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लेखक के नजरिए से जानिए कितनी खास है, शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ ओल्ड देल्ही

पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिकता को दर्शाते हुए यूं तो कई किताबें आ चुकी हैं, लेकिन रविवार शाम दिल्ली के वाईडब्ल्यूसीए सभागार में जिस किताब का लोकार्पण हुआ वह अपने आप में बेहद खास है.

शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ ओल्ड देल्ही
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Published : Nov 17, 2019, 10:09 PM IST

नई दिल्ली: अब तक आधा दर्जन किताबें लिख चुकीं जानी मानी इतिहासकार राना सफवी की सातवीं किताब है 'शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ ओल्ड देल्ही'. इससे पहले पुरानी दिल्ली पर ही आधारित राना सफवी की किताब The Forgotten Cities of Delhi खासी पसन्द की जा चुकी है.

शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ ओल्ड देल्ही

दिल्ली के वाईएमसीए सभागार में इस नई किताब का लोकार्पण हुआ. हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित इस किताब की कीमत 600 रुपए है.

लोगों ने खड़े होकर सुनी परिचर्चा
यह इस मायने में भी खास है कि यह किताब उस लेखक की कलम से निकली है, जिन्होंने न सिर्फ पुरानी दिल्ली को जिया है, बल्कि उससे जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज और ऐतिहासिक जगहों को नजदीक से देखा भी है. इस किताब की महता इस बात से भी समझी जा सकती है कि इसके लोकार्पण के वक्त न सिर्फ सभागार की सभी सीटें भरी थीं, बल्कि लोग खड़े होकर भी इस पर जारी परिचर्चा सुन रहे थे.

राना सफवी के अलावा इस परिचर्चा में शामिल थे, अशोक माथुर जिनका पुरानी दिल्ली से कई पीढ़ियों का नाता रहा है और वे अभी भी वही रहते हैं. इनके अलावा आंचल मल्होत्रा और अबू सुफियान भी इस चर्चा में शामिल रहे, जिनका किताब के लिए रिसर्च के समय राना सफवी को सहयोग भी मिला. वहीं मंच संचालन किया पत्रकार मणिमुग्ध एस. शर्मा ने.

पुरानी दिल्ली को ऐतिहासिकता से जोड़ने वाला पहलू
इस किताब के बहाने पुरानी दिल्ली को ऐतिहासिकता से जोड़ने वाले हर पहलू पर चर्चा हुई, वो चाहे इमारतें हों, किताबें, खानपान हो या फिर वहां के लोगों का आम जनजीवन. इस कार्यक्रम के बाद ईटीवी भारत ने राना सफवी से खास बातचीत भी की. उन्होंने इस किताब को इस मायने में बेहद खास बताया कि इसमें पुरानी दिल्ली की इंसानों से जुड़ी ऐतिहासिकता का जिक्र है.

राना सफवी ने बताया कि इससे पहले उन्होंने जो किताब लिखी था, वो पत्थरों और इमारतों के इर्द-गिर्द बुनी गई थी. लेकिन यह किताब उन जगहों का जीता जागता दस्तावेज है, जहां लोग रहते हैं, जहां कई पीढ़ियां अपना जीवन बसर कर चुकी हैं और उनकी वर्तमान पीढ़ी भी उन ऐतिहासिक जगहों पर निवास कर रही है.

किताब की वर्तमान समय में जरूरत
उन्होंने यह भी कहा कि इस किताब की वर्तमान समय में जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि ऐतिहासिक इमारतों को लेकर कई लोगों को गलतफहमी हो गई है. यह किताब उन्हें असलियत से रूबरू कराती है. राना सफवी ने इसे लेकर चिंता भी जताई कि वर्तमान समय में पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिक पहचान खत्म होती जा रही है, क्योंकि सैकड़ों साल पुराने इस शहर में आज जैसा आराम और कम्फर्ट तो मिल नहीं सकता, इसलिए जो लोग यहां दशकों से रहते आ रहे हैं, वे धीरे-धीरे जगह बदलने लगे हैं.

