नई दिल्ली: दिल्ली बोर्ड ऑफ एजुकेशन अब दिल्ली का अपना शिक्षा बोर्ड होगा. शनिवार को इसकी घोषणा करते हुए सीएम केजरीवाल ने कहा कि उन्हें इस निर्णय से व्यक्तिगत तौर पर खुशी है. उन्होंने कहा कि राजनीति में आने से पहले आंदोलन के दिनों में ही लगता था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बहुत दूषित है और इसमें बदलाव करके ही देश की कई समस्याओं को ठीक किया जा सकता है. बीते छह साल के दिल्ली सरकार के कार्यों को देखें, तो अरविंद केजरीवाल के इस अहसास का असर दिखता है.
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शिक्षा बजट में 104 फीसदी की बढ़ोतरी
अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी के आधार का एक महत्वपूर्ण दावा शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव भी था. 2013 की 49 दिन की सरकार के बाद, जब 2015 में आम आदमी पार्टी पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में पहुंची, तब सबसे पहले शिक्षा क्षेत्र में कार्यों की शुरुआत हुई. इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण यह है कि 2015 के केजरीवाल सरकार के पहले बजट में शिक्षा के मद में आवंटन को 104 फीसदी बढ़ाया गया था.
पहले बजट में शिक्षा के लिए 23.7% आवंटन
केजरीवाल सरकार के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने 2015 में कुल 41,500 करोड़ का बजट पेश किया था, जिसमें शिक्षा का बजट था 9836 करोड़. यानी अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार के पहले कार्यकाल में केजरीवाल सरकार ने शिक्षा पर 23.7 फीसदी आवंटन किया था. अगले एक साल में पूरा जोर एजुकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करने पर था. पुराने क्लासरूम की मरम्मत हुई, नई बिल्डिंग बनाई गई. अगले साल इस मद में और इजाफा हुआ.
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जब शिक्षा क्षेत्र को मिला 11 हजार करोड़ रुपये
2016-17 में केजरीवाल सरकार ने 47,600 करोड़ का बजट पेश किया, जिसमें से शिक्षा का बजट 10,690 करोड़ था. यह कुल बजट का 22.45 फीसदी था. अगले साल यह बढ़कर 23.54 फीसदी हो गया. 2017-18 में दिल्ली सरकार के कुल 48 हजार करोड़ के बजट में शिक्षा क्षेत्र की हिस्सेदारी थी 11,300 करोड़. यह वह समय था, जब दिल्ली सरकार शिक्षा के क्षेत्र में किए गए अपने कार्यों को लेकर पीठ थपथपाने लगी थी.
हैप्पीनेस करिकुलम की हुई शुरुआत
इसके अगले साल, शिक्षा क्षेत्र के बजट में आवंटन में और वृद्धि की गई और यह 13,997 करोड़ पर पहुंच गया. 2018-19 में दिल्ली सरकार ने कुल 53 हजार करोड़ का बजट पेश किया था, जिसका 26.4 फीसदी शिक्षा को समर्पित था. इसी साल जुलाई में दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों में हैप्पीनेस करिकुलम की शुरुआत की. देश में पहली बार ऐसा किया गया और देश के अलग-अलग राज्यों से लेकर कई विदेशी मेहमान भी हैप्पीनेस क्लास देखने आए.
दिल्ली सरकार का शिक्षा के लिए बजट |
2015-16 | कुल- 41,500 करोड़ | शिक्षा पर- 9836 करोड़ | कुल बजट का- 23.7 फीसदी |
2016-17 | कुल 47,600 करोड़ | शिक्षा पर- 10,690 करोड़ | कुल बजट का- 22.45 फीसदी |
2017-18 | कुल- 48,000 करोड़ | शिक्षा पर- 11,300 करोड़ | कुल बजट का- 23.54 फीसदी |
2018-19 | कुल- 53,000 करोड़ | शिक्षा पर- 13,997 करोड़ | कुल बजट का- 26.4 फीसदी |
2019-20 | कुल-60,000 करोड़ | शिक्षा पर- 15,000 करोड़ | कुल बजट का- 25 फीसदी |
2020-21 | कुल- 65,000 करोड़ | शिक्षा पर- 15,815 करोड़ | कुल बजट का- 24.33 फीसदी |
हैप्पीनेस क्लास देखने पहुंचीं मेलानिया ट्रंप
दिल्ली सरकार के हैप्पीनेस क्लास को तब सबसे ज्यादा शोहरत मिली, जब अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी मेलानिया ट्रम्प दिल्ली सरकार के स्कूलों का हैप्पीनेस क्लास देखने पहुंचीं. सत्ताधारी आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार ने इसे खूब प्रचारित भी किया. 2019 की बात करें, तो वित्त वर्ष 2019-20 के लिए दिल्ली सरकार ने 60 हजार करोड़ का बजट पेश किया, जिसमें से शिक्षा मद में दिए गए 15 हजार करोड़ रुपये. यह कुल बजट का 25 फीसदी था.
