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DU के VC शिक्षकों, छात्रों व कर्मचारियों की समस्या सुनने के लगाए दरबार

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक-शोधार्थी समन्वय समिति ने डीयू के कुलपति से शिक्षकों, कर्मचारियों, शोधार्थियों व छात्रों की समस्याओं का समाधान करने के लिए विश्वविद्यालय में सप्ताह में दो दिन दरबार लगाने की मांग की है.

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Published : Mar 9, 2023, 5:17 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक-शोधार्थी समन्वय समिति ने डीयू के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि कुलपति अपने शिक्षकों, कर्मचारियों, शोधार्थियों व छात्रों से सीधे संवाद स्थापित करने व उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए विश्वविद्यालय में सप्ताह में दो दिन दरबार लगाने के लिए समय निर्धारित करें.

उन्होंने पत्र में यह भी लिखा है कि शोधार्थियों व छात्रों की कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान एक खास समय में होना आवश्यक है, लेकिन उनकी समस्याओं पर विभागाध्यक्ष व डीन ध्यान नहीं देते. जिसके कारण उन्हें प्रशासन के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

सिर्फ पत्रों से ही होता रहा है समस्या का निपटारा: समिति के संरक्षक डॉ. हंसराज सुमन का कहना है कि विश्वविद्यालय को आज़ादी के 75 वें अमृत महोत्सव में शिक्षक-शिक्षार्थी सुलभ बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षकों, कर्मचारियों और शोधार्थियों के साथ कुलपति का संवाद स्थापति हो. यह संवाद सप्ताह में दो दिन कुलपति कार्यालय में दरबार लगाकर इनकी समस्याओं का समाधान करके किया जा सकता है. उनका कहना है कि वर्षों से कुलपति केवल पत्रों के माध्यम से शिकायतों का निपटारा करते रहे हैं, पर समय के साथ इसमें परिवर्तन होना चाहिए.

शिक्षकों, कर्मचारियों, छात्रों और शोधार्थियों के पास केवल शिकायतें ही नहीं है, बल्कि उनके पास भविष्य की कुछ नई योजनाएं और सुझाव भी होते हैं. जिसको सुनकर नई नीतियों का कार्यान्वन, संकाय संवर्धन, नए पाठ्यक्रम के अनुकूल पठन -पाठन के तरीके अपनाए जा सकते हैं. कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह सरल स्वभाव के व्यक्ति है, जो सभी के लिए इतने सहज- सुलभ है जो हर समय उपलब्ध रहते है. लेकिन डीयू में 79 कॉलेज व लगभग 86 विभाग है. यदि कुलपति एक समय में (दरबार लगाकर) शिक्षकों, शोधार्थियों व छात्रों के सुलभ हो जाएंगे तो शिक्षक -छात्रों की समस्या का समाधान हो सकेगा.

उनका यह भी कहना है कि कोरोना के बाद गत वर्ष नई शिक्षा नीति के तहत शैक्षिक सत्र 2022-23 में ऑनलाइन एडमिशन सीयूईटी से हुए है, जिससे कुलपति से उनका संवाद नहीं हो पाया. बहुत से छात्र अपने कुलपति को जानते तक नहीं है, इसलिए भी छात्र-कुलपति संवाद होना जरूरी है.

कुलपति दरबार लगाए तो यह अच्छा होगा: समिति के अध्यक्ष डॉ.अनिरुद्ध कुमार ने कहा कि कुलपति विश्ववविद्यालय के मुखिया है और घर के लोगों को कोई बात कहनी हो तो वो चौबीस घण्टे मुखिया को पत्र नही लिख सकते. कभी- कभी मिलने से मानसिक शांति और समस्या के समाधान की उम्मीद बढ़ जाती है. दिल्ली विश्ववविद्यालय के हिन्दी विभाग से पीएचडी के छात्र अजय कुमार ने कहा कि वैसे तो समस्याओं के समाधान के लिए अलग-अलग विभाग और अधिष्ठाता हैं पर कुलपति अगर समस्याओं को सुनने के लिए दरबार लगाए तो विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन होगा.

दिल्ली विश्ववविद्यालय के शोधार्थी शहर्ष का कहना है कि कुलपति से मिलने की इच्छा होती है कि हम जिस विश्ववविद्यालय में पढ़ते हैं उसके कुलपति से मिल सके, पर प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आम छात्र कुलपति से मिलना तो दूर कुलपति कार्यालय की ओर जाने की भी नही सोचते. विश्ववविद्यालय के विभिन्न विभागों के छात्रों का मानना है कि कुलपति सिर्फ डूटा पदाधिकारियों या पद स्थापित लोगों के लिए ही सुलभ है. ऐसे में कुलपति अगर दरबार लगाते है तो इससे हम विद्याथियों के साथ शोधार्थी और शिक्षक भी लाभान्वित होंगे.

