नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला की 23 हफ्ते की भ्रूण को हटाने की अनुमति देने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए एम्स को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया है. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने एम्स को 13 जुलाई तक महिला का परीक्षण कर ये बताने का निर्देश दिया है कि भ्रूण हटाने पर उसके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
याचिका में कहा गया है कि महिला के भ्रूण को स्पाईनल और ह्रदय की समस्याएं हैं. इन बीमारियों से भ्रूण को बचाया जाना मुश्किल है और इससे महिला को आघात लग सकता है. याचिका में कहा गया है कि इससे महिला को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. याचिका में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट क धारा 3(2) को चुनौती दी गई है, जिसके तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की अनुमति नहीं है.
एमटीपी एक्ट की धारा 3(2) मनमाना है
याचिका में कहा गया है कि एमटीपी एक्ट की धारा 3(2) मनमाना है. क्योंकि किसी भी भ्रूण की गड़बड़ियों के बारे में पता ही 20 हफ्ते के बाद होता है. याचिका में कहा गया है कि एमटीपी एक्ट की धारा 5 संविधान की धारा 14 और 21 के खिलाफ है. कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एम्स को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश देने के अलावा दिल्ली सरकार को भी नोटिस जारी किया. मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी.