे कि जगह बन सके और लोगों को मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार दफनाया जा सके।
नॉर्थ एमसीडी ने भी रखा अपना पक्ष
दिल्ली की सबसे बड़ी सिविक एजेंसी नॉर्थ एमसीडी के एडिशनल एसएचओ डॉ. प्रमोद वर्मा ने निगम का पक्ष रखते हुए ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान साफ तौर पर कहा कि राजधानी दिल्ली के अंदर जितने भी वर्तमान समय में बुरिअल ग्राउंड हैं, उन सभी की देखभाल एनजीओ और निजी संगठनों द्वारा किए जा रहे हैं. उसमें निगम का किसी भी तरीके से हस्तक्षेप नहीं है.निगम सिर्फ बच्चों के कुछ ब्यूरियल ग्राउंड की मेंटेनेंस करता है.जिसे की भली भांति तरीके से निगम के द्वारा किया जा रहा है.
हां यह सच है कि बच्चों के लिए बनाए गए कब्रिस्तान में भी अब जगह कम पड़ने लगी है.जिसको देखते हुए कब्रिस्तान में 3 से 6 फीट मोटी मिट्टी की लेयर पुरानी कब्रों पर बनाई जा रही है.ताकि उसी जगह को दोबारा कब्र बनाने के लिए प्रयोग किया जाए.इसे एक तरह से उस जगह का रीसायकल भी कहा जा सकता हैं या फिर इसे multi-layer ब्यूरियल ग्राउंड की स्थापना भी कह सकते हैं.
डॉ. प्रमोद वर्मा, एडिशनल एसएचओ, नॉर्थ एमसीडी
नई नीति के तहत बनाई जा रही है जगह
आईटीओ पर बने कब्रिस्तान के केयरटेकर कमेटी के सदस्य ने बातचीत के दौरान में बताया कि पिछले चार-पांच साल से कब्रिस्तान में नई परमानेंट कब्र को बनाने पर रोक लगा दी गई है. साथ ही साथ जगह की कमी को देखते हुए 10 साल पुरानी कब्रो पर मिट्टी की मोटी परत बना कर समतल कर दिया जाता है. जिसके बाद उस जगह पर दोबारा मुस्लिम रीति रिवाज से साथ लोगो को वहां पर दफनाया जा सके. विदेशों में पहले ही जगह की कमी को देखते हुए इस नई नीति के तहत कई जगह पर इसे अपनाया गया है और काम भी किया जा रहा है. इस नई नीति को मल्टीलेवल ब्यूरियल ग्राउंड के नाम से भी जाना जाता है।
बहरहाल, कुल मिलाकर देखा जाए कोरोना के चलते और अन्य वजहों से दिल्ली में लगातार बड़ी मौतों की संख्या के चलते अब बुरिअल ग्राउंड यानी कि कब्रिस्तान में भी अब जगह कम पड़ने लग गयी है. जिसके चलते चाहे वह सिविक एजेंसियां हो या फिर कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले एनजीओ और अन्य संगठन से जुड़े लोग, सभी अब नई नीतियों को अपना रहे हैं. जिससे कि लोग अपने परिवार के लोगों को आखिरी विदाई दे सकें.
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दिल्ली के सबसे बड़े कब्रिस्तान में बनी पुरानी कब्रों पर मिट्टी की मोटी परत बनाकर समतल किया जा रहा है.ताकि कब्रिस्तान में आये लोगों को अपने परिवार के सदस्य की अंतिम विदाई के लिए जगह को लेकर परेशानी न हो .वहीं ईसाइयों के कश्मीरी गेट स्थित सिमेन्टेड क्रीमेशन में जगह न होने चलते इसे अब दूसरी जगह शिफ्ट भी कर दिया गया है.