नई दिल्ली: हाईकोर्ट आज टू-जी स्पेक्ट्रम केस में पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा और दूसरे आरोपियों को ट्रायल कोर्ट से बरी करने के फैसले के खिलाफ सीबीआई और ईडी की याचिका पर सुनवाई करेगा. पिछली सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कोर्ट को बताया था कि हाईकोर्ट में अपील दायर करने के लिए केंद्र सरकार से जरूरी अनुमति ली गई थी.
पिछले 6 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान एएसजी संजय जैन ने कोर्ट को बताया था कि सीबीआई की ओर से वकील एस भंडारी को स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त किया गया था. उन्होंने ही टू-जी मामले में सीबीआई की ओर से अपील दायर की थी. केंद्र सरकार ने भंडारी को सीबीआई के सभी मामलों में प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी थी. संजय जैन ने टू-जी मामलों में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त करने के केंद्र के नोटिफिकेशन की प्रति कोर्ट को सौंपा था.
अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 24(8) के तहत हुई थी नियुक्ति
संजय जैन ने कहा था कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 24(8) के मुताबिक टूजी केस में पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति हुई है. उन्होंने कहा था कि जब मेहता को स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर नियुक्त किया गया तो किसी ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल कर कहा था कि टू-जी के मामले में स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर को नियुक्त करने का विशेषाधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट को है. उस याचिका पर कोर्ट ने कहा कि ये अवमानना नहीं है क्योंकि ट्रायल खत्म हो चुका है और सुप्रीम कोर्ट को इसमें स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर को नियुक्त करने की जरुरत नहीं है.
केंद्र का आदेश कोर्ट को सौंपा
संजय जैन ने केंद्र सरकार के वो दस्तावेज कोर्ट को दिखाया था. जिसमें कहा गया था कि टू-जी मामला अपील के लिए सही केस है. केंद्र के इसी आदेश के बाद सीबीआई को अपील दायर करने को कहा गया. जैन ने एडवोकेट एक्ट में सीनियर और दूसरे एडवोकेट के बारे में बताया.
उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया रुल्स के बारे में बताते हुए कहा था कि सीनियर एडवोकेट की सीमाएं हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर के रुप में नियुक्ति का ये मतलब नहीं है कि वो वह सब कुछ करेंगे जो एक सीनियर वकील नहीं कर सकता है. तब कोर्ट ने पूछा था कि क्या ये सभी दस्तावेज कोर्ट के रिकॉर्ड में हैं. तब जैन ने कहा था कि अभी नहीं, हम इन्हें रिकॉर्ड में रख सकते हैं.
केंद्र से जरूरी अनुमति नहीं ली गई
पिछले 5 अक्टूबर को आरोपियों की ओर से कहा गया था कि सीबीआई ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल करते समय तय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया और न ही उसने केंद्र सरकार से जरूरी अनुमति ली. सुनवाई के दौरान ए राजा और दूसरे आरोपियों की ओर से कहा गया था कि सीबीआई की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है.
उन्होंने कहा था कि सीबीआई मैन्युअल के मुताबिक हाईकोर्ट में अपील दायर करने के लिए केंद्र सरकार से जरूरी स्वीकृति नहीं ली गई है. आरोपियों में से एक संजय चंद्रा की ओर से वकील विजय अग्रवाल ने कहा था कि सीबीआई ने सीबीआई मैन्युअल की धारा 23(20) के मुताबिक अटार्नी जनरल से अपील दायर करने के लिए कोई रेफरेंस नहीं लिया.
अटार्नी जनरल से अनुमति लेनी होती है
अग्रवाल ने कहा था कि सीबीआई मैन्युअल की धारा 23(20) के मुताबिक महत्वपूर्ण केसों में अगर आरोपी बरी किए जाते हैं तो अपील करने के पहले अटार्नी जनरल की अनुमति ली जाती है. महत्वपूर्ण केसों का निर्धारण मामले में धनराशि, अभियुक्तों का कद और केस की संवेदनशीलता के आधार पर तय होता है.
कोर्ट का समय बर्बाद करना चाहते हैं आरोपी
सुनवाई के दौरान एएसजी संजय जैन ने कहा था कि कोर्ट को ऐसी याचिकाओं पर अपना न्यायिक समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. जैन ने कहा था कि किसी मामले में अपील दायर करने का मामला एजेंसी का आंतरिक फैसला होता है, लेकिन अगर जरूरत पड़ेगी तो उस फैसले की प्रति कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में सौंपी जा सकती है. आरोपी छोटे-छोटे बहाने बनाकर समय बर्बाद करना चाहते हैं.
जल्द सुनवाई की अनुमति दी थी
पिछले 29 सितंबर को कोर्ट ने इस मामले पर जल्द सुनवाई की अनुमति दे दी थी. सुनवाई के दौरान सीबीआई और ईडी की ओर से कहा गया था कि जल्द सुनवाई की मांग के पीछे जनहित है. वहीं दूसरी तरफ ए राजा समेत दूसरे आरोपियों ने कहा था कि जल्द सुनवाई की मांग का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि हाईकोर्ट के दिशानिर्देश के मुताबिक कोरोना के संकट के दौरान बरी किए जाने के फैसले पर सुनवाई करने में कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए.
ए राजा समेत 19 आरोपी हैं
इस मामले में सीबीआई और ईडी ने ए राजा औऱ कनिमोझी समेत सभी 19 आरोपियों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. 25 मई 2018 को कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा और कनिमोझी समेत सभी आरोपियों को नोटिस जारी किया था. हाईकोर्ट ने इसी मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की अपील पर सुनवाई करते हुए सभी आरोपियों को नोटिस जारी किया है.
2017 में बरी किया गया था
बता दें कि पटियाला हाउस कोर्ट ने 21 दिसंबर 2017 को फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया था. जज ओपी सैनी ने कहा था कि अभियोजन पक्ष ये साबित करने में नाकाम रहा है कि दो पक्षों के बीच पैसे का लेन देन हुआ है.