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इंडिया हैबिबेट सेंटर में नृत्यांगना गौरी द्विवेदी ने बांधा समां, ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति ने मोहा दर्शकों का मन

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 15, 2023, 10:34 AM IST

मशहूर ओडिसी डांसर गौरी द्विवेदी ने लोधी रोड स्थित इंडिया हैबिबेट सेंटर में अपनी प्रस्तुति दी. गौरी ने एक घंटे की अपनी प्रस्तुति में दर्शकों का मन मोह लिया. उन्होंने शिव तांडव, सखी हे और अहे नीला सैला तीन प्रस्तुतियां की. वह एक अखबार में वरिष्ठ संपादक के तौर पर कार्यरत हैं.

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ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति ने मोहा दर्शकों का मन

नई दिल्लीः ओडिसी नृत्य का इतिहास बहुत पुराना है. इसमें की जाने वाली सभी प्रस्तुतियां हर बार दर्शकों को नए रूप ने दिखाई देती है. ऐसे ही एक ओडिसी नृत्य की अद्भुत प्रस्तुति दिल्ली के लोदी रोड स्थित इंडिया हैबिटैट सेंटर में दी गई. मशहूर ओडिसी डांसर गौरी द्विवेदी ने अपनी एक घंटे की परफॉर्मेंस से दर्शकों का मन मोह लिया. उन्होंने शिव तांडव, सखी हे और अहे नीला सैला तीन प्रस्तुतियां की.

गौरी द्विवेदी ने 'ETV भारत' को बताया कि शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शिव की शक्ति और सुंदरता को ओडिसी नृत्य के रूप में दिखाया गया. वहीं सखी हे में राधा का वर्णन किया गया. गौरी ने पुष्पांजलि के साथ अपना गायन शुरू किया. उसके बाद शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शिव की शक्ति और सुंदरता का वर्णन किया गया. इस प्रस्तुति की ताल-खेमता राग- भटियार और कोरियोग्राफी पद्मविभूषण गुरु केलुचरण महापात्र द्वारा, संगीत संयोजन पंडित भुवनेश्वर मिश्रा द्वारा किया गया.

वहीं, अगली प्रस्तुति सखी हे राधा अपनी सखी से कृष्ण दर्शन की बात कहती हैं और काफी उत्सुकता से तैयार होती हैं. उन्होंने बताया कि यह कवि जयदेव द्वारा लिखित गीत गोविंद की आठवीं अष्टपदी पर आधारित है. साथ ही पद्मविभूषण गुरु केलुचरण महापात्र द्वारा कोरियोग्राफ किया गया और इस टुकड़े के लिए संगीत रघुनाथ पाणिग्रही द्वारा तैयार किया गया है.

गौरी ने अपनी तीसरी नृत्य प्रस्तुति में अहे नीला सैला किया है. यह ओडिसी अभिनय एक भजन पर आधारित है, जो मूल रूप से 17वीं शताब्दी के ओडिसी कवि सौलाउ बेगाउ द्वारा लिखा गया था, जिन्हें पुरी जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश से मना कर दिया गया था. इसके बाद एक सच्चा भक्त, सलाबेगा मंदिर के बाहर बैठ कर नीले पहाड़ के भगवान को पुकारता है. कवि विभिन्न कहानियों का उल्लेख करता है, जहां भगवान ने अपने भक्तों को बचाने के लिए विभिन्न रूप धारण किए. पहला राजा हाथी का है, जिसे षडयंत्रकारी मगरमच्छ से बचाया जाता है. दूसरी कहानी द्रौपदी की है, जिसे स्वयं भगवान ने ही अपमानित होने से बचाया था और फिर समर्पित बालक प्रह्लाद के बारे में, जहां भगवान नरसिम्हा एक राक्षस पिता हिरण्यकश्यप को मारने के लिए एक खंभे से प्रकट होते हैं. अंतिम कविता लेखक की कहानी है, जो मंदिर के बाहर बैठकर भगवान से प्रार्थना करता है कि वह उसकी बात सुने और उसे उसकी पीड़ा से बाहर निकाले.

इस प्रतिष्ठित कृति की कोरियोग्राफी पद्म विभूषण स्वर्गीय गुरु केलुचरण महापात्र ने की और संगीत पंडित रघुनाथ पाणिग्रही ने दिया. गौरी की उपरोक्त सभी प्रस्तुतियों ने हॉल में बैठे दर्शन का मन मोह लिया. बता दें कि गौरी बीते 25 वर्षों से ओडिसी नृत्य कर रही हैं. वर्तमान में, गौरी एक अखबार में वरिष्ठ संपादक हैं और वैश्विक मामलों और अर्थव्यवस्था पर लिखती हैं. इसके अलावा उन्होंने दो नृत्य शैलियों ओडिसी और भरतनाट्यम में प्रशिक्षण प्राप्त किया है. उन्होंने गुरु यामिनी कृष्णमूर्ति से भरतनाट्यम और गुरु इप्सिता बेहुरा और गुरु सुजाता महापात्रा से ओडिसी नृत्य सीखा है.

