नई दिल्ली: किताबों में सिर्फ ज्ञान ही नहीं होता, बल्कि एक ऐसी रोशनी होती है, जो अंधेरे को कम करती है. वहीं, पुस्तकों के डिजिटलीकरण ने इसके इस्तेमाल को और भी आसान बना दिया है. इसको कई नए प्रारूप दिए हैं. हम सभी जानते हैं कि पुस्तकों का डिजिटलीकरण कोरोना महामारी के समय काफी मददगार साबित हुआ. इन सभी बातों पर विस्तृत जानकारी के लिए 'ETV भारत' ने दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय की डिप्टी लाइब्रेरियन डॉ. अलका राय से खास बातचीत की. आइए, जानते हैं उन्होंने क्या कहा?
सवाल: लाइब्रेरी की व्यवस्था एक कला है, साइंस है या प्रबंधन का विषय है?
जवाब: लाइब्रेरी की व्यवस्था कला, साइंस और प्रबंधन तीनों का समावेश है. जो विद्याथी 'लाइब्रेरी एंड इनफार्मेशन साइंस' का प्रशिक्षण लेते हैं, वह कई तरह की टेक्निकल रिचर्स सीखते हैं. जैसे क्लासिफिकेशन करना. इसमें जितनी भी किताबें लाइब्रेरी में मौजूद होती हैं, उनको विषय के मुताबिक क्लासिफाइड किया जाता है. फिर कैटलॉगिंग करना या इंडेक्स बनाना, यह सभी चीजे साइंस के अंतर्गत आती हैं. वहीं, कला में लाइब्रेरी को आकर्षक बनाना अहम है. ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि आजकल ज्यादातर पाठक मोबाइल और कंप्यूटर पर पुस्तकों को पढ़ लेते हैं. ऐसे में पाठकों के अंदर प्रिंट बुक को पढ़ने की रूचि थोड़ी कम हुई है, इसलिए पुस्तकालय को आकर्षक बनाना बेहद जरूरी है. यही लाइब्रेरियन की कला है. इसके अलावा प्रबंधन में उपरोक्त सभी काम कर दिए जाए और इनको व्यवस्थित नहीं किया जाए तो सभी प्रयास व्यर्थ चला जाएगा.
सवाल: आपको क्या लगता है डिजिटल की तरफ शिफ्ट हो रहे लाइब्रेरी सेक्टर में किस तरह के नए स्वरूप आये हैं?
जवाब: लाइब्रेरी का डिजिटलीकरण होना एक चेलैंज है. अंबेडकर विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी की फाउंडर लाइब्रेरियन होने के नाते, इन विषयों पर बहुत नजदीक से काम किया है. वर्तमान में देशभर में जितनी भी लाइब्रेरी हैं सभी का मुख्य जोर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस पर है. इसके पीछे कई मुख्य कारण है, पहला, दुनियाभर में स्पेस की समस्या. इसके कारण एक निश्चित संख्या तक ही पुस्तकों को लाइब्रेरी में रखा जा सकता है. यही वजह है कि अब लाइब्रेरी सेक्टर में डिजिटलीकरण पर जोर दिया जा रहा है. इसके कई फायदे हैं. इसको कहीं से भी एक्सेस किया जा सकता है. एक बार कई पाठक या विद्यार्थी एक पुस्तक को पढ़ सकते हैं. वहीं, कई अन्य पिछड़े इलाकों से दिल्ली पढ़ने आने वाले बच्चों को डिजिटल लिटरेसी की स्किल की कमी है. ऐसे बच्चों के लिए अंबेडकर विश्वविद्यालय में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. इसमें बच्चों के अंदर डिजिटल स्किल को विकसित किया गया.
सवाल: पारंपरिक पुस्तकालयों से आधुनिक पुस्तकालय कितने अलग हुए हैं?
जवाब: अगर पारंपरिक पुस्तकालयों की बात की जाये तो पहले केवल प्रिंट डाक्यूमेंट्स होती थी. इनका इस्तेमाल एक बार में एक ही पाठक कर सकता है. वही जब पुस्तकालयों को आधुनिक रूप किया गया, तो इसमें प्रिंट के साथ कुछ प्रक्रियाओं को इलेट्रॉनिक कर दिया गया. इसके बाद पुस्तकालयों का डिजिटलीकरण हुआ. वर्तमान में साइबर लाइब्रेरी भी काफी चर्चित है. आलम यह है कि पाठक लाइब्रेरी तक नहीं आते लाइब्रेरी पाठकों तक जाती है. डिजिटल प्रारूप ने लाइब्रेरी को 24x7 इस्तेमाल करने लायक कर दिया है.
सवाल: लाइब्रेरी का डिजिटलीकरण कोरोना महामारी में कितना मददगार साबित हुआ?
जवाब: लाइब्रेरी का डिजिटलीकरण सन 2000 में ही शुरू हो चुका था, लेकिन इसका सही इस्तेमाल कोरोना के समय हुआ. जब देश में लॉक डाउन लगा तब लोगों की निर्भरता इलेट्रॉनिक डिवाइस पर हुई. उस समय पाठकों और छात्रों की निर्भरता इलेट्रॉनिक बुक, इ जर्नल्स और ऑनलाइन क्लास पर हुई. इससे यह फायदा हुआ कि जो डिजिटलीकरण गैप था, वो लगभग खत्म हो गया. भारी संख्या में लोग डिजिटलीकरण के मामले में जागरूक हुए. मुझे एक बहुत अच्छा उदाहरण याद आ रहा है. बिहार का एक नेत्रहीन छात्र था, जिसको अपना असाइनमेंट पूरा करने के लिए किसी पुस्तक की आवश्यकता थी. उस समय आंबेडकर पुस्तकालय प्रिंट को स्पीच में करने की सुविधा थी, तो इस तरह से उसको पुस्तक ऑडी स्वरूप प्रदान किया गया.
सवाल: ऐसी सुविधा और कितने बच्चों को दी गई है?
जवाब: ये तो मांग पर निर्भर करता है. उस समय मांग थी तो ऐसा किया गया. अब लाइब्रेरी आना आसान है. इसके अलावा मौजूदा समय में ऐसी कई वेबसाइट है, जिसमें पढ़ने और सुनने की सुविधा मौजूद है.
सवाल: लाइब्रेरी के क्षेत्र में क्या-क्या नए प्रयोग हो रहे हैं?
जवाब: अब लाइब्रेरी केवल एक पुस्तक कोष नहीं है. बदलते समय ने लाइब्रेरी के प्रयोग को बदला दिया है. जैसे अब क्वालिटी रिसर्च पर ध्यान दिया जाता है. इसको देखते हुए लाइब्रेरी में बहुत तरह के रिसर्च टूल हैं, जो लाइब्रेरी के माध्यम से प्रदान किये जाते हैं. इसमें इनफार्मेशन और लिट्रेसी प्रोग्राम किये जाते हैं. इसके माध्यम से स्टूडेंट्ड और पाठकों को सशक्त बनाया जाता है और रिसर्च रिपोर्ट को तैयार करने की निर्भरता को खत्म किया जाता है. जैसे पहले जो रिसर्च होते थे जिनको लिखने के काफी समय चला जाता था. अब ऐसे कई टूल्स हैं जिससे रिसर्च रिपोर्ट को आसानी से लिखा जा सकता है.
सवाल: आपने कई देशों की यात्रा की है. लाइब्रेरियन होने के नाते आपने क्या देखा और क्या समझा? हमारे देश में क्या कुछ नया करने की जरूरत है
जवाब: भारतीय लोग मल्टी टास्किंग होते हैं. यह अच्छा भी है और खराब भी. अगर लाइब्रेरियन के रूप में कहें तो एक लाइब्रेरियन कैटलॉगिंग भी करता है, क्लासिफिकेशन भी करता है और इलेट्रॉनिक रिसोर्स भी मैनेज कर रहा है. लेकिन विदेशों में हर काम की एक पूरी टीम होती है. वहां एक व्यक्ति सिर्फ एक ही काम करता है. अगर भारत में लाइब्रेरी के रूप को बदलना है तो तकनीकी लोगों की जरूरत है, इसमें युवा पीढ़ी कारगर साबित हो सकती है.
सवाल: डिजिटलीकरण के दौर में पुस्तक न पढ़ने वालों के लिए का संदेश देना चाहेंगी?
जवाब: कहा जाता है कि एक किताब ही हैं जो आपकी सच्ची मित्र होती है. डिजिटलीकरण होने के कारण ऐसा करना और भी आसान हो गया है. लेकिन, किताबें जरूर पढ़नी चाहिए, क्योंकि ज्ञान ही शक्ति है. जितना पढ़ेंगे, उतना ही आपका ज्ञान ताकतवर होगा.
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