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अतिथि शिक्षकों ने कहा पॉलिसी नहीं बनी तो मर जायंगे हम सब

दिल्ली शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत आने वाले सरकारी स्कूलों में कार्यरत अतिथि शिक्षक 28 फरवरी को अनुबंध खत्म होने के बाद से हड़ताल पर बैठे हैं. यह अतिथि शिक्षक अलग-अलग तरीकों से प्रदर्शन कर रहे हैं कोई नारे लगा रहा है कोई सिर मुंडवा रहा है कोई थालीपीठ रहा है तो कोई कविताएं और गीत के जरिए अपना दर्द बयान कर रहा है.

'अब न माने हमारी तो मर जाएंगे हम'
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Published : Mar 7, 2019, 3:59 AM IST

Updated : Mar 7, 2019, 9:56 AM IST

नई दिल्ली: सरकारी स्कूल में बतौर अतिथि शिक्षक कार्यरत अख्तर आजमी ने बताया कि हम अतिथि शिक्षक कई वर्षों से सरकारी स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. लेकिन उसके बदले में एक ही झटके में हमें संस्थान से बाहर कर दिया गया. जिस स्कूल को हम अपना परिवार समझते थे वहां से हमें अलग कर दिया गया. दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर 5 दिन प्रदर्शन करने के बाद अतिथि शिक्षकों के हित में 60 साल की पॉलिसी का बिल पास करवा दिया गया है.

'अब न मानें हमारी तो मर जाएंगे हम'
अख्तर आजमी ने कहा कि यदि यह बिल एलजी से पास होकर लागू नहीं होता तो उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचेगा और ऐसे में वह मर जाना ज्यादा पसंद करेंगे. अपनी इन बातों को उन्होंने गाकर बताते हुए कहा कि ' बताओ जरा अब किधर जाएंगे अब न माने हमारी तो मर जाएंगे हम'. यह लाइन सभी अतिथि शिक्षकों का दर्द बयां करती है. इसके अलावा शिक्षक ने कहा कि जिस हैप्पीनेस पाठ्यक्रम को लेकर दिल्ली सरकार देश विदेशों में वाहवाही लूट रही है उसकी सफलता में भी अतिथि शिक्षकों की अहम भूमिका रही है. अख्तर जैसे सभी शिक्षकों का कहना है कि हमें अगर जॉब लेस कर दोगे तो हैप्पीनेस पाठ्यक्रम कैसे पूरा करोगे ?

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60 साल की पॉलिसी
बता दें कि अतिथि शिक्षक नियमित शिक्षकों से आधे से भी कम सैलरी में काम करते हैं अतिथि शिक्षकों की तनख्वाह डेली वेज के हिसाब से निर्धारित होती है. जितने दिन स्कूल जाकर काम करते हैं. उतने ही दिन की तनख्वाह उन्हें मिलती है, बीच में पड़ने वाली कोई भी छुट्टी चाहे वह रविवार हो या कोई त्यौहार ही क्यों ना हो उसकी तनख्वाह उन्हें नहीं दी जाती. दिल्ली सरकार के द्वारा अतिथि शिक्षकों को लेकर कैबिनेट में 60 साल की पॉलिसी पास होने के बाद अब सभी शिक्षक उम्मीद लगाए हुए हैं कि उपराज्यपाल अनिल बैजल जल्द ही फ़ाइल पास कर देंगे.

नई दिल्ली: सरकारी स्कूल में बतौर अतिथि शिक्षक कार्यरत अख्तर आजमी ने बताया कि हम अतिथि शिक्षक कई वर्षों से सरकारी स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. लेकिन उसके बदले में एक ही झटके में हमें संस्थान से बाहर कर दिया गया. जिस स्कूल को हम अपना परिवार समझते थे वहां से हमें अलग कर दिया गया. दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर 5 दिन प्रदर्शन करने के बाद अतिथि शिक्षकों के हित में 60 साल की पॉलिसी का बिल पास करवा दिया गया है.

'अब न मानें हमारी तो मर जाएंगे हम'
अख्तर आजमी ने कहा कि यदि यह बिल एलजी से पास होकर लागू नहीं होता तो उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचेगा और ऐसे में वह मर जाना ज्यादा पसंद करेंगे. अपनी इन बातों को उन्होंने गाकर बताते हुए कहा कि ' बताओ जरा अब किधर जाएंगे अब न माने हमारी तो मर जाएंगे हम'. यह लाइन सभी अतिथि शिक्षकों का दर्द बयां करती है. इसके अलावा शिक्षक ने कहा कि जिस हैप्पीनेस पाठ्यक्रम को लेकर दिल्ली सरकार देश विदेशों में वाहवाही लूट रही है उसकी सफलता में भी अतिथि शिक्षकों की अहम भूमिका रही है. अख्तर जैसे सभी शिक्षकों का कहना है कि हमें अगर जॉब लेस कर दोगे तो हैप्पीनेस पाठ्यक्रम कैसे पूरा करोगे ?

