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Shani Pradosh 2023: संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है ये व्रत, जानें पूजा विधि और मुहूर्त

शनि प्रदोष 4 मार्च 2023 को है. शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहते हैं. यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है. चलिए जानते हैं क्या है इसकी पूजा विधि और मुहूर्त.

Shani Pradosh 2023
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Published : Mar 4, 2023, 10:30 AM IST

नई दिल्ली/ग़ाज़ियाबाद: 4 मार्च को शनि प्रदोष का व्रत है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष तो शनि प्रदोष कहा जाता है. फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि यानी 4 मार्च (शनिवार) को 11:43 बजे से प्रारंभ होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि यानी 5 मार्च (रविवार) को इसका समापन होगा. शिव पूजना का उत्तम मुहूर्त 6:23 बजे से रात 8:51 बजे तक है.

संतान प्राप्ति का व्रत: हर महीने दो प्रदोष व्रत होते हैं. प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, यह संतान प्राप्ति के निमित्त किया जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करें. संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें. भगवान शिव और मां पार्वती की प्रतिमा की स्थापना करके मंत्रों से उनकी पूजा करें, आरती और प्रदोष कथा पढ़ें. भगवान शिव को फल, मिष्ठान, नैवेद्य आदि से भोग लगाएं.

शनि प्रदोष व्रत कथा: एक नगर में सेठ और सेठानी रहा करते थे. काफी धन संपत्ति उसके पास थी. नौकर चाकर थे, परंतु उनको संतान नहीं थी. वे हमेशा दुखी रहते थे और संतान प्राप्ति की चिंता करते थे. अंत में उन्होंने सोचा कि संसार नाशवान है इसलिए ईश्वर की पूजा, ध्यान और तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया जाए. वे अपने सारे काम विश्वस्त सेवकों को सौंप कर तीर्थ यात्रा के लिए चल दिए. गंगा किनारे एक संत तपस्या करे थे. सेठ ने विचार किया कि तीर्थ यात्रा करने से पहले इन संत का आशीर्वाद ले लिया जाए और वह कुटिया में संत के समक्ष ही बैठ गए. संत ने आंखें खोली तो उनसे उनके आने का कारण पूछा. सेठ दंपत्ति ने संत को प्रणाम किया. पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा. तब संत ने कहा कि आप शनि प्रदोष का व्रत करो और भगवान शिव की आशुतोष के रूप में प्रार्थना करो. तुम्हारी इच्छा शीघ्र ही पूरी होगी. दंपत्ति संत का आशीर्वाद लेकर उन्हें प्रणाम करके तीर्थ यात्रा पर निकल गए. उसके पश्चात जब घर लौटे तो शनि प्रदोष का बड़ी श्रद्धा के साथ व्रत किया और भगवान शिव की पूजा की उसके प्रभाव से सेठ दंपत्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं पर आधारित है. इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की कोई गारंटी नहीं है. हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है. ETV Bharat किसी भी तरह की मान्यता की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता का अनुसरण करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. इसके अलावा इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी उपयोगकर्ता की ही रहेगी.

ये भी पढ़ें: Amalaki - Rangbhari ekadashi : आज के दिन कोई-भी, किसी-भी समय करे ये उपाय, मिलेगा पीढ़ियों तक पुण्य, एकादशी पर ऐसे पाएं शिव का वरदान

नई दिल्ली/ग़ाज़ियाबाद: 4 मार्च को शनि प्रदोष का व्रत है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष तो शनि प्रदोष कहा जाता है. फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि यानी 4 मार्च (शनिवार) को 11:43 बजे से प्रारंभ होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि यानी 5 मार्च (रविवार) को इसका समापन होगा. शिव पूजना का उत्तम मुहूर्त 6:23 बजे से रात 8:51 बजे तक है.

संतान प्राप्ति का व्रत: हर महीने दो प्रदोष व्रत होते हैं. प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, यह संतान प्राप्ति के निमित्त किया जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करें. संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें. भगवान शिव और मां पार्वती की प्रतिमा की स्थापना करके मंत्रों से उनकी पूजा करें, आरती और प्रदोष कथा पढ़ें. भगवान शिव को फल, मिष्ठान, नैवेद्य आदि से भोग लगाएं.

शनि प्रदोष व्रत कथा: एक नगर में सेठ और सेठानी रहा करते थे. काफी धन संपत्ति उसके पास थी. नौकर चाकर थे, परंतु उनको संतान नहीं थी. वे हमेशा दुखी रहते थे और संतान प्राप्ति की चिंता करते थे. अंत में उन्होंने सोचा कि संसार नाशवान है इसलिए ईश्वर की पूजा, ध्यान और तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया जाए. वे अपने सारे काम विश्वस्त सेवकों को सौंप कर तीर्थ यात्रा के लिए चल दिए. गंगा किनारे एक संत तपस्या करे थे. सेठ ने विचार किया कि तीर्थ यात्रा करने से पहले इन संत का आशीर्वाद ले लिया जाए और वह कुटिया में संत के समक्ष ही बैठ गए. संत ने आंखें खोली तो उनसे उनके आने का कारण पूछा. सेठ दंपत्ति ने संत को प्रणाम किया. पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा. तब संत ने कहा कि आप शनि प्रदोष का व्रत करो और भगवान शिव की आशुतोष के रूप में प्रार्थना करो. तुम्हारी इच्छा शीघ्र ही पूरी होगी. दंपत्ति संत का आशीर्वाद लेकर उन्हें प्रणाम करके तीर्थ यात्रा पर निकल गए. उसके पश्चात जब घर लौटे तो शनि प्रदोष का बड़ी श्रद्धा के साथ व्रत किया और भगवान शिव की पूजा की उसके प्रभाव से सेठ दंपत्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं पर आधारित है. इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की कोई गारंटी नहीं है. हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है. ETV Bharat किसी भी तरह की मान्यता की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता का अनुसरण करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. इसके अलावा इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी उपयोगकर्ता की ही रहेगी.

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