नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को निर्देश है दिया कि वो लॉ कमीशन के पास जाएं. हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद याचिकाकर्ता और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका वापस ले ली. इसके पहले अप्रैल में हाईकोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय से कहा था कि प्रथम दृष्टया आपकी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. वहीं मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की सभी धर्मों में तलाक, बच्चा गोद लेने और वसीयत की एक समान व्यवस्था की मांग पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून बनाना संसद का अधिकार है. हम इस पर आदेश नहीं दे सकते हैं.
वहीं मई 2019 में हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था, जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दायर कर कहा था कि समान नागरिक संहिता को लागू करना संविधान के नीति निर्देशक तत्व के तहत नीतिगत मामला है. इसे लागू करने के लिए कोर्ट दिशानिर्देश जारी नहीं कर सकती है. हलफनामे में यह भी कहा गया था कि कानून को लागू करने का सार्वभौम अधिकार संसद को है. इसके लिए कोई दूसरा पक्ष संसद को निर्देश जारी नहीं कर सकता है. इस मसले पर विस्तृत अध्ययन करने की जरुरत है. केंद्र सरकार ने लॉ कमीशन से आग्रह किया है कि वो विभिन्न समुदायों के लिए पर्सनल लॉ का अध्ययन कर जरूरी अनुशंसा करें.
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गौरतलब है कि बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया था कि संविधान की धारा 14, 15 और 44 की भावना को ध्यान में रखते हुए, देश के सभी लोगों पर समान आचार संहिता लागू करने के लिए दिशानिर्देश दिया जाए. याचिका में कहा गया था कि देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के लिए समान आचार संहिता जरूरी है. साथ ही यह भी कहा गया था कि सभी धर्मों और समुदायों की अच्छी परंपराओं को मिलाकर देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाए.
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