उन्होंने इस किताब की यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि इस किताब को लिखने के क्रम में रिसर्च के दौरान बहुत कुछ ऐसा मिला जो बर्बाद हो चुका है. लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी मिला जो आज भी है और उसका पूरा दस्तावेज इस किताब में है. वे इसे लेकर आशान्वित दिखीं कि दिल्ली के लोग ही फिर से दिल्ली को उसकी पुरानी पहचान वापस दिलाएंगे.

नई दिल्ली: अब तक आधा दर्जन किताबें लिख चुकीं जानी मानी इतिहासकार राना सफवी की सातवीं किताब है 'शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ ओल्ड देल्ही'. इससे पहले पुरानी दिल्ली पर ही आधारित राना सफवी की किताब The Forgotten Cities of Delhi खासी पसन्द की जा चुकी है.

शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ ओल्ड देल्ही

दिल्ली के वाईएमसीए सभागार में इस नई किताब का लोकार्पण हुआ. हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित इस किताब की कीमत 600 रुपए है.

लोगों ने खड़े होकर सुनी परिचर्चा
यह इस मायने में भी खास है कि यह किताब उस लेखक की कलम से निकली है, जिन्होंने न सिर्फ पुरानी दिल्ली को जिया है, बल्कि उससे जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज और ऐतिहासिक जगहों को नजदीक से देखा भी है. इस किताब की महता इस बात से भी समझी जा सकती है कि इसके लोकार्पण के वक्त न सिर्फ सभागार की सभी सीटें भरी थीं, बल्कि लोग खड़े होकर भी इस पर जारी परिचर्चा सुन रहे थे.

राना सफवी के अलावा इस परिचर्चा में शामिल थे, अशोक माथुर जिनका पुरानी दिल्ली से कई पीढ़ियों का नाता रहा है और वे अभी भी वही रहते हैं. इनके अलावा आंचल मल्होत्रा और अबू सुफियान भी इस चर्चा में शामिल रहे, जिनका किताब के लिए रिसर्च के समय राना सफवी को सहयोग भी मिला. वहीं मंच संचालन किया पत्रकार मणिमुग्ध एस. शर्मा ने.

पुरानी दिल्ली को ऐतिहासिकता से जोड़ने वाला पहलू
इस किताब के बहाने पुरानी दिल्ली को ऐतिहासिकता से जोड़ने वाले हर पहलू पर चर्चा हुई, वो चाहे इमारतें हों, किताबें, खानपान हो या फिर वहां के लोगों का आम जनजीवन. इस कार्यक्रम के बाद ईटीवी भारत ने राना सफवी से खास बातचीत भी की. उन्होंने इस किताब को इस मायने में बेहद खास बताया कि इसमें पुरानी दिल्ली की इंसानों से जुड़ी ऐतिहासिकता का जिक्र है.

राना सफवी ने बताया कि इससे पहले उन्होंने जो किताब लिखी था, वो पत्थरों और इमारतों के इर्द-गिर्द बुनी गई थी. लेकिन यह किताब उन जगहों का जीता जागता दस्तावेज है, जहां लोग रहते हैं, जहां कई पीढ़ियां अपना जीवन बसर कर चुकी हैं और उनकी वर्तमान पीढ़ी भी उन ऐतिहासिक जगहों पर निवास कर रही है.

किताब की वर्तमान समय में जरूरत
उन्होंने यह भी कहा कि इस किताब की वर्तमान समय में जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि ऐतिहासिक इमारतों को लेकर कई लोगों को गलतफहमी हो गई है. यह किताब उन्हें असलियत से रूबरू कराती है. राना सफवी ने इसे लेकर चिंता भी जताई कि वर्तमान समय में पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिक पहचान खत्म होती जा रही है, क्योंकि सैकड़ों साल पुराने इस शहर में आज जैसा आराम और कम्फर्ट तो मिल नहीं सकता, इसलिए जो लोग यहां दशकों से रहते आ रहे हैं, वे धीरे-धीरे जगह बदलने लगे हैं.

उन्होंने इस किताब की यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि इस किताब को लिखने के क्रम में रिसर्च के दौरान बहुत कुछ ऐसा मिला जो बर्बाद हो चुका है. लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी मिला जो आज भी है और उसका पूरा दस्तावेज इस किताब में है. वे इसे लेकर आशान्वित दिखीं कि दिल्ली के लोग ही फिर से दिल्ली को उसकी पुरानी पहचान वापस दिलाएंगे.

