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World Thalassemia Day: अपोलो अस्पताल ने लोगों को थैलेसीमिया को लेकर किया जागरूक

वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली द्वारा एक जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान लोगों को थैलेसीमिया नामक बीमारी के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई. इस बीच अपोलो अस्पताल द्वारा थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के इलाज से संबंधित कई घटनाक्रम भी साझा किए गए. अस्पताल के डॉक्टरों ने थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों का इलाज करने के दौरान अपने अनुभव भी साझा किए. कार्यक्रम में बच्चों के माता-पिता भी मौजूद रहे.

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Published : May 8, 2023, 10:56 PM IST

अपोलो अस्पताल ने लोगों को थैलेसीमिया को लेकर किया जागरूक

नई दिल्ली: थैलेसीमिया को लेकर नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने सोमवार को जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया. इस दौरान अस्पताल के विशेषज्ञों ने थैलेसीमिया के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए उन्नत चिकित्सा उपचारों को लेकर भी चर्चा की. विश्व थैलेसीमिया दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में सफल उपचार कराने वाले मासूम मरीज और उनके परिवार भी मौजूद रहे.

कार्यक्रम में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के प्रबंध निदेशक पी ​शिवकुमार और निदेशक चिकित्सा सेवा डॉ शांति बंसल ने थैलेसीमिया के इलाज को बढ़ावा देने के लिए लक्षण, उपचार के तौर-तरीकों और नैदानिक ​​परीक्षणों पर चर्चा की. विशेषज्ञों ने बताया कि बीते साल भर में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने थैलेसीमिया को लेकर कुछ चुनौतीपूर्ण मामलों को देखा है. इन रोगियों को अस्पताल में उपलब्ध उन्नत चिकित्सा सुविधाओं के माध्यम से इलाज दिया गया था. उन्होंने बताया कि हाल ही में एक पांच साल की बच्ची का मामला सामने आया जो ट्रांसफ्यूजन डिपेंडेंट थैलेसीमिया रोगी थी.

यह भी पढ़ेंः Anand Mohan: आनंद मोहन की बढ़ेंगी मुश्किलें?, रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट का बिहार सरकार को नोटिस

इसे नियमित रक्त आधान और आयरन केलेशन थेरेपी दी जा रही थी. इस बच्ची के भाई की मदद से डॉक्टरों ने एक टी सेल डिप्लीटेड हैप्लोआइडेंटिकल डोनर यानी परिवार के सदस्य से मेल करता टिश्यू लेकर बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया. यह ट्रांसप्लांट सफल रहा और उसका अस्थि मज्जा यानी बोन मैरो उसके भाई से 100 प्रतिशत कार्यात्मक कोशिकाओं को दिखाता है.

वहीं, एक और मामला चार साल की बच्ची का है. यह भी ट्रांसफ्यूजन डिपेंडेंट थैलेसीमिया रोगी थी और नियमित रक्त आधान व आयरन केलेशन थेरेपी ले रही थी. हालांकि, इस केस में मरीज से मेल करता डोनर नहीं मिल पाया जिसके चलते डॉक्टरों ने एक अगुणित पारिवारिक दाता आधान के लिए योजना बनाई थी. यह योजना सफल रही क्योंकि मरीज का ट्रांसप्लांट वैसा ही रहा, जिसकी उम्मीद डॉक्टरों ने की थी.

अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट एंड सेल्युलर थेरेपी एवं पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, ऑन्कोलॉजी एंड इम्यूनोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. गौरव खरिया ने कहा कि थैलेसीमिया काफी जो​खिम भरी बीमारी है जिसे रोका भी जा सकता है. इसके लिए लोगों में जागरुकता होना बहुत जरूरी है. देश में सालाना थैलेसीमिया मेजर ग्रस्त मरीजों की संख्या बढ़ रही है. यह न सिर्फ मनोवैज्ञानिक ब​ल्कि रोगी और उसके परिवार पर वित्तीय बोझ भी बनता है.

थैलेसीमिया मेजर प्रभावित बच्चों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट काफी हद तक एक योग्य इलाज है जिसमें मरीज के मेल करता एचएलए या फिर अगुणित डोनर का उपयोग करके ट्रांसप्लांट किया जाता है. इस सम्मेलन का उद्देश्य थैलेसीमिया मेजर के इलाज के रूप में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बारे में जागरूकता लाने और बीमारी को लेकर लोगों की चिंता दूर करना है.

अस्पताल के बाल चिकित्सा ऑन्कोलॉजी और हेमेटोलॉजी विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अमिता महाजन ने कहा कि जब हम थैलेसीमिया के बारे में चर्चा करते हैं तो हम जानते हैं कि लोग इसे लेकर न केवल बहुत भयभीत हैं, बल्कि इसके इलाज के बारे में कई गलत धारणाएं भी हैं. यह ​स्थिति तब है जब चिकित्सा क्षेत्र लगातार थैलेसीमिया प्रबंधन में काफी प्रगति देख रहा है. इन मिथक और गलत धारणाओं की वजह से मरीज के जीवन की गुणवत्ता को काफी नुकसान होता है. इस तरह के जागरूकता कार्यक्रमों का बहुत महत्व है क्योंकि यहां बीमारी के उपचार को लेकर चल रहे नवीनतम विकास पर चर्चा होती है और एक बड़ी आबादी तक वह संदेश पहुंचता है.

