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निर्भया के दोषियों को जल्द हो सकती है फांसी! दिल्ली हाईकोर्ट में कल सुनवाई

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Published : Feb 4, 2020, 8:36 PM IST

5 फरवरी को निर्भया के दोषियों की जल्द फांसी की मांग को लेकर केंद्र सरकार की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट सुनवाई करेगा.

Nirbhaya gangrape
निर्भया गैंगरेप

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट, निर्भया के दोषियों की जल्द फांसी की मांग को लेकर केंद्र सरकार की याचिका पर कल यानि 5 फरवरी को फैसला सुनाएगा. आज ही निर्भया के माता-पिता के वकील ने गुनाहगारों की जल्द फांसी की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अर्जी पर जल्द आदेश सुनाए जाने की मांग की थी.

उनकी मांग पर जस्टिस सुरेश कैत ने आश्वस्त किया था कि फैसला जल्द ही सुनाया जाएगा. केंद्र सरकार की अर्जी पर हाईकोर्ट ने शनिवार और रविवार को विशेष सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रख लिया था.

'अलग-अलग फांसी दी जा सकती है'

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि नियम के हिसाब से मौजूदा वक्त में निर्भया के हत्यारों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है. जैसे ही राष्ट्रपति दया याचिका खारिज करते हैं, फांसी हो सकती है. उन्होंने कहा था कि कानून और संविधान में सिर्फ दया याचिका खारिज होने के बाद मृत्यदंड देने के लिए 14 दिनों की समय सीमा है. इस अवधि में दोषी अपनी आखिरी इच्छा या कानूनी प्रक्रिया पूरी कर सकता है और जेल प्रशासन तैयारी.

'हाईकोर्ट के सुनवाई का औचित्य नहीं'

दोषी मुकेश की ओर से वकील रेबेका जॉन ने कहा था कि ट्रायल के डेथ वारंट के खिलाफ दोषी की अर्जी पर हाईकोर्ट ने कोई दखल देने से इंकार कर दिया था. हमें सुप्रीम कोर्ट या ट्रायल कोर्ट जाने के लिए बोला गया था. लिहाजा सरकार की इस अर्जी पर भी हाईकोर्ट के सुनवाई का औचित्य नहीं बनता है.

'दोषियों के भी कानूनी अधिकार हैं'

रेबेका जॉन ने कहा था कि दोषियों को अलग-अलग फांसी की सजा देने के केन्द्र की दलील सही नहीं है. सरकार ने शत्रुघ्न चौहान केस में जारी गाइडलाइंस में सुधार के लिए इसलिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है क्योंकि उसके पास अलग-अलग फांसी देने का कोई कानूनी आधार नहीं है. वो मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है.

उन्होंने कहा था कि चाहे अपराध कितना भी जघन्य हो, दोषियों को समाज कितनी भी नफरत की नजर से देखता हो, लेकिन उनके भी कानूनी अधिकार हैं. आखिरी सांस तक उन्हें पैरवी का अधिकार है. इस लिहाज से मैं उनकी पैरवी कर रही हूं. फिर कोर्ट जो फैसला ले, वो उस पर निर्भर है.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट, निर्भया के दोषियों की जल्द फांसी की मांग को लेकर केंद्र सरकार की याचिका पर कल यानि 5 फरवरी को फैसला सुनाएगा. आज ही निर्भया के माता-पिता के वकील ने गुनाहगारों की जल्द फांसी की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अर्जी पर जल्द आदेश सुनाए जाने की मांग की थी.

उनकी मांग पर जस्टिस सुरेश कैत ने आश्वस्त किया था कि फैसला जल्द ही सुनाया जाएगा. केंद्र सरकार की अर्जी पर हाईकोर्ट ने शनिवार और रविवार को विशेष सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रख लिया था.

'अलग-अलग फांसी दी जा सकती है'

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि नियम के हिसाब से मौजूदा वक्त में निर्भया के हत्यारों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है. जैसे ही राष्ट्रपति दया याचिका खारिज करते हैं, फांसी हो सकती है. उन्होंने कहा था कि कानून और संविधान में सिर्फ दया याचिका खारिज होने के बाद मृत्यदंड देने के लिए 14 दिनों की समय सीमा है. इस अवधि में दोषी अपनी आखिरी इच्छा या कानूनी प्रक्रिया पूरी कर सकता है और जेल प्रशासन तैयारी.

