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कूड़े के निष्पादन को लेकर निगमों की रफ्तार धीमी, फिर तय करनी होगी नई डेडलाइन

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Published : Oct 14, 2021, 11:00 PM IST

दिल्ली में कूड़े के पहाड़ बहुत बड़ी समस्या है. इन पहाड़ों को हटाने के लिए तीनों नगर निगम लगातार कोशिश में जुटे हुए हैं. इसको हटाने के लिए कई बार डेडलाइन बढ़ाई गईं. अब फिर ऐसा ही लग रहा है कि एक बार फिर डेडलाइन बढ़ाई जाएगी. आखिर ऐसा क्यों लग रहा है पूरी रिपोर्ट पढ़िए.

दिल्ली में कूड़े
दिल्ली में कूड़े

नई दिल्ली: राजधानी की सबसे बड़ी समस्या वर्तमान में कूड़े के पहाड़ की समस्या है. जिसकी वजह से ना सिर्फ दिल्ली का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है बल्कि लैंडफिल साइट के आसपास रहने वाले लोगों को कई गंभीर बीमारियों का सामना भी करना पड़ रहा है. इस बीच सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा लैंडफिल साइट्स पर कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान को लेकर निगम द्वारा की जा रही निष्पादन की प्रक्रिया की रफ्तार को लेकर आपत्ति जताते हुए उसे जरूरत के मुताबिक कई गुना धीमा बताया गया है.

साल 2019 में जब तीनों निगमों ने मशीनों की सहायता से कूड़े के पहाड़ों पर निष्पादन की प्रक्रिया को शुरू किया था. तब से लेकर अब तक महज 23.5 लाख टन कूड़े का ही निष्पादन हो पाया है जो कि कोई कूड़े का 8.3% है जो चिंता का विषय है.

दिल्ली के अंदर कूड़ा बहुत बड़ी समस्या:

  • सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के द्वारा कूड़े के पहाड़ पर की जा रही निष्पादन की प्रक्रिया की रफ्तार को लेकर चिंता जताई जा चुकी है. जरूरत के मुताबिक, निष्पादन के प्रक्रिया की रफ्तार कई गुना धीमी है.
  • 2019 से शुरू की गई कूड़े के पहाड़ों की निष्पादन की प्रक्रिया के तहत मैच 23.5 लाख मैट्रिक टन कूड़े का ही निष्पादन किया गया. जबकि कुल कूड़े की संख्या 280 लाख मेट्रिक तन से भी ज्यादा है.
  • नगर निगम द्वारा कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान के मद्देनजर लगभग 250 करोड़ रुपये जैसी बड़ी राशि अलॉट की गई है.
  • पहले ही दो बार कूड़े के पहाड़ की समस्या को समाप्त करने के मद्देनजर निगमों द्वारा डेडलाइन आगे बढ़ाई जा चुकी है.
  • वर्तमान में जिस रफ्तार से काम हो रहा है उसी रफ्तार से काम करने पर अगले कई सालों तक दिल्ली से कूड़े के पहाड़ खत्म नहीं होंगे.

वर्तमान में दिल्ली के तीन अलग-अलग कोनों में बने हुए कूड़े के पहाड़ हैं, जिसके समाधान के मद्देनजर लगातार दिल्ली के तीनों नगर निगमों द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं. भलस्वा, ओखला और गाजीपुर में स्थित इन तीनों कूड़े के पहाड़ों से ना सिर्फ राजधानी के पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि लोगों के लिए भी यह परेशानी का सबब बने हुए हैं, लेकिन उसके बावजूद अभी तक कूड़े के पहाड़ की समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया है.

गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट पर सालों से बन रहे इन कूड़े के पहाड़ों को कम करने की कोशिश लगातार निगम कर रहे हैं, लेकिन जिस रफ्तार से इन्हें खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है, वह शंका के घेरे में है.

जानकारी के मुताबिक, तीनों कूड़े के पहाड़ों पर लगभग 280 लाख मैट्रिक टन कूड़े का अंबार साल 2019 में था. जब कूड़े के निष्पादन को लेकर प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था. पिछले दो साल से तीनो लैंडफिल साइट पर कूड़े के निष्पादन को लेकर बकायदा ट्रोमेल मशीनें भी लगाई गईं और लगातार मशीनों की संख्या को भी बढ़ाया जा रहा है.

