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शिक्षा मंत्री के आवास पर गेस्ट टीचर्स का हल्ला बोल, कहा- नौकरी नहीं तो मौत ही सही

शिक्षा मंत्री के आवास पर प्रदर्शन कर रहे गेस्ट टीचर्स में कुछ शिक्षकों ऐसे हैं जिनके दोनों हाथ नहीं है और पैरों से ही लिखकर वो बच्चों को पढ़ाते हैं और उसी से अपनी आजीविका चलाते हैं. उन्होंने कहा कि यदि ऐसे में सरकार हमारी नौकरी छीन लेगी तो हमारा गुजारा मुश्किल हो जाएगा.

शिक्षा मंत्री के आवास पर गेस्ट टीचर्स का हल्ला बोल
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Published : Mar 6, 2019, 1:44 PM IST

नई दिल्ली: सरकारी स्कूलों में अब तक सेवा दे रहे अतिथि अध्यापक 28 फरवरी को अनुबंध खत्म होने के बाद बेरोजगार हो गए हैं और अपनी आजीविका की चिंता में लगातार 5 दिन से शिक्षा मंत्री के आवास पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इन टीचर्स का कहना है कि ये कॉन्ट्रेक्ट बढ़ाने के लिए प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं बल्कि इन्हें स्थाई नौकरी चाहिए.

शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर बीते 5 दिन से प्रदर्शन कर रहे गेस्ट टीचर्स ने हल्ला बोल दिया है. शांति प्रदर्शन के बाद जब सरकार हरकत में नहीं आई तो शिक्षकों का गुस्सा फूट पड़ा. किसी ने शायरी में अपना दर्द बयान किया तो किसी ने मुंडन तक करवा लिया. वहीं एक दिव्यांग अतिथि शिक्षक ने सरकार से सवाल किया कि घर में चूल्हा कैसे जलाया जाए. एक साथ 25,000 शिक्षकों को बेरोजगार करके सरकार कब तक टिक पाएगी.

नियमित शिक्षकों के अभाव में दिल्ली सरकार ने सभी सरकारी स्कूल में अतिथि शिक्षक नियुक्त किए थे जिसके बाद से ना सिर्फ शिक्षा के स्तर में सुधार आया बल्कि कई लोगों को रोजगार भी मिला. वहीं 28 फरवरी को अनुबंध खत्म होने के बाद से हजारों की संख्या में शिक्षक बेरोजगार होकर सड़क पर आ गए. इनका कहना है कि अब उन्हें दो चार महीने का एक्सटेंशन नहीं बल्कि 58 साल की पॉलिसी चाहिए. अतिथि शिक्षकों ने रोष व्यक्त किया और कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार ने अतिथि शिक्षकों से वादा किया था कि उन्हें जल्दी ही नियमित कर दिया जाएगा और रोजगार की सुरक्षा दी जाएगी लेकिन सरकार अपने वादों को पूरा नहीं कर पाई. ऐसे में प्रदर्शन करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता.

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शिक्षकों को भ्रमित कर रही सरकार
वहीं प्रदर्शन कर रहे एक अतिथि शिक्षक ने बताया कि दिल्ली में अतिथि शिक्षकों के लिए केवल भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है जिससे उन्हें नियमित ना किया जा सके. उन्होंने कहा कि परीक्षा में बैठे अतिथि शिक्षकों में से लगभग 23% अतिथि शिक्षकों ने परीक्षा पास की है. वहीं बाहरी परीक्षार्थियों में से केवल 1 फीसदी ने ये परीक्षा पास की. ऐसे में अतिथि शिक्षक की काबिलियत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. वहीं एक अन्य शिक्षक ने कहा कि बहुत से शिक्षक ऐसे हैं जिनकी उम्र भी निकल चुकी है जो किसी भी अन्य जगह नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते. ऐसे में यदि उनकी नौकरी चली गई तो उनका घर कैसे चलेगा.