'हाईकोर्ट के सुनवाई का औचित्य नहीं'

दोषी मुकेश की ओर से वकील रेबेका जॉन ने कहा था कि ट्रायल के डेथ वारंट के खिलाफ दोषी की अर्जी पर हाईकोर्ट ने कोई दखल देने से इंकार कर दिया था. हमें सुप्रीम कोर्ट या ट्रायल कोर्ट जाने के लिए बोला गया था. लिहाजा सरकार की इस अर्जी पर भी हाईकोर्ट के सुनवाई का औचित्य नहीं बनता है.

'दोषियों के भी कानूनी अधिकार हैं'

रेबेका जॉन ने कहा था कि दोषियों को अलग-अलग फांसी की सजा देने के केन्द्र की दलील सही नहीं है. सरकार ने शत्रुघ्न चौहान केस में जारी गाइडलाइंस में सुधार के लिए इसलिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है क्योंकि उसके पास अलग-अलग फांसी देने का कोई कानूनी आधार नहीं है. वो मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है.

उन्होंने कहा था कि चाहे अपराध कितना भी जघन्य हो, दोषियों को समाज कितनी भी नफरत की नजर से देखता हो, लेकिन उनके भी कानूनी अधिकार हैं. आखिरी सांस तक उन्हें पैरवी का अधिकार है. इस लिहाज से मैं उनकी पैरवी कर रही हूं. फिर कोर्ट जो फैसला ले, वो उस पर निर्भर है.

Intro:नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट निर्भया के गुनाहगारों की जल्द फांसी की मांग को लेकर केंद्र सरकार की याचिका पर कल यानि 5 फरवरी को फैसला सुनाएगा। आज ही माता पिता के वकील ने गुनाहगारों की जल्द फांसी की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अर्जी पर जल्द आदेश सुनाए जाने की मांग की थी। उनकी मांग पर जस्टिस सुरेश कैत ने आश्वस्त किया था कि फैसला जल्द ही सुनाया जाएगा। केंद्र सरकार की अर्जी पर हाईकोर्ट ने शनिवार और रविवार को विशेष सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रख लिया था।



Body:अलग-अलग फांसी दी जा सकती है
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि नियम के हिसाब से मौजूदा वक्त में निर्भया के हत्यारों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है। जैसे ही राष्ट्रपति दया याचिका खारिज करते हैं, फांसी हो सकती है। उन्होंने कहा था कि कानून और संविधान में सिर्फ दया याचिका खारिज होने के बाद मृत्यदंड देने के लिए 14 दिनों की समय सीमा है। इस अवधि में दोषी अपनी आखिरी इच्छा या कानूनी प्रक्रिया पूरी कर सकता है और जेल प्रशासन तैयारी।
हाईकोर्ट के सुनवाई का औचित्य नहीं
दोषी मुकेश की ओर से वकील रेबेका जॉन ने कहा था कि ट्रायल के डेथ वारंट के खिलाफ दोषी की अर्जी पर हाईकोर्ट ने कोई दखल देने से इंकार कर दिया था। हमें सुप्रीम कोर्ट या ट्रायल कोर्ट जाने के लिए बोला गया था। लिहाजा सरकार की इस अर्जी पर भी हाईकोर्ट के सुनवाई का औचित्य नहीं बनता है।



Conclusion:दोषियों के भी क़ानूनी अधिकार हैं
रेबेका जॉन ने कहा था कि दोषियों को अलग-अलग फांसी की सज़ा देने के केन्द्र की दलील सही नहीं है । सरकार ने शतुघ्न चौहान केस में जारी गाइडलाइंस में सुधार के लिए इसलिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है क्योंकि उसके पास अलग-अलग फांसी देने का कोई क़ानूनी आधार नहीं है। वो मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है। उन्होंने कहा था कि चाहे अपराध कितना भी जघन्य हो, दोषियों को समाज कितनी भी नफ़रत की नजर से देखता हो, लेकिन उनके भी क़ानूनी अधिकार हैं। आख़िरी सांस तक उन्हें पैरवी का अधिकार है। इस लिहाज से मैं उनकी पैरवी कर रही हूं। फिर कोर्ट जो फैसला ले , वो उस पर निर्भर है ।
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