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60 साल की पॉलिसी
बता दें कि अतिथि शिक्षक नियमित शिक्षकों से आधे से भी कम सैलरी में काम करते हैं अतिथि शिक्षकों की तनख्वाह डेली वेज के हिसाब से निर्धारित होती है. जितने दिन स्कूल जाकर काम करते हैं. उतने ही दिन की तनख्वाह उन्हें मिलती है, बीच में पड़ने वाली कोई भी छुट्टी चाहे वह रविवार हो या कोई त्यौहार ही क्यों ना हो उसकी तनख्वाह उन्हें नहीं दी जाती. दिल्ली सरकार के द्वारा अतिथि शिक्षकों को लेकर कैबिनेट में 60 साल की पॉलिसी पास होने के बाद अब सभी शिक्षक उम्मीद लगाए हुए हैं कि उपराज्यपाल अनिल बैजल जल्द ही फ़ाइल पास कर देंगे.

Intro:दिल्ली शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत आने वाले सरकारी स्कूलों में कार्यरत अतिथि शिक्षक 28 फरवरी को अनुबंध खत्म होने के बाद से हड़ताल पर बैठे हैं. यह अतिथि शिक्षक अलग-अलग तरीकों से प्रदर्शन कर रहे हैं कोई नारे लगा रहा है कोई सिर मुंडवा रहा है कोई थालीपीठ रहा है तो कोई कविताएं और गीत के जरिए अपना दर्द बयान कर रहा है. वहीं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर प्रदर्शन करें अतिथि शिक्षक अख्तर आजमी ने गीतों के जरिए अपना दर्द ही नहीं बयान किया बल्कि सरकार को यह भी बता दिया कि बिना अतिथि शिक्षकों के वह हैप्पीनेस पाठ्यक्रम भी सुचारू रूप से नहीं चला सकते.



Body:सरकारी स्कूल में बतौर अतिथि शिक्षक कार्यरत अख्तर आजमी ने बताया कि हम अतिथि शिक्षक कई वर्षों से सरकारी स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. लेकिन उसके बदले में एक ही झटके में हमें संस्थान से बाहर कर दिया गया. जिस स्कूल को हम अपना परिवार समझते थे वहां से हमें अलग कर दिया गया उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर 5 दिन प्रदर्शन करने के बाद अतिथि शिक्षकों के हित में 60 साल की पॉलिसी का बिल पास करवा दिया गया है. वहीं उन्होंने कहा कि यदि यह बिल एलजी से पास होकर लागू नहीं होता तो उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचेगा और ऐसे में वह मर जाना ज्यादा पसंद करेंगे. अपनी इन बातों को उन्होंने गाकर बताते हुए कहा कि ' बताओ जरा अब किधर जाएंगे अब न माने हमारी तो मर जाएंगे हम'. यह लाइन सभी अतिथि शिक्षकों का दर्द बयां करती है. इसके अलावा शिक्षक ने कहा कि जिस हैप्पीनेस पाठ्यक्रम को लेकर दिल्ली सरकार देश विदेशों में वाहवाही लूट रही है उसकी सफलता में भी अतिथि शिक्षकों की अहम भूमिका रही है. अख्तर जैसे सभी शिक्षकों का कहना है कि हमें अगर जॉब लेस कर दोगे तो हैप्पीनेस पाठ्यक्रम कैसे पूरा करोगे

प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों में कई शिक्षक ऐसे हैं जिनका घर परिवार में दो वक्त की रोटी का यही एक जरिया था और वह भी उनसे छीन लिया गया. बता दें कि अतिथि शिक्षक नियमित शिक्षकों से आधे से भी कम सैलरी में काम करते हैं अतिथि शिक्षकों की तनख्वाह डेली वेज के हिसाब से निर्धारित होती है. जितने दिन स्कूल जाकर काम करते हैं. उतने ही दिन की तनख्वाह उन्हें मिलती है बीच में पड़ने वाली कोई भी छुट्टी चाहे वह रविवार हो या कोई त्यौहार ही क्यों ना हो उसकी तनख्वाह उन्हें नहीं दी जाती. बता दें कि दिल्ली सरकार के द्वारा अतिथि शिक्षकों को लेकर कैबिनेट में 60 साल की पॉलिसी पास होने के बाद अब सभी शिक्षक उम्मीद लगाए हुए हैं कि उपराज्यपाल अनिल बैजल जल्द ही फ़ाइल पास कर देंगे.




Conclusion:
Last Updated : Mar 7, 2019, 9:56 AM IST
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