दिव्यांग शिक्षकों की पीड़ा
इन सब के बीच सबसे ज्यादा पीड़ा दिव्यांग शिक्षकों की हालत देखकर होती है. ये शिक्षक 2014 से सरकारी स्कूलों में अपनी सेवा दे रहे हैं. कुछ शिक्षकों के दोनों हाथ नहीं है और पैरों से ही लिखकर वो बच्चों को पढ़ाते हैं और उसी से अपनी आजीविका चलाते हैं. अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि यदि ऐसे में सरकार हमारी नौकरी छीन लेगी तो हमारा गुजारा मुश्किल हो जाएगा.

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शिक्षा मंत्री के आवास पर गेस्ट टीचर्स का हल्ला बोल

'नौकरी नहीं तो वोट नहीं'
वहीं एक अन्य अतिथि शिक्षक ने रोष जताते हुए कहा कि यदि सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर सकती तो हमें भी सरकार से विमुख होना होगा. लगभग 25000 अतिथि शिक्षकों के परिवार वालों का वोट उसी सरकार को जाएगा जो उन्हें आजीविका देगी. उन्होंने कहा कि अगर हम सरकार को सत्ता में ला सकते हैं तो सरकार को सत्ता से गिरा भी सकते हैं.

'अब रिचार्ज कूपन नहीं पोस्टपेड कनेक्शन चाहिए'
उन्होंने स्पष्ट किया कि अब एक्सटेंशन का रिचार्ज कूपन हमें स्वीकार नहीं है बल्कि 58 साल की पॉलिसी की वैलिडिटी चाहिए. गेस्ट टीचर्स का कहना है कि पॉलिसी की मांग इसी लिए रखी गई है क्योंकि हर महीने एक अंजाना सा डर सताता रहता है कि कहीं प्रमोशन लिस्ट न आ जाए तो कहीं नियमित शिक्षकों की नियुक्ति ना हो जाए. अब वह डर कर नहीं जीना चाहते.

वहीं एक अन्य अतिथि शिक्षक ने कहा कि स्कूलों में हो रहे सकारात्मक बदलाव को लेकर शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री देश विदेशों में वाहवाही लूट रहे हैं. वो अकेले उनकी मेहनत नहीं है बल्कि ये अतिथि शिक्षकों का ही खून पसीना है जिसने उनके हर प्रयास को सफल बनाया है, फिर चाहे वह मिशन बुनियाद हो, छात्रों को अतिरिक्त कक्षाएं देना हो या फिर हैप्पीनेस पाठ्यक्रम हो.

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बता दें कि अतिथि शिक्षकों के प्रदर्शन करने से और स्कूल में मौजूद ना होने से कई स्कूलों की व्यवस्था चरमरा गई है. संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है. जिसको संज्ञान में लेते हुए शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कैबिनेट की एक बैठक भी बुलाई है. सभी अतिथि शिक्षक यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस मीटिंग से कुछ सकारात्मक फैसला ही सुनने को मिलेगा. कुछ शिक्षकों ने नौकरी नहीं दिए जाने पर जान देने की चेतावनी भी दी है.

नई दिल्ली: सरकारी स्कूलों में अब तक सेवा दे रहे अतिथि अध्यापक 28 फरवरी को अनुबंध खत्म होने के बाद बेरोजगार हो गए हैं और अपनी आजीविका की चिंता में लगातार 5 दिन से शिक्षा मंत्री के आवास पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इन टीचर्स का कहना है कि ये कॉन्ट्रेक्ट बढ़ाने के लिए प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं बल्कि इन्हें स्थाई नौकरी चाहिए.

शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर बीते 5 दिन से प्रदर्शन कर रहे गेस्ट टीचर्स ने हल्ला बोल दिया है. शांति प्रदर्शन के बाद जब सरकार हरकत में नहीं आई तो शिक्षकों का गुस्सा फूट पड़ा. किसी ने शायरी में अपना दर्द बयान किया तो किसी ने मुंडन तक करवा लिया. वहीं एक दिव्यांग अतिथि शिक्षक ने सरकार से सवाल किया कि घर में चूल्हा कैसे जलाया जाए. एक साथ 25,000 शिक्षकों को बेरोजगार करके सरकार कब तक टिक पाएगी.

