नई दिल्ली: ब्रिटेन के जिस नए वायरस के वैरिएंट की चर्चा हो रही है, आईसीएमआर ने वायरस के इस नए वेरिएंट को सफलतापूर्वक कल्चर कर लिया है. आईसीएमआर का दावा है कि पूरी दुनिया में वह पहला ऐसा वैज्ञानिक संस्थान है, जिसने कोविड-19 वायरस के नई वैरिएंट को सफलतापूर्वक लैब में कल्चर किया है. हालांकि आईसीएमआर अपने ट्विटर हैंडल पर यह सूचना सार्वजनिक करते हुए एक तकनीकी गलती कर दी. उन्होंने नए वायरल स्ट्रेन को कल्चर करने का दावा किया है, जो टेक्निकली गलत है, क्योंकि विशेषज्ञ ऐसा नहीं मानते हैं. इस वायरस का कोई नया स्ट्रेन नहीं है. दरअसल जिसे पूरी दुनिया में नया स्ट्रेन कहकर डर का माहौल बनाया जा रहा है, वह वायरस का एक नया वेरिएंट मात्र है. अगर यह नया स्ट्रेन होता तो अब तक वैक्सीन पर दुनिया भर में किये गए खरबों रुपये पानी बन गया होता क्योंकि नए स्ट्रेन पर अब तक बन चुके वैक्सीन प्रभावहीन हो जाती.
आईसीएमआर ने यह भी दावा किया है कि ब्रिटेन में जो वायरस का नया वेरिएंट मिला है उसे आईसीएमआर को छोडकर दुनिया में किसी देश ने भी आइसोलेट करने में सफलता नहीं प्राप्त की है. आखिर यह क्या है मामला और इसका वैक्सीन के ऊपर क्या असर पड़ेगा इसको लेकर हमने विशेषज्ञ से बात की.
नए वैरिंएंट को गलत तरीके से किया जा रहा प्रचारित
आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड और जाने-माने इंटवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ दीपक नटराजन ने बताया कि ब्रिटेन में जिस वायरस के वैरिअंट को खोजा गया है, उसे गलत तरीके से पूरी दुनिया में वायरस का नया 'स्ट्रेन' कहकर प्रचारित किया जा रहा है. यह कोई नया स्ट्रेन नहीं है, आईसीएमआर ने भी उत्साह में आकर यह गलती कर दी है. अपने ट्वीट में उसने ब्रिटेन में खोजे गए नए वैरीअंट को स्ट्रेन बताया है, लेकिन अच्छी बात यह है कि आगे उसने अपनी इस गलती को सुधार लिया और इसे कोविड-19 का नया वेरिएशन माना है, जिसे उसने सफलतापूर्वक कल्चर किया गया है.
अफ्रीकी बंदर से मिला नया वैरिएंट
डॉक्टर नटराजन बताते हैं कि ब्रिटेन में खोजे गए कोविड-19 वेरिएंट का कल्चर किया गया है. इसका मतलब यह है कि आईसीएमआर ने इसे अपने लैब में सेल्स के अंदर बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है. दरअसल ये 'वेरा सेल्स' हैं, जो अफ्रीकी बंदर में पाए जाते हैं. आईसीएमआर ने अपने टि्वटर हैंडल पर इसकी सूचना दी है, लेकिन इसमें थोड़ी सी टेक्निकल गलती है. उन्होंने लिखा है कि वायरस के स्ट्रेन को उन्होंने सफलतापूर्वक कल्चर कर लिया है. यह बात गलत है, क्योंकि वायरस का कोई नया स्ट्रेन अभी तक नहीं दिखा है. जिसे नया स्ट्रेन माना जा रहा है, वह वायरस का एक नया वैरिएंट है.