उसके बावजूद अभी तक कूड़े के इन विशाल पहाड़ों की समस्या खत्म होती नजर नहीं आ रही है. बीते दो साल में जब से दिल्ली की तीनों लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की समस्या को समाप्त करने के लिए निष्पादन की प्रक्रिया को शुरू किया गया है. ट्रोमेल मशीनों की सहायता से तब से अब तक लगभग 23.5 लाख मैट्रिक टन कूड़े का ही निष्पादन किया जा सका है. जोकि निगम द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य से काफी कम है.

ये भी पढ़ें- 2024 तक गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ को खत्म करने का लक्ष्य

आसान शब्दों में कहें तो तीनों लैंडफिल साइट पर नगर निगम के द्वारा कूड़े के निष्पादन की जो प्रक्रिया है उसकी रफ्तार बहुत धीमी है और दो साल के समय में तीनों लैंडफिल साइट पर मौजूद कूड़े के महज 8.3% हिस्से को ही निष्कासित किया जा सका है. जिस तरह से तीनों नगर निगमों के द्वारा कूड़े के पहाड़ के समस्या को समाप्त करने के मद्देनजर कूड़े के निष्पादन की प्रक्रिया की जा रही है. उसकी रफ्तार देखते हुए लगता है कि आने वाले कई साल तक कूड़े के पहाड़ राजधानी दिल्ली की समस्या बने रहेंगे.

तीनों नगर निगम के द्वारा पहले ही कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के मद्देनजर डेडलाइन को दो बार रिवाइज किया जा चुका है, लेकिन लगता नहीं है कि अगले एक-दो साल में लैंडफिल साइट का 50% हिस्सा भी खत्म हो पाएगा.

दिल्ली की तीनों नगर निगमों ने CPCB और दिल्ली सरकार को जो वर्तमान में लैंडफिल साइट के मद्देनजर रिपोर्ट दी है. उसके मुताबिक गाजीपुर लैंडफिल साइट पर वर्तमान समय में सबसे ज्यादा कूड़ा है जोकि करीब 140 लाख मैट्रिक टन है. वहीं नॉर्थ एमसीडी ने भलस्वा में मौजूद लैंडफिल साइट पर वर्तमान में 80 लाख मैट्रिक टन कूड़ा है, जबकि साउथ एमसीडी की लैंडफिल साइट जो ओखला में स्थित है उसमें 60 लाख मैट्रिक टन कूड़ा एकत्रित है. जिसके निष्पादन की प्रक्रिया निगमों के द्वारा लगातार की जा रही है.

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर अक्टूबर 2019 में तीनों नगर निगमों ने राजधानी दिल्ली में खराब हो रहे पर्यावरण की स्थिति और लैंडफिल साइट के आसपास रह रहे लोगों की परेशानियों को देखते हुए तीनों लैंडफिल साइट पर कूड़े के निष्पादन के प्रक्रिया को करने के निर्देश निगमों को दिए थे, जिसके बाद तीनों नगर नगर निगम के द्वारा कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के मद्देनजर प्रक्रिया शुरू की गई थी.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में लोगों को कूड़े का पहाड़ दिखाई देता है, हंसराज हंस ने साधा निशाना

इसके तहत नॉर्थ MCD, SDMC और EDMC ने अपनी-अपनी लैंडफिल साइट कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान के मद्देनजर गुजरात और मध्य प्रदेश के मॉडल के आधार पर ट्रोमेल मशीनें लगाई थी. ट्रोमेल मशीनें लगवाने के बाद गाजीपुर लैंडफिल साइट पर पिछले दो साल में 5.47 लाख मैट्रिक टन भलस्वा लैंडफिल साइट से 14.09 लाख मैट्रिक टन और SDMC की ओखला लैंडफिल साइट से महज चार लाख मैट्रिक टन कूड़े के निष्पादन की प्रक्रिया को पूरा किया जा सका है. जो बहुत कम है.


नॉर्थ एमसीडी के द्वारा भलस्वा लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ को खत्म करने की डेडलाइन जून 2022 तय की गई है, जिसके मद्देनजर निगम के द्वारा लगातार कई कदम उठाए जा रहे हैं. निगम ने लैंडफिल साइट पर ट्रोमेल मशीनें जो हैं उनकी संख्या बढ़ाकर 79 करने का भी फैसला कर लिया है. जिसमें से 24 महीने पहले से ही कार्यरत हैं और इस साल के अंत तक इतनी ही मशीनें और लगने जा रही हैं.

