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Delhi high court on pocso act: पॉक्सो मामलों में अनिवार्य रिपोर्टिंग के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस

दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए निर्देश दिया है.

Notice Issued to Center
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Published : Feb 22, 2023, 1:16 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन अपराधों में बच्चों के संरक्षण अधिनियम पॉक्सो के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. नाबालिगों से जुड़े यौन अपराधों की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बताया गया है, जिसका विरोध करते हुए याचिका दाखिल की गई है. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने सरकार को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है और मामले को जुलाई में संयुक्त रजिस्ट्रार के सामने दलीलों को पूरा करने के लिए सूचीबद्ध किया है. याचिकाकर्ता अधिवक्ता हर्ष विभोर सिंघल ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 19 धारा 21 और धारा 22 को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका दाखिल की है.

क्या है तीनों धाराओं मेंः

धारा 19 में नाबालिगों से जुड़े यौन अपराधों के संदेह या जानकारी की अनिवार्य रिपोर्टिंग की बात कहती है और धारा 21 ऐसा करने में किसी व्यक्ति की विफलता के लिए कारावास निर्धारित करती है. वहीं, धारा 22 झूठी रिपोर्टिंग के लिए एक सुरक्षा वाल्व के रूप में कार्य करती है, अगर वह अच्छी नीयत से की गई है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये प्रावधान कानून में खराब हैं, क्योंकि वे यौन हमले के उत्तरजीवी और सहमति से यौन संबंध में शामिल अन्य नाबालिगों को इस तरह की रिपोर्टिंग के लिए सूचित सहमति देने के अधिकार से वंचित करते हैं. याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि, ये प्रावधान जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और सहमति से यौन कृत्यों पर परिहार्य ध्यान केंद्रित करते हैं. याचिकाकर्ता ने कहा, किसी भी नाबालिग को न कानून, न पुलिस और न ही अदालत उसकी सेक्सुअल गतिविधि को रिपोर्ट करने के लिए मजबूर कर सकती है. ऐसे में अनिवार्य रिपोर्टिंग की आवश्यकता वाली धाराएं अस्थिर मनमानी और असंवैधानिक हैं और इन्हें खत्म कर देना चाहिए.

यह भी पढ़ें-कस्टडी पैरोल के दौरान दोषी को ही वहन करना होगा गार्ड का खर्च, दिल्ली हाईकोर्ट ने भेजा नोटिस

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि, पॉक्सो अधिनियम के तहत निर्धारित अनिवार्य रिपोर्टिंग नाबालिगों और वयस्क महिलाओं को प्रसव पूर्व, प्रजनन और यौन स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने से हतोत्साहित करती हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि 18 से कम उम्र के नाबालिगों द्वारा सहमति से किया गया यौन कृत्य, पूरी तरह से निजता के अधिकार के अंतर्गत आता है. इसे पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ में 9 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा भी मान्यता दी गई है, इसलिए याचिकाकर्ता ने अदालत से चुनौती के तहत प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया. इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने यौन आचरण से संबंधित किसी भी एफआईआर को दर्ज करने से पहले पीड़िता की सहमति प्राप्त करने के लिए पुलिस को निर्देश देने के लिए भी अदालत से गुहार लगाई.

यह भी पढ़ें-क्यों गंदे हैं दिल्ली के सार्वजनिक शौचालय, हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन अपराधों में बच्चों के संरक्षण अधिनियम पॉक्सो के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. नाबालिगों से जुड़े यौन अपराधों की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बताया गया है, जिसका विरोध करते हुए याचिका दाखिल की गई है. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने सरकार को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है और मामले को जुलाई में संयुक्त रजिस्ट्रार के सामने दलीलों को पूरा करने के लिए सूचीबद्ध किया है. याचिकाकर्ता अधिवक्ता हर्ष विभोर सिंघल ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 19 धारा 21 और धारा 22 को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका दाखिल की है.

क्या है तीनों धाराओं मेंः

धारा 19 में नाबालिगों से जुड़े यौन अपराधों के संदेह या जानकारी की अनिवार्य रिपोर्टिंग की बात कहती है और धारा 21 ऐसा करने में किसी व्यक्ति की विफलता के लिए कारावास निर्धारित करती है. वहीं, धारा 22 झूठी रिपोर्टिंग के लिए एक सुरक्षा वाल्व के रूप में कार्य करती है, अगर वह अच्छी नीयत से की गई है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये प्रावधान कानून में खराब हैं, क्योंकि वे यौन हमले के उत्तरजीवी और सहमति से यौन संबंध में शामिल अन्य नाबालिगों को इस तरह की रिपोर्टिंग के लिए सूचित सहमति देने के अधिकार से वंचित करते हैं. याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि, ये प्रावधान जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और सहमति से यौन कृत्यों पर परिहार्य ध्यान केंद्रित करते हैं. याचिकाकर्ता ने कहा, किसी भी नाबालिग को न कानून, न पुलिस और न ही अदालत उसकी सेक्सुअल गतिविधि को रिपोर्ट करने के लिए मजबूर कर सकती है. ऐसे में अनिवार्य रिपोर्टिंग की आवश्यकता वाली धाराएं अस्थिर मनमानी और असंवैधानिक हैं और इन्हें खत्म कर देना चाहिए.

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याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि, पॉक्सो अधिनियम के तहत निर्धारित अनिवार्य रिपोर्टिंग नाबालिगों और वयस्क महिलाओं को प्रसव पूर्व, प्रजनन और यौन स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने से हतोत्साहित करती हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि 18 से कम उम्र के नाबालिगों द्वारा सहमति से किया गया यौन कृत्य, पूरी तरह से निजता के अधिकार के अंतर्गत आता है. इसे पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ में 9 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा भी मान्यता दी गई है, इसलिए याचिकाकर्ता ने अदालत से चुनौती के तहत प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया. इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने यौन आचरण से संबंधित किसी भी एफआईआर को दर्ज करने से पहले पीड़िता की सहमति प्राप्त करने के लिए पुलिस को निर्देश देने के लिए भी अदालत से गुहार लगाई.

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