डरने की जरूरत नहीं
डॉ. नटराजन बताते हैं कि वायरस के वैरिएंट में थोड़े बदलाव आ गए हैं. वायरस के अंदर इस बदलाव को लेकर लोगों के मन में इसलिए डर बैठ गया है, क्योंकि इससे इसका ट्रांसमिशन बढ़ गया है. हालांकि यह एक मान्यता भर है, क्योंकि इसका अभी तक कोई साक्ष्य नहीं है, जिस पर विश्वास किया जाए. उन्होंने बताया कि इंग्लैंड के पब्लिक हेल्थ ने इस नए वेरिएंट को खोजा है, उसका मानना है कि इसमें वैरीअंट का ट्रांसमिशन थोड़ा तेज हो सकता है, लेकिन यह खतरनाक नहीं हो सकता है. इससे मृत्यु भी नहीं बढ़ी है, इसलिए इस नए वेरिएंट से डरने की कोई बात नहीं है.
मीडिया स्ट्रेन कहकर दुनिया भर में भ्रम फैला रही है
भ्रम फैलाने वाली बात मीडिया कर रही है, क्योंकि देश विदेश की मीडिया में इस नए वैरीअंट को वायरस का एक नया स्ट्रेन कहकर प्रचारित किया जा रहा है, जो गलत है. नया स्ट्रेन कहने का मतलब है कि उसकी पूरी की पूरी प्रॉपर्टी ही बदल गई है. अगर ऐसा हुआ होता तो दुनिया भर में खरबों रुपये की लागत से बनी वैक्सीन खराब हो जाती क्योंकि नए वायरस पर तो यह असर ही नहीं करता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. वायरस में एक मामूली बदलाव आया है जो खतरनाक नहीं है. यह बदलाव दुनिया के लगभग 20 देशों में हुआ है, जिसमें जापान, कोरिया, कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया, इटली और फ्रांस शामिल है.
नए वैरिएंट का जन्मदाता इंग्लैंड नहीं
वायरस के इस नई वैरिएंट को भले ही इंग्लैंड में खोजा गया हो, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि इंग्लैंड में ही पैदा हुआ हो. यह किसी भी देश में पैदा हुआ हो सकता है और वहां से इंग्लैंड तक पहुंच गया हो. यह अमेरिका में भी देखा गया है. अगर आईसीएमआर ट्वीट करके जानकारी देती है कि उसने वायरस के नए स्ट्रेन को सफलतापूर्वक कल्चर कर लिया है तो यह गलत सूचना है.
डॉ अजय ने वैरिएंट और स्ट्रेन को दिलचस्प उदाहरण से समझाया
वैक्सीन इंडिया डॉट ओआरजी के हेड और दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर आईसीएमआर के दावे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. उन्होंने एक दिलचस्प उदाहरण से वायरस के वैरिएंट और स्ट्रेन के बीच के अंतर को समझाया है. अगर एक भैंस को वायरस मान लिया जाय और इसका म्युटेशन हुआ है और उसके दो सिंग की जगह चार सिंग अंग आये तो यह अपनी ही प्रजाति का एक नया वैरिएंट है, लेकिन अगर काली भैंस सफेद हो जाय तो यह एक नई प्रजाति की हो गयी. इसे आप स्ट्रेन कह सकते हैं. ब्रिटेन में कोरोना का जो नया वायरस देखा गया वो सिर्फ एक वैरिएंट है. उसके जेनेटिक कोड पूरी तरह से बदले नहीं है तो वह स्ट्रेन कैसे हो सकता है?
रिसर्च के बाद पक्के तौर पर किए जा सकते हैं दावे
एनडीएमसी के पूर्व सीएमओ डॉ अनिल बंसल ने बताया कि कोरोना वायरस में थोड़े जेनेटिक बदलाव आए हैं, जो बिल्कुल सामान्य हैं. महीने में कम से कम दो बार ऐसा जरूर होता है, इस बदलाव को वैरिएंट कहते हैं, लेकिन अगर वायरस के सारे जेनेटिक कोड बदल जाये तो उसे नया स्ट्रेन कहेंगे. ब्रिटेन में जो नया कोरोना वायरस मिला है, वह स्ट्रेन के बजाय नया वैरिएंट ही लगता है. पक्के तौर पर कुछ भी कहने से पहले आगे एक रिसर्च का भी विषय है.