ये भी पढ़ें- एक दिल्ली ऐसी भी...कूड़े के पहाड़ के नीचे रोटी सेंकने की मजबूरी

नॉर्थ एमसीडी द्वारा हाल ही में कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के मद्देनजर कई निजी कंपनियों के साथ करार भी किया गया है, जिसके तहत अब कंपनियों को कूड़े के निष्पादन के वजन के हिसाब से पेमेंट की जाएगी. ताकि जल्द से जल्द कूड़े के पहाड़ की समस्या का निष्पादन किया जा सके.

साथ ही यदि कोई ट्रोमेल मशीन जिसे निजी कंपनी ने लगाया है. यदि वह निगम द्वारा निर्धारित की गई मात्रा में कूड़े का प्रतिदिन के हिसाब से निस्तारण नहीं कर पाती तो उसके ऊपर निगम के द्वारा जुर्माना भी लगाया जाएगा. नॉर्थ एमसीडी के द्वारा भलस्वा लैंडफिल साइट पर स्थित हर एक ट्रोमेल मशीन को कूड़े की निष्पादन प्रक्रिया के लिए हर महीने लगभग 18.50 लाख रुपए की राशि दी जाएगी जो कि पहले के मुकाबले काफी अधिक है.

ये भी पढ़ें- आइए आपको दिल्ली का 'नर्क' दिखाते हैं, गाजीपुर कूड़े के पहाड़ से ग्राउंड रिपोर्ट

इस पूरे प्रस्ताव के मुताबिक, लैंडफिल साइट पर काम करने वाले सभी कर्मचारी भी उसी निजी एजेंसी के होंगे और मशीन को ऑपरेट करने वाले भी कर्मचारी उसी कंपनी के होंगे.

गाजीपुर लैंडफिल साइट की बात की जाए तो यहां कूड़े के पहाड़ को खत्म करने की डेडलाइन EDMC ने दिसंबर 2024 तय की है, लेकिन जिस तरह से निष्पादन का कार्य वर्तमान समय में किया जा रहा है. उससे नहीं लगता कि कूड़े के पहाड़ की समस्या जल्द समाप्त होने वाली है. EDMC द्वारा बकायदा कूड़े की पहाड़ की समस्या के समाधान के लिए 125 करोड रुपए जैसी बड़ी राशि के बजट को भी अलॉट किया गया है.

ये भी पढ़ें- डेढ़ साल बाद नहीं रहेगा भलस्वा डंपिंग ग्राउंड, मनोज तिवारी ने किया ऐलान


SDMC द्वारा नॉर्थ और EDMC की तरह अपने क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ओखला लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान को लेकर कई कड़े कदम उठाए गए हैं और निगम ने मार्च 2023 की डेडलाइन इस पहाड़ को खत्म करने के लिए तय की है. बता दें कि SDMC ने इस पूरे काम को करने के लिए ₹50 करोड़ की राशि का बजट भी अलॉट कर दिया है और जरूरत पड़ने पर इस बजट को बढ़ाया भी जा सकता है.

नई दिल्ली: राजधानी की सबसे बड़ी समस्या वर्तमान में कूड़े के पहाड़ की समस्या है. जिसकी वजह से ना सिर्फ दिल्ली का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है बल्कि लैंडफिल साइट के आसपास रहने वाले लोगों को कई गंभीर बीमारियों का सामना भी करना पड़ रहा है. इस बीच सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा लैंडफिल साइट्स पर कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान को लेकर निगम द्वारा की जा रही निष्पादन की प्रक्रिया की रफ्तार को लेकर आपत्ति जताते हुए उसे जरूरत के मुताबिक कई गुना धीमा बताया गया है.

साल 2019 में जब तीनों निगमों ने मशीनों की सहायता से कूड़े के पहाड़ों पर निष्पादन की प्रक्रिया को शुरू किया था. तब से लेकर अब तक महज 23.5 लाख टन कूड़े का ही निष्पादन हो पाया है जो कि कोई कूड़े का 8.3% है जो चिंता का विषय है.