Intro:पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिकता को दर्शाते हुए यूं तो कई किताबें आ चुकी हैं, लेकिन रविवार शाम दिल्ली के वाईडब्ल्यूसीए सभागार में जिस किताब का लोकार्पण हुआ वह अपने आप में बेहद खास है.


Body:नई दिल्ली: अब तक आधा दर्जन किताबें लिख चुकीं जानी मानी इतिहासकार राना सफवी की सातवीं किताब है Shahjahanabad: The Living City of Old Delhi. इससे पहले पुरानी दिल्ली पर ही आधारित राना सफवी की किताब The Forgotten Cities of Delhi खासी पसन्द की जा चुकी है. दिल्ली के वाईएमसीए सभागार में इस नई किताब का लोकार्पण हुआ. हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित इस किताब की कीमत 600 रुपए है.

यह इस मायने में भी खास है कि यह किताब उस लेखक की कलम से निकली है, जिन्होंने न सिर्फ पुरानी दिल्ली को जिया है, बल्कि उससे जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज और ऐतिहासिक जगहों को नजदीक से देखा भी है. इस किताब की महता इस बात से भी समझी जा सकती है कि इसके लोकार्पण के वक्त न सिर्फ सभागार की सभी सीटें भरी थीं, बल्कि लोग खड़े होकर भी इस पर जारी परिचर्चा सुन रहे थे.

राना सफवी के अलावा इस परिचर्चा में शामिल थे, अशोक माथुर जिनका पुरानी दिल्ली से कई पीढ़ियों का नाता रहा है और वे अभी भी वही रहते हैं. इनके अलावा आंचल मल्होत्रा और अबू सुफियान भी इस चर्चा में शामिल रहे, जिनका किताब के लिस रिसर्च के समय राना सफवी को सहयोग भी मिला. वहीं मंच संचालन किया पत्रकार मणिमुग्ध एस. शर्मा ने.

इस किताब के बहाने पुरानी दिल्ली को ऐतिहासिकता से जोड़ने वाले हर पहलू पर चर्चा हुई, वो चाहे इमारतें हों, किताबें, खानपान हो या फिर वहां के लोगों का आम जनजीवन. इस कार्यक्रम के बाद ईटीवी भारत ने राना सफवी से खास बातचीत भी की. उन्होंने इस किताब को इस मायने में बेहद खास बताया कि इसमें पुरानी दिल्ली की इंसानों से जुड़ी ऐतिहासिकता का जिक्र है.

राना सफवी ने बताया कि इससे पहले उन्होंने जो किताब लिखी था, वो पत्थरों और इमारतों के इर्द-गिर्द बुनी गई थी. लेकिन यह किताब उन जगहों का जीता जागता दस्तावेज है, जहां लोग रहते हैं, जहां कई पीढ़ियां अपना जीवन बसर कर चुकी हैं और उनकी वर्तमान पीढ़ी भी उन ऐतिहासिक जगहों पर निवास कर रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि इस किताब की वर्तमान समय में जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि ऐतिहासिक इमारतों को लेकर कई लोगों को गलतफहमी हो गई है. यह किताब उन्हें असलियत से रूबरू कराती है. राना सफवी ने इसे लेकर चिंता भी जताई कि वर्तमान समय में पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिक पहचान खत्म होती जा रही है, क्योंकि सैकड़ों साल पुराने इस शहर में आज जैसा आराम और कम्फर्ट तो मिल नहीं सकता, इसलिए जो लोग यहां दशकों से रहते आ रहे हैं, वे धीरे-धीरे जगह बदलने लगे हैं.


Conclusion:उन्होंने इस किताब की यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि इस किताब को लिखने के क्रम में रिसर्च के दौरान बहुत कुछ ऐसा मिला जो बर्बाद हो चुका है. लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी मिला जो आज भी है और उसका पूरा दस्तावेज इस किताब में है. वे इसे लेकर आशान्वित दिखीं कि दिल्ली के लोग ही फिर से दिल्ली को उसकी पुरानी पहचान वापस दिलाएंगे.
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