इसे भी पढ़ें: IND Vs AUS : भारत और ऑस्ट्रेलिया का मैच को देखने पहुंचे पीएम मोदी, युवाओं में उत्साह

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक-शोधार्थी समन्वय समिति ने डीयू के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि कुलपति अपने शिक्षकों, कर्मचारियों, शोधार्थियों व छात्रों से सीधे संवाद स्थापित करने व उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए विश्वविद्यालय में सप्ताह में दो दिन दरबार लगाने के लिए समय निर्धारित करें.

उन्होंने पत्र में यह भी लिखा है कि शोधार्थियों व छात्रों की कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान एक खास समय में होना आवश्यक है, लेकिन उनकी समस्याओं पर विभागाध्यक्ष व डीन ध्यान नहीं देते. जिसके कारण उन्हें प्रशासन के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

सिर्फ पत्रों से ही होता रहा है समस्या का निपटारा: समिति के संरक्षक डॉ. हंसराज सुमन का कहना है कि विश्वविद्यालय को आज़ादी के 75 वें अमृत महोत्सव में शिक्षक-शिक्षार्थी सुलभ बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षकों, कर्मचारियों और शोधार्थियों के साथ कुलपति का संवाद स्थापति हो. यह संवाद सप्ताह में दो दिन कुलपति कार्यालय में दरबार लगाकर इनकी समस्याओं का समाधान करके किया जा सकता है. उनका कहना है कि वर्षों से कुलपति केवल पत्रों के माध्यम से शिकायतों का निपटारा करते रहे हैं, पर समय के साथ इसमें परिवर्तन होना चाहिए.

शिक्षकों, कर्मचारियों, छात्रों और शोधार्थियों के पास केवल शिकायतें ही नहीं है, बल्कि उनके पास भविष्य की कुछ नई योजनाएं और सुझाव भी होते हैं. जिसको सुनकर नई नीतियों का कार्यान्वन, संकाय संवर्धन, नए पाठ्यक्रम के अनुकूल पठन -पाठन के तरीके अपनाए जा सकते हैं. कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह सरल स्वभाव के व्यक्ति है, जो सभी के लिए इतने सहज- सुलभ है जो हर समय उपलब्ध रहते है. लेकिन डीयू में 79 कॉलेज व लगभग 86 विभाग है. यदि कुलपति एक समय में (दरबार लगाकर) शिक्षकों, शोधार्थियों व छात्रों के सुलभ हो जाएंगे तो शिक्षक -छात्रों की समस्या का समाधान हो सकेगा.

उनका यह भी कहना है कि कोरोना के बाद गत वर्ष नई शिक्षा नीति के तहत शैक्षिक सत्र 2022-23 में ऑनलाइन एडमिशन सीयूईटी से हुए है, जिससे कुलपति से उनका संवाद नहीं हो पाया. बहुत से छात्र अपने कुलपति को जानते तक नहीं है, इसलिए भी छात्र-कुलपति संवाद होना जरूरी है.

कुलपति दरबार लगाए तो यह अच्छा होगा: समिति के अध्यक्ष डॉ.अनिरुद्ध कुमार ने कहा कि कुलपति विश्ववविद्यालय के मुखिया है और घर के लोगों को कोई बात कहनी हो तो वो चौबीस घण्टे मुखिया को पत्र नही लिख सकते. कभी- कभी मिलने से मानसिक शांति और समस्या के समाधान की उम्मीद बढ़ जाती है. दिल्ली विश्ववविद्यालय के हिन्दी विभाग से पीएचडी के छात्र अजय कुमार ने कहा कि वैसे तो समस्याओं के समाधान के लिए अलग-अलग विभाग और अधिष्ठाता हैं पर कुलपति अगर समस्याओं को सुनने के लिए दरबार लगाए तो विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन होगा.

दिल्ली विश्ववविद्यालय के शोधार्थी शहर्ष का कहना है कि कुलपति से मिलने की इच्छा होती है कि हम जिस विश्ववविद्यालय में पढ़ते हैं उसके कुलपति से मिल सके, पर प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आम छात्र कुलपति से मिलना तो दूर कुलपति कार्यालय की ओर जाने की भी नही सोचते. विश्ववविद्यालय के विभिन्न विभागों के छात्रों का मानना है कि कुलपति सिर्फ डूटा पदाधिकारियों या पद स्थापित लोगों के लिए ही सुलभ है. ऐसे में कुलपति अगर दरबार लगाते है तो इससे हम विद्याथियों के साथ शोधार्थी और शिक्षक भी लाभान्वित होंगे.

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