दिल्ली के अंदर कूड़ा बहुत बड़ी समस्या:

  • सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के द्वारा कूड़े के पहाड़ पर की जा रही निष्पादन की प्रक्रिया की रफ्तार को लेकर चिंता जताई जा चुकी है. जरूरत के मुताबिक, निष्पादन के प्रक्रिया की रफ्तार कई गुना धीमी है.
  • 2019 से शुरू की गई कूड़े के पहाड़ों की निष्पादन की प्रक्रिया के तहत मैच 23.5 लाख मैट्रिक टन कूड़े का ही निष्पादन किया गया. जबकि कुल कूड़े की संख्या 280 लाख मेट्रिक तन से भी ज्यादा है.
  • नगर निगम द्वारा कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान के मद्देनजर लगभग 250 करोड़ रुपये जैसी बड़ी राशि अलॉट की गई है.
  • पहले ही दो बार कूड़े के पहाड़ की समस्या को समाप्त करने के मद्देनजर निगमों द्वारा डेडलाइन आगे बढ़ाई जा चुकी है.
  • वर्तमान में जिस रफ्तार से काम हो रहा है उसी रफ्तार से काम करने पर अगले कई सालों तक दिल्ली से कूड़े के पहाड़ खत्म नहीं होंगे.

वर्तमान में दिल्ली के तीन अलग-अलग कोनों में बने हुए कूड़े के पहाड़ हैं, जिसके समाधान के मद्देनजर लगातार दिल्ली के तीनों नगर निगमों द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं. भलस्वा, ओखला और गाजीपुर में स्थित इन तीनों कूड़े के पहाड़ों से ना सिर्फ राजधानी के पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि लोगों के लिए भी यह परेशानी का सबब बने हुए हैं, लेकिन उसके बावजूद अभी तक कूड़े के पहाड़ की समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया है.

गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट पर सालों से बन रहे इन कूड़े के पहाड़ों को कम करने की कोशिश लगातार निगम कर रहे हैं, लेकिन जिस रफ्तार से इन्हें खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है, वह शंका के घेरे में है.

जानकारी के मुताबिक, तीनों कूड़े के पहाड़ों पर लगभग 280 लाख मैट्रिक टन कूड़े का अंबार साल 2019 में था. जब कूड़े के निष्पादन को लेकर प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था. पिछले दो साल से तीनो लैंडफिल साइट पर कूड़े के निष्पादन को लेकर बकायदा ट्रोमेल मशीनें भी लगाई गईं और लगातार मशीनों की संख्या को भी बढ़ाया जा रहा है.

उसके बावजूद अभी तक कूड़े के इन विशाल पहाड़ों की समस्या खत्म होती नजर नहीं आ रही है. बीते दो साल में जब से दिल्ली की तीनों लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की समस्या को समाप्त करने के लिए निष्पादन की प्रक्रिया को शुरू किया गया है. ट्रोमेल मशीनों की सहायता से तब से अब तक लगभग 23.5 लाख मैट्रिक टन कूड़े का ही निष्पादन किया जा सका है. जोकि निगम द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य से काफी कम है.

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आसान शब्दों में कहें तो तीनों लैंडफिल साइट पर नगर निगम के द्वारा कूड़े के निष्पादन की जो प्रक्रिया है उसकी रफ्तार बहुत धीमी है और दो साल के समय में तीनों लैंडफिल साइट पर मौजूद कूड़े के महज 8.3% हिस्से को ही निष्कासित किया जा सका है. जिस तरह से तीनों नगर निगमों के द्वारा कूड़े के पहाड़ के समस्या को समाप्त करने के मद्देनजर कूड़े के निष्पादन की प्रक्रिया की जा रही है. उसकी रफ्तार देखते हुए लगता है कि आने वाले कई साल तक कूड़े के पहाड़ राजधानी दिल्ली की समस्या बने रहेंगे.

तीनों नगर निगम के द्वारा पहले ही कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के मद्देनजर डेडलाइन को दो बार रिवाइज किया जा चुका है, लेकिन लगता नहीं है कि अगले एक-दो साल में लैंडफिल साइट का 50% हिस्सा भी खत्म हो पाएगा.

दिल्ली की तीनों नगर निगमों ने CPCB और दिल्ली सरकार को जो वर्तमान में लैंडफिल साइट के मद्देनजर रिपोर्ट दी है. उसके मुताबिक गाजीपुर लैंडफिल साइट पर वर्तमान समय में सबसे ज्यादा कूड़ा है जोकि करीब 140 लाख मैट्रिक टन है. वहीं नॉर्थ एमसीडी ने भलस्वा में मौजूद लैंडफिल साइट पर वर्तमान में 80 लाख मैट्रिक टन कूड़ा है, जबकि साउथ एमसीडी की लैंडफिल साइट जो ओखला में स्थित है उसमें 60 लाख मैट्रिक टन कूड़ा एकत्रित है. जिसके निष्पादन की प्रक्रिया निगमों के द्वारा लगातार की जा रही है.