नियमित शिक्षकों के अभाव में दिल्ली सरकार ने सभी सरकारी स्कूल में अतिथि शिक्षक नियुक्त किए थे जिसके बाद से ना सिर्फ शिक्षा के स्तर में सुधार आया बल्कि कई लोगों को रोजगार भी मिला. वहीं 28 फरवरी को अनुबंध खत्म होने के बाद से हजारों की संख्या में शिक्षक बेरोजगार होकर सड़क पर आ गए. इनका कहना है कि अब उन्हें दो चार महीने का एक्सटेंशन नहीं बल्कि 58 साल की पॉलिसी चाहिए. अतिथि शिक्षकों ने रोष व्यक्त किया और कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार ने अतिथि शिक्षकों से वादा किया था कि उन्हें जल्दी ही नियमित कर दिया जाएगा और रोजगार की सुरक्षा दी जाएगी लेकिन सरकार अपने वादों को पूरा नहीं कर पाई. ऐसे में प्रदर्शन करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता.

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शिक्षकों को भ्रमित कर रही सरकार
वहीं प्रदर्शन कर रहे एक अतिथि शिक्षक ने बताया कि दिल्ली में अतिथि शिक्षकों के लिए केवल भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है जिससे उन्हें नियमित ना किया जा सके. उन्होंने कहा कि परीक्षा में बैठे अतिथि शिक्षकों में से लगभग 23% अतिथि शिक्षकों ने परीक्षा पास की है. वहीं बाहरी परीक्षार्थियों में से केवल 1 फीसदी ने ये परीक्षा पास की. ऐसे में अतिथि शिक्षक की काबिलियत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. वहीं एक अन्य शिक्षक ने कहा कि बहुत से शिक्षक ऐसे हैं जिनकी उम्र भी निकल चुकी है जो किसी भी अन्य जगह नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते. ऐसे में यदि उनकी नौकरी चली गई तो उनका घर कैसे चलेगा.

दिव्यांग शिक्षकों की पीड़ा
इन सब के बीच सबसे ज्यादा पीड़ा दिव्यांग शिक्षकों की हालत देखकर होती है. ये शिक्षक 2014 से सरकारी स्कूलों में अपनी सेवा दे रहे हैं. कुछ शिक्षकों के दोनों हाथ नहीं है और पैरों से ही लिखकर वो बच्चों को पढ़ाते हैं और उसी से अपनी आजीविका चलाते हैं. अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि यदि ऐसे में सरकार हमारी नौकरी छीन लेगी तो हमारा गुजारा मुश्किल हो जाएगा.

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शिक्षा मंत्री के आवास पर गेस्ट टीचर्स का हल्ला बोल

'नौकरी नहीं तो वोट नहीं'
वहीं एक अन्य अतिथि शिक्षक ने रोष जताते हुए कहा कि यदि सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर सकती तो हमें भी सरकार से विमुख होना होगा. लगभग 25000 अतिथि शिक्षकों के परिवार वालों का वोट उसी सरकार को जाएगा जो उन्हें आजीविका देगी. उन्होंने कहा कि अगर हम सरकार को सत्ता में ला सकते हैं तो सरकार को सत्ता से गिरा भी सकते हैं.

'अब रिचार्ज कूपन नहीं पोस्टपेड कनेक्शन चाहिए'
उन्होंने स्पष्ट किया कि अब एक्सटेंशन का रिचार्ज कूपन हमें स्वीकार नहीं है बल्कि 58 साल की पॉलिसी की वैलिडिटी चाहिए. गेस्ट टीचर्स का कहना है कि पॉलिसी की मांग इसी लिए रखी गई है क्योंकि हर महीने एक अंजाना सा डर सताता रहता है कि कहीं प्रमोशन लिस्ट न आ जाए तो कहीं नियमित शिक्षकों की नियुक्ति ना हो जाए. अब वह डर कर नहीं जीना चाहते.