5 लाख का कमरा 25 लाख में बनाने का आरोप
शिक्षा के मद में बजट में लगातार हो रही बढ़ोतरी के बीच, ये तथ्य भी सामने आए कि शिक्षा मद में घोषित बजट पूरी तरह से खर्च नहीं हो रहे. शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव के दावे कर रही केजरीवाल सरकार पर घोटाले का आरोप भी लगा. जुलाई 2019 में भाजपा ने आरोप लगाया कि केजरीवाल सरकार ने 5 लाख में तैयार होने वाले कमरों के निर्माण में 25 लाख रुपये खर्च किए हैं और कई स्कूलों में बिना निर्माण के ही भुगतान हो गया है.
एसीबी तक पहुंची शिक्षा-घोटाले की जांच
इस पूरे मामले में दिल्ली सरकार पर दो हजार करोड़ के घोटाले का आरोप लगा और इसकी जांच एसीबी के पास भी गई. हालांकि शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया. इन्हीं सब आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच दिल्ली में 2020 का विधानसभा चुनाव हुआ और फिर से भारी बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी सत्ता में आई. इसे शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव की जीत के तौर पर दिखाया गया.
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शिक्षा में बदलाव को समर्पित रही चुनावी जीत
तीसरी बार सत्ता में वापसी के बाद जब मनीष सिसोदिया ने बजट पेश किया, तब इसमें 5 हजार करोड़ की बढ़ोतरी हो गई थी. 2020-21 में केजरीवाल सरकार ने 65 हजार करोड़ का बजट पेश किया, जिसमें से शिक्षा क्षेत्र का आवंटन था 15,815 करोड़, यानी कुल बजट का 24.33 फीसदी. शिक्षा के बजट में वृद्धि के साथ-साथ दिल्ली सरकार ने स्कूलों की बदलती तस्वीर और परीक्षा परिणाम को भी खूब प्रचारित प्रसारित किया.
नए बोर्ड के लिए बनाई गईं दो समितियां
यही वह समय था, जब दिल्ली सरकार ने अपना खुद का शिक्षा बोर्ड बनाने की तरफ कदम बढ़ाया. इससे एक साल पहले ही उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली का अपना शिक्षा बोर्ड बनाने की घोषणा की थी. लेकिन इसके लिए दो महत्वपूर्ण समितियों के गठन को मंजूरी मिली 15 जुलाई 2020 को. दिल्ली शिक्षा बोर्ड समिति और दिल्ली पाठ्यक्रम सुधार समिति नाम से दो समितियां बनाई गईं.
विभिन्न देशों के बोर्ड्स का किया अध्ययन
इन समितियों में आईआईएम अहमदाबाद के संकाय सदस्य अंकुर सरीन और ईएसआई सेंटर की निदेशक वीलिमा बाधव सहित कई विशेषज्ञ भी शामिल किए गए थे. इन सभी ने विभिन्न देशों के अच्छे बोर्ड्स का अध्ययन किया और अब उनकी रिपोर्टर्स के आधार पर नया शिक्षा बोर्ड अस्तित्व में आने जा रहा है. अरविंद केजरीवाल ने इसके उद्देश्यों में बच्चों को कट्टर देशभक्त और अच्छा इंसान बनाने से लेकर रोजगारोन्मुख शिक्षा को भी शामिल बताया है.
अलग से हो सकता है बजट का प्रावधान
नए शिक्षा बोर्ड के अनुसार, पाठ्यक्रम की शुरुआत शैक्षणिक सत्र 2021-22 से ही होने जा रही है और इसके लिए 20-25 सरकारी स्कूलों को चुना जाने वाला है. 9 मार्च को जो बजट पेश हो रहा है. उसमें नए शिक्षा बोर्ड के लिए भी अलग से बजट का प्रावधान हो सकता है. लेकिन इस बीच बड़ी चुनौती ये होगी कि किस तरह दिल्ली सरकार पुरानी शिक्षा पद्धति को बदलकर उसे नया रूप दे पाती है.