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ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति ने मोहा दर्शकों का मन

नई दिल्लीः ओडिसी नृत्य का इतिहास बहुत पुराना है. इसमें की जाने वाली सभी प्रस्तुतियां हर बार दर्शकों को नए रूप ने दिखाई देती है. ऐसे ही एक ओडिसी नृत्य की अद्भुत प्रस्तुति दिल्ली के लोदी रोड स्थित इंडिया हैबिटैट सेंटर में दी गई. मशहूर ओडिसी डांसर गौरी द्विवेदी ने अपनी एक घंटे की परफॉर्मेंस से दर्शकों का मन मोह लिया. उन्होंने शिव तांडव, सखी हे और अहे नीला सैला तीन प्रस्तुतियां की.

गौरी द्विवेदी ने 'ETV भारत' को बताया कि शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शिव की शक्ति और सुंदरता को ओडिसी नृत्य के रूप में दिखाया गया. वहीं सखी हे में राधा का वर्णन किया गया. गौरी ने पुष्पांजलि के साथ अपना गायन शुरू किया. उसके बाद शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शिव की शक्ति और सुंदरता का वर्णन किया गया. इस प्रस्तुति की ताल-खेमता राग- भटियार और कोरियोग्राफी पद्मविभूषण गुरु केलुचरण महापात्र द्वारा, संगीत संयोजन पंडित भुवनेश्वर मिश्रा द्वारा किया गया.

वहीं, अगली प्रस्तुति सखी हे राधा अपनी सखी से कृष्ण दर्शन की बात कहती हैं और काफी उत्सुकता से तैयार होती हैं. उन्होंने बताया कि यह कवि जयदेव द्वारा लिखित गीत गोविंद की आठवीं अष्टपदी पर आधारित है. साथ ही पद्मविभूषण गुरु केलुचरण महापात्र द्वारा कोरियोग्राफ किया गया और इस टुकड़े के लिए संगीत रघुनाथ पाणिग्रही द्वारा तैयार किया गया है.

गौरी ने अपनी तीसरी नृत्य प्रस्तुति में अहे नीला सैला किया है. यह ओडिसी अभिनय एक भजन पर आधारित है, जो मूल रूप से 17वीं शताब्दी के ओडिसी कवि सौलाउ बेगाउ द्वारा लिखा गया था, जिन्हें पुरी जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश से मना कर दिया गया था. इसके बाद एक सच्चा भक्त, सलाबेगा मंदिर के बाहर बैठ कर नीले पहाड़ के भगवान को पुकारता है. कवि विभिन्न कहानियों का उल्लेख करता है, जहां भगवान ने अपने भक्तों को बचाने के लिए विभिन्न रूप धारण किए. पहला राजा हाथी का है, जिसे षडयंत्रकारी मगरमच्छ से बचाया जाता है. दूसरी कहानी द्रौपदी की है, जिसे स्वयं भगवान ने ही अपमानित होने से बचाया था और फिर समर्पित बालक प्रह्लाद के बारे में, जहां भगवान नरसिम्हा एक राक्षस पिता हिरण्यकश्यप को मारने के लिए एक खंभे से प्रकट होते हैं. अंतिम कविता लेखक की कहानी है, जो मंदिर के बाहर बैठकर भगवान से प्रार्थना करता है कि वह उसकी बात सुने और उसे उसकी पीड़ा से बाहर निकाले.

इस प्रतिष्ठित कृति की कोरियोग्राफी पद्म विभूषण स्वर्गीय गुरु केलुचरण महापात्र ने की और संगीत पंडित रघुनाथ पाणिग्रही ने दिया. गौरी की उपरोक्त सभी प्रस्तुतियों ने हॉल में बैठे दर्शन का मन मोह लिया. बता दें कि गौरी बीते 25 वर्षों से ओडिसी नृत्य कर रही हैं. वर्तमान में, गौरी एक अखबार में वरिष्ठ संपादक हैं और वैश्विक मामलों और अर्थव्यवस्था पर लिखती हैं. इसके अलावा उन्होंने दो नृत्य शैलियों ओडिसी और भरतनाट्यम में प्रशिक्षण प्राप्त किया है. उन्होंने गुरु यामिनी कृष्णमूर्ति से भरतनाट्यम और गुरु इप्सिता बेहुरा और गुरु सुजाता महापात्रा से ओडिसी नृत्य सीखा है.

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