वहीं एक अन्य अतिथि शिक्षक ने कहा कि स्कूलों में हो रहे सकारात्मक बदलाव को लेकर शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री देश विदेशों में वाहवाही लूट रहे हैं. वो अकेले उनकी मेहनत नहीं है बल्कि ये अतिथि शिक्षकों का ही खून पसीना है जिसने उनके हर प्रयास को सफल बनाया है, फिर चाहे वह मिशन बुनियाद हो, छात्रों को अतिरिक्त कक्षाएं देना हो या फिर हैप्पीनेस पाठ्यक्रम हो.

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बता दें कि अतिथि शिक्षकों के प्रदर्शन करने से और स्कूल में मौजूद ना होने से कई स्कूलों की व्यवस्था चरमरा गई है. संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है. जिसको संज्ञान में लेते हुए शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कैबिनेट की एक बैठक भी बुलाई है. सभी अतिथि शिक्षक यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस मीटिंग से कुछ सकारात्मक फैसला ही सुनने को मिलेगा. कुछ शिक्षकों ने नौकरी नहीं दिए जाने पर जान देने की चेतावनी भी दी है.

Intro:दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कार्यरत अतिथि शिक्षक 28 फरवरी 2019 को अनुबंध खत्म होने के बाद से बेरोजगार हो गए हैं और अपनी आजीविका की चिंता में लगातार 5 दिन से शिक्षा मंत्री के आवास पर प्रदर्शन कर रहे हैं. शिक्षकों की मर्यादा बनाए रखते हुए शांति प्रदर्शन करने के बाद भी जब सरकार हरकत में नहीं आई तो शिक्षकों का गुस्सा फूट पड़ा. किसी ने शायरी में अपना दर्द बयान किया तो किसी ने मुंडन तक करवा लिया. वहीं एक दिव्यांग अतिथि शिक्षक ने सरकार से सवाल किया कि घर में चूल्हा कैसे जलाया जाए. एक साथ 25000 शिक्षकों को बेरोजगार करके सरकार कब तक टिक पाएगी.


Body:नियमित शिक्षकों के अभाव में दिल्ली सरकार ने सभी सरकारी स्कूल में अतिथि शिक्षक नियुक्त किए थे जिसके बाद से ना सिर्फ शिक्षा के स्तर में सुधार आया बल्कि कई लोगों को रोजगार भी मिला. वहीं 28 फरवरी को अनुबंध खत्म होने के बाद से हजारों की संख्या में शिक्षक बेरोजगार होकर सड़क पर आ गए हैं. उनका कहना है कि अब उन्हें दो चार महीने का एक्सटेंशन नहीं बल्कि 58 साल की पॉलिसी चाहिए. अतिथि शिक्षकों ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार ने अतिथि शिक्षकों से वादा किया था कि उन्हें जल्दी ही नियमित कर दिया जाएगा और रोजगार की सुरक्षा दी जाएगी लेकिन सरकार अपने वादों को पूरा नहीं कर पाई. ऐसे में प्रदर्शन करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता.

वहीं प्रदर्शन कर रहे एक अतिथि शिक्षक ने बताया कि दिल्ली में अतिथि शिक्षकों के लिए केवल भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है जिससे उन्हें नियमित ना किया जा सके. उन्होंने कहा कि परीक्षा में बैठे अतिथि शिक्षकों में से लगभग 23% अतिथि शिक्षकों ने परीक्षा पास की है. वहीं बाहरी परीक्षार्थियों में से केवल 1 फ़ीसदी ने यह परीक्षा पास की है. ऐसे में अतिथि शिक्षक की काबिलियत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. वहीं एक अन्य शिक्षक ने कहा कि बहुत से शिक्षक ऐसे हैं जिनकी उम्र भी निकल चुकी है जो किसी भी अन्य जगह नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते. ऐसे में यदि उनकी नौकरी चली गई तो उनका घर कैसे चलेगा.