यह भी पढ़ेंः Karnataka Election 2023 : कर्नाटक में थमा चुनाव प्रचार का शोर, अब घर-घर जाकर मांगेंगे वोट

अपोलो अस्पताल ने लोगों को थैलेसीमिया को लेकर किया जागरूक

नई दिल्ली: थैलेसीमिया को लेकर नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने सोमवार को जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया. इस दौरान अस्पताल के विशेषज्ञों ने थैलेसीमिया के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए उन्नत चिकित्सा उपचारों को लेकर भी चर्चा की. विश्व थैलेसीमिया दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में सफल उपचार कराने वाले मासूम मरीज और उनके परिवार भी मौजूद रहे.

कार्यक्रम में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के प्रबंध निदेशक पी ​शिवकुमार और निदेशक चिकित्सा सेवा डॉ शांति बंसल ने थैलेसीमिया के इलाज को बढ़ावा देने के लिए लक्षण, उपचार के तौर-तरीकों और नैदानिक ​​परीक्षणों पर चर्चा की. विशेषज्ञों ने बताया कि बीते साल भर में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने थैलेसीमिया को लेकर कुछ चुनौतीपूर्ण मामलों को देखा है. इन रोगियों को अस्पताल में उपलब्ध उन्नत चिकित्सा सुविधाओं के माध्यम से इलाज दिया गया था. उन्होंने बताया कि हाल ही में एक पांच साल की बच्ची का मामला सामने आया जो ट्रांसफ्यूजन डिपेंडेंट थैलेसीमिया रोगी थी.

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इसे नियमित रक्त आधान और आयरन केलेशन थेरेपी दी जा रही थी. इस बच्ची के भाई की मदद से डॉक्टरों ने एक टी सेल डिप्लीटेड हैप्लोआइडेंटिकल डोनर यानी परिवार के सदस्य से मेल करता टिश्यू लेकर बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया. यह ट्रांसप्लांट सफल रहा और उसका अस्थि मज्जा यानी बोन मैरो उसके भाई से 100 प्रतिशत कार्यात्मक कोशिकाओं को दिखाता है.

वहीं, एक और मामला चार साल की बच्ची का है. यह भी ट्रांसफ्यूजन डिपेंडेंट थैलेसीमिया रोगी थी और नियमित रक्त आधान व आयरन केलेशन थेरेपी ले रही थी. हालांकि, इस केस में मरीज से मेल करता डोनर नहीं मिल पाया जिसके चलते डॉक्टरों ने एक अगुणित पारिवारिक दाता आधान के लिए योजना बनाई थी. यह योजना सफल रही क्योंकि मरीज का ट्रांसप्लांट वैसा ही रहा, जिसकी उम्मीद डॉक्टरों ने की थी.

अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट एंड सेल्युलर थेरेपी एवं पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, ऑन्कोलॉजी एंड इम्यूनोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. गौरव खरिया ने कहा कि थैलेसीमिया काफी जो​खिम भरी बीमारी है जिसे रोका भी जा सकता है. इसके लिए लोगों में जागरुकता होना बहुत जरूरी है. देश में सालाना थैलेसीमिया मेजर ग्रस्त मरीजों की संख्या बढ़ रही है. यह न सिर्फ मनोवैज्ञानिक ब​ल्कि रोगी और उसके परिवार पर वित्तीय बोझ भी बनता है.

थैलेसीमिया मेजर प्रभावित बच्चों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट काफी हद तक एक योग्य इलाज है जिसमें मरीज के मेल करता एचएलए या फिर अगुणित डोनर का उपयोग करके ट्रांसप्लांट किया जाता है. इस सम्मेलन का उद्देश्य थैलेसीमिया मेजर के इलाज के रूप में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बारे में जागरूकता लाने और बीमारी को लेकर लोगों की चिंता दूर करना है.

अस्पताल के बाल चिकित्सा ऑन्कोलॉजी और हेमेटोलॉजी विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अमिता महाजन ने कहा कि जब हम थैलेसीमिया के बारे में चर्चा करते हैं तो हम जानते हैं कि लोग इसे लेकर न केवल बहुत भयभीत हैं, बल्कि इसके इलाज के बारे में कई गलत धारणाएं भी हैं. यह ​स्थिति तब है जब चिकित्सा क्षेत्र लगातार थैलेसीमिया प्रबंधन में काफी प्रगति देख रहा है. इन मिथक और गलत धारणाओं की वजह से मरीज के जीवन की गुणवत्ता को काफी नुकसान होता है. इस तरह के जागरूकता कार्यक्रमों का बहुत महत्व है क्योंकि यहां बीमारी के उपचार को लेकर चल रहे नवीनतम विकास पर चर्चा होती है और एक बड़ी आबादी तक वह संदेश पहुंचता है.

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