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समय पर इलाज मिलता तो बच जाती प्रमोद की जान, तीन बड़े सरकारी अस्पतालों ने नहीं किया था भर्ती

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jan 5, 2024, 7:44 PM IST

Government Hospitals Functioning: दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में इलाज न मिलने से पुलिस की जिप्सी से गिर कर घायल हुए प्रमोद उर्फ पप्पू की मौत हो गई. अगर समय पर इलाज मिल जाता तो प्रमोद की जान बच सकती थी.

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सरकारी अस्पतालों की लापरवाही से गई प्रमोद की जान

नई दिल्ली: शराब के नशे में पुलिस की जिप्सी से गिरने के बाद घायल हुए प्रमोद उर्फ पप्पू की दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में इलाज न मिलने के कारण उसकी मौत हो गई. प्रमोद की मौत से उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. उसके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. उसके परिवार में पत्नी ममता (44), एक बेटी ऋतिका (20), एक बेटा सुधांशु (17) और 15 साल का एक और बेटा है. इनके साथ ही उसकी बुजुर्ग मां और एक छोटा भाई जितेंद्र है.

परिजनों ने बताया कि जितेंद्र को शराब पीने की आदत थी. शराब के नशे में वह कभी-कभी झगड़ा कर लेता था. दो जनवरी को घटना वाली रात भी प्रमोद ने शराब के नशे में झगड़ा कर लिया था. इसके बाद पुलिस उसको पकड़कर थाने ले जा रही थी, जहां पर पुलिस की जिप्सी से कूदने के कारण उसको चोट लगी और अस्पतालों में इलाज न मिलने के चलते उसकी मौत हो गई.

घटनास्थल के नजदीक स्थित दिल्ली सरकार के बड़े अस्पताल जीटीबी में अगर समय पर सीटी स्कैन और इलाज मिल जाता तो उसकी जान बच सकती थी. लेकिन, अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब होने के चलते उसे लोकनायक अस्पताल रेफर कर दिया गया. इस मामले में जीटीबी अस्पताल के पीआरओ रजत झांब से फोन करने पर उनका फोन ऑफ मिला.

बता दें कि दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल होने के बावजूद लोकनायक अस्पताल (2010 बेड) में वेंटिलेटर बेड खाली नहीं होने की बात कह कर प्रमोद को भर्ती करने से मना कर दिया गया. लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉक्टर सुरेश कुमार का कहना है कि अस्पताल की इमरजेंसी में दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश हरियाणा के भी मरीज बड़ी संख्या में आते हैं जिसकी वजह से अस्पताल के अधिकतर बेड फुल रहते हैं.

उन्होंने आगे बताया हालांकि जो भी मरीज अस्पताल की इमरजेंसी में आते हैं बेड खाली होने की स्थिति में उनको भर्ती करना हमारी प्राथमिकता होती है. लेकिन लोकनायक अस्पताल में दिल्ली ही नहीं उत्तर प्रदेश और हरियाणा से भी मरीज बड़ी संख्या में आते हैं. ऐसी स्थिति में अस्पताल में हमेशा बेड फुल ही रहते हैं. जब भी कोई बेड खाली होता है तो उसे पर पहले से ही 10 मरीज वेटिंग में होते हैं.

ऐसे में वेंटिलेटर बेड खाली रहना बहुत मुश्किल होता है. बेड न खाली होने की स्थिति में मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर करना उनकी मजबूरी होती है. लोकनायक अस्पताल में बेड न मिलने के बाद पुलिस टीम प्रमोद को लेकर आरएमएल अस्पताल पहुंची. वहां, भी बेड खाली न होने की बात कहकर उसको वापस कर दिया गया. अंत में पुलिस टीम प्रमोद को लेकर उस्मानपुर स्थित जग प्रवेश चंद्र अस्पताल पहुंची, जहां तीन जनवरी को सुबह 5:45 बजे उसकी मौत हो गई.

बता दें कि पूर्वी दिल्ली इलाके में जग प्रवेश चंद्र अस्पताल जीटीबी, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी के बाद चौथा बड़ा अस्पताल है. लेकिन, यहां भी आपातकालीन स्थिति में इलाज की उचित व्यवस्था न होने के चलते प्रमोद को ज़ीटीबी रेफर किया गया. अगर प्रमोद को पहली बार में ही जग प्रवेश चंद्र अस्पताल में इलाज मिल जाता तो शायद उसकी उसकी मौत नहीं होती.

मृतक के भाई का कहना है कि आए दिन दिल्ली सरकार अपने स्वास्थ्य मॉडल की तारीफ करती है. लेकिन, इमरजेंसी में अधिकतर अस्पताल मरीज को भर्ती