इन सब के बीच सबसे ज्यादा पीड़ा विकलांग शिक्षक में देखने को मिली जो 2014 से सरकारी स्कूलों में अपनी सेवा दे रहे हैं. इनके दोनों हाथ नहीं है और पैरों से ही लिखकर यह बच्चों को पढ़ाते हैं और उसी से अपनी आजीविका चलाते हैं. अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि यदि ऐसे में सरकार हमारी नौकरी छीन लेगी तो हमारा गुजारा मुश्किल हो जाएगा.

वहीं एक अन्य अतिथि शिक्षक ने रोष जताते हुए कहा कि यदि सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर सकती तो हमें भी सरकार से विमुख होना होगा. लगभग 25000 अतिथि शिक्षकों के परिवार वालों का वोट उसी सरकार को जाएगा जो उन्हें आजीविका देगी. उन्होंने कहा कि यदि हम सरकार सत्ता में ला सकते हैं तो सरकार को सत्ता से गिरा भी सकते हैं.

बता दें कि बहुत से अतिथि शिक्षक ऐसे हैं जिनका परिवार इसी कमाई से चलता है. वहीं प्रदर्शन कर रही एक महिला अतिथि शिक्षक ने बताया कि स्कूलों में बच्चों की फीस देनी है, घर का किराया देना है लेकिन नौकरी ना होने की वजह से वह कुछ भी नहीं कर पा रही हैं. उन्होंने कहा कि लगभग 25 फ़ीसदी अतिथि शिक्षक ऐसे हैं जिनकी आमदनी का यही एकमात्र साधन था और वह भी उनसे छीन लिया गया. उन्होंने स्पष्ट किया कि अब एक्सटेंशन का रिचार्ज कूपन हमें स्वीकार नहीं है बल्कि 58 साल की पॉलिसी की वैलिडिटी चाहिए. अतिथि शिक्षिका का कहना है कि पॉलिसी की मांग इसी लिए रखी गई है क्योंकि हर महीने एक अंजाना सा डर सताता रहता है कि कहीं प्रमोशन लिस्ट न आ जाए तो कहीं नियमित शिक्षकों की नियुक्ति ना हो जाए. अब वह डर डर कर नहीं जीना चाहते.

वहीं एक अन्य अतिथि शिक्षक ने कहा कि स्कूलों में हो रहे सकारात्मक बदलाव को लेकर शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री देश विदेशों में वाहवाही लूट रहे हैं. वह अकेले उनकी मेहनत नहीं है बल्कि यह अतिथि शिक्षकों का ही खून पसीना है जिसने उनकी हर प्रयास को सफल बनाया है, फिर चाहे वह मिशन बुनियाद हो, छात्रों को अतिरिक्त कक्षाएं देना हो या फिर हैप्पीनेस पाठ्यक्रम हो. ऐसे में शिक्षक की उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार उनके द्वारा दी गई सेवाओं का सम्मान करते हुए उन्हें 58 साल की पॉलिसी देकर जॉब सिक्योरिटी देगी. कई अतिथि शिक्षकों का यह भी कहना है कि यदि उनकी नौकरी स्थाई नहीं की जाती हैं तो उनके पास जान देने के सिवा कोई भी उपाय नहीं रह जाएगा.


Conclusion:बता दें कि अतिथि शिक्षकों के प्रदर्शन करने से और स्कूल में मौजूद ना होने से कई स्कूलों की व्यवस्था चरमरा गई है. संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है. जिसको संज्ञान में लेते हुए शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने बुधवार दोपहर 12 बजे कैबिनेट की एक बैठक बुलाई है. सभी अतिथि शिक्षक यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस मीटिंग से कुछ सकारात्मक फैसला ही सुनने को मिलेगा.
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