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मानवाधिकार दिवस: मानवाधिकार को लेकर भारत की संस्थाएं कितनी सजग

10 दिसंबर को विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसकी पूर्व संध्या पर दिल्ली में इससे जुड़े एक सेमिनार का आयोजन हुआ.

importance of international human rights day in india
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस
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Published : Dec 10, 2019, 1:26 AM IST

Updated : Dec 10, 2019, 1:45 PM IST

नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ के ऑडिटोरियम में मानवाधिकार को लेकर संस्थाओं के दायित्व पर चर्चा हुई. इस चर्चा में मानवाधिकार से जुड़े रहे विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य लोग मौजूद रहे. सेमिनार में कई वक्ताओं के संबोधन का महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु हाल की तेलंगना की घटना रही, जिसमें बलात्कार के चार आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर चर्चा

कई गणमान्य लोग रहे मौजूद
चर्चा के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता और आईएसआईएल के अध्यक्ष प्रवीण एच. पारीख, विदेश सेवा के अधिकारी रहे एनएचआरसी के सदस्य डॉ. डी. एम. मुले, पटना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वर्तमान में पंजाब मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी, एनएचआरसी की सदस्य ज्योतिका कालरा, आईपीएस अधिकारी अजय चौधरी और वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा ने सेमिनार को संबोधित किया.

'मानवाधिकार की बात करने वाले को राष्ट्रविरोधी की संज्ञा'
मानवाधिकार की बात करने वाले राष्ट्रविरोधी जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने इस घटना और इसपर एक महिला सांसद की टिप्पणी को लेकर सवाल उठाया. उनका सवाल इसे लेकर था कि जब कानून बनाने वाले ही इस तरह की बात करेंगे, तो फिर मानवाधिकार का क्या होगा. कुछ यही चिंता वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा की भी थी. उन्होंने इसे शर्मनाक घटना करार दिया. वहीं, मानवाधिकार आयोग की सदस्य ज्योतिका कालरा की चिंता यह थी कि किस तरह से आज मानवाधिकार की बात करने वालों को राष्ट्र विरोधी तक की संज्ञा दी जा रही है.

इस कार्यक्रम में वक्ता के तौर पर उपस्थित आईपीएस अधिकारी अजय चौधरी ने अपने अनुभव के आधार पर बताया कि किस तरह अभी भी नीचे से लेकर ऊपर तक मानवाधिकार का हनन होता है. उन्होंने अपने संबोधन में संवाद को मानवाधिकार के लिए जरूरी बताया और एक शेर के जरिए अपनी बात समाप्त की. 'होठों को सी के देखिए पछताइएगा आप हंगामे जाग उठते हैं अक्सर घुटन के बाद.'

नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ के ऑडिटोरियम में मानवाधिकार को लेकर संस्थाओं के दायित्व पर चर्चा हुई. इस चर्चा में मानवाधिकार से जुड़े रहे विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य लोग मौजूद रहे. सेमिनार में कई वक्ताओं के संबोधन का महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु हाल की तेलंगना की घटना रही, जिसमें बलात्कार के चार आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर चर्चा

कई गणमान्य लोग रहे मौजूद
चर्चा के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता और आईएसआईएल के अध्यक्ष प्रवीण एच. पारीख, विदेश सेवा के अधिकारी रहे एनएचआरसी के सदस्य डॉ. डी. एम. मुले, पटना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वर्तमान में पंजाब मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी, एनएचआरसी की सदस्य ज्योतिका कालरा, आईपीएस अधिकारी अजय चौधरी और वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा ने सेमिनार को संबोधित किया.

'मानवाधिकार की बात करने वाले को राष्ट्रविरोधी की संज्ञा'
मानवाधिकार की बात करने वाले राष्ट्रविरोधी जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने इस घटना और इसपर एक महिला सांसद की टिप्पणी को लेकर सवाल उठाया. उनका सवाल इसे लेकर था कि जब कानून बनाने वाले ही इस तरह की बात करेंगे, तो फिर मानवाधिकार का क्या होगा. कुछ यही चिंता वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा की भी थी. उन्होंने इसे शर्मनाक घटना करार दिया. वहीं, मानवाधिकार आयोग की सदस्य ज्योतिका कालरा की चिंता यह थी कि किस तरह से आज मानवाधिकार की बात करने वालों को राष्ट्र विरोधी तक की संज्ञा दी जा रही है.

इस कार्यक्रम में वक्ता के तौर पर उपस्थित आईपीएस अधिकारी अजय चौधरी ने अपने अनुभव के आधार पर बताया कि किस तरह अभी भी नीचे से लेकर ऊपर तक मानवाधिकार का हनन होता है. उन्होंने अपने संबोधन में संवाद को मानवाधिकार के लिए जरूरी बताया और एक शेर के जरिए अपनी बात समाप्त की. 'होठों को सी के देखिए पछताइएगा आप हंगामे जाग उठते हैं अक्सर घुटन के बाद.'

Intro:10 दिसंबर को विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसकी पूर्व संध्या पर दिल्ली में इससे जुड़े एक सेमिनार का आयोजन हुआ.


Body:नई दिल्ली: सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ के ऑडिटोरियम में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर मानवाधिकार को लेकर संस्थाओं के दायित्व पर चर्चा हुई. किसी न किसी रूप से मानवाधिकार से जुड़े रहे विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य लोग इस चर्चा में मौजूद रहे. न्यायिक प्रकिया से जुड़े लोगों ने की शिरकत वरिष्ठ अधिवक्ता और आईएसआईएल के अध्यक्ष प्रवीण एच. पारीख, विदेश सेवा के अधिकारी रहे एनएचआरसी के सदस्य डॉ. डी. एम. मुले, पटना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वर्तमान में पंजाब मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी, एनएचआरसी की सदस्य ज्योतिका कालरा, आईपीएस अधिकारी अजय चौधरी और वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा ने सेमिनार को संबोधित किया. एनकाउंटर रहा केंद्रबिंदु यूं तो सभी ने अपने अनुभव और इससे जुड़े तथ्यों के आधार पर मानवाधिकार की जरूरत और अहमियत पर बल दिया. लेकिन इस सेमिनार में कई वक्ताओं के संबोधन का महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु हाल की तेलंगना की घटना रही, जिसमें बलात्कार के चार आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था. मानवाधिकार की बात करने वाले राष्ट्रविरोधी जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी ने इस घटना और इस पर एक महिला सांसद की टिप्पणी को लेकर सवाल उठाया. उनका सवाल इसे लेकर था कि जब कानून बनाने वाले ही इस तरह की बात करेंगे, तो फिर मानवाधिकार का क्या होगा. कुछ यही चिंता वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा की भी थी. उन्होंने इसे शर्मनाक घटना करार दिया. वहीं, मानवाधिकार आयोग की सदस्य ज्योतिका कालरा की चिंता यह थी कि किस तरह से आज मानवाधिकार की बात करने वालों को राष्ट्र विरोधी तक की संज्ञा दी जा रही है.


Conclusion:इस कार्यक्रम में वक्ता के तौर पर उपस्थित आईपीएस अधिकारी अजय चौधरी ने अपने अनुभव के आधार पर बताया कि किस तरह अभी भी नीचे से लेकर ऊपर तक मानवाधिकार का हनन होता है. उन्होंने अपने संबोधन में संवाद को मानवाधिकार के लिए जरूरी बताया और एक शेर के जरिए अपनी बात समाप्त की: 'होठों को सी के देखिए पछताइएगा आप हंगामे जाग उठते हैं अक्सर घुटन के बाद.' '
Last Updated : Dec 10, 2019, 1:45 PM IST
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