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर अक्टूबर 2019 में तीनों नगर निगमों ने राजधानी दिल्ली में खराब हो रहे पर्यावरण की स्थिति और लैंडफिल साइट के आसपास रह रहे लोगों की परेशानियों को देखते हुए तीनों लैंडफिल साइट पर कूड़े के निष्पादन के प्रक्रिया को करने के निर्देश निगमों को दिए थे, जिसके बाद तीनों नगर नगर निगम के द्वारा कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के मद्देनजर प्रक्रिया शुरू की गई थी.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में लोगों को कूड़े का पहाड़ दिखाई देता है, हंसराज हंस ने साधा निशाना

इसके तहत नॉर्थ MCD, SDMC और EDMC ने अपनी-अपनी लैंडफिल साइट कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान के मद्देनजर गुजरात और मध्य प्रदेश के मॉडल के आधार पर ट्रोमेल मशीनें लगाई थी. ट्रोमेल मशीनें लगवाने के बाद गाजीपुर लैंडफिल साइट पर पिछले दो साल में 5.47 लाख मैट्रिक टन भलस्वा लैंडफिल साइट से 14.09 लाख मैट्रिक टन और SDMC की ओखला लैंडफिल साइट से महज चार लाख मैट्रिक टन कूड़े के निष्पादन की प्रक्रिया को पूरा किया जा सका है. जो बहुत कम है.


नॉर्थ एमसीडी के द्वारा भलस्वा लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ को खत्म करने की डेडलाइन जून 2022 तय की गई है, जिसके मद्देनजर निगम के द्वारा लगातार कई कदम उठाए जा रहे हैं. निगम ने लैंडफिल साइट पर ट्रोमेल मशीनें जो हैं उनकी संख्या बढ़ाकर 79 करने का भी फैसला कर लिया है. जिसमें से 24 महीने पहले से ही कार्यरत हैं और इस साल के अंत तक इतनी ही मशीनें और लगने जा रही हैं.

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नॉर्थ एमसीडी द्वारा हाल ही में कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के मद्देनजर कई निजी कंपनियों के साथ करार भी किया गया है, जिसके तहत अब कंपनियों को कूड़े के निष्पादन के वजन के हिसाब से पेमेंट की जाएगी. ताकि जल्द से जल्द कूड़े के पहाड़ की समस्या का निष्पादन किया जा सके.

साथ ही यदि कोई ट्रोमेल मशीन जिसे निजी कंपनी ने लगाया है. यदि वह निगम द्वारा निर्धारित की गई मात्रा में कूड़े का प्रतिदिन के हिसाब से निस्तारण नहीं कर पाती तो उसके ऊपर निगम के द्वारा जुर्माना भी लगाया जाएगा. नॉर्थ एमसीडी के द्वारा भलस्वा लैंडफिल साइट पर स्थित हर एक ट्रोमेल मशीन को कूड़े की निष्पादन प्रक्रिया के लिए हर महीने लगभग 18.50 लाख रुपए की राशि दी जाएगी जो कि पहले के मुकाबले काफी अधिक है.

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इस पूरे प्रस्ताव के मुताबिक, लैंडफिल साइट पर काम करने वाले सभी कर्मचारी भी उसी निजी एजेंसी के होंगे और मशीन को ऑपरेट करने वाले भी कर्मचारी उसी कंपनी के होंगे.

गाजीपुर लैंडफिल साइट की बात की जाए तो यहां कूड़े के पहाड़ को खत्म करने की डेडलाइन EDMC ने दिसंबर 2024 तय की है, लेकिन जिस तरह से निष्पादन का कार्य वर्तमान समय में किया जा रहा है. उससे नहीं लगता कि कूड़े के पहाड़ की समस्या जल्द समाप्त होने वाली है. EDMC द्वारा बकायदा कूड़े की पहाड़ की समस्या के समाधान के लिए 125 करोड रुपए जैसी बड़ी राशि के बजट को भी अलॉट किया गया है.

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SDMC द्वारा नॉर्थ और EDMC की तरह अपने क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ओखला लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की समस्या के समाधान को लेकर कई कड़े कदम उठाए गए हैं और निगम ने मार्च 2023 की डेडलाइन इस पहाड़ को खत्म करने के लिए तय की है. बता दें कि SDMC ने इस पूरे काम को करने के लिए ₹50 करोड़ की राशि का बजट भी अलॉट कर दिया है और जरूरत पड़ने पर इस बजट को बढ़ाया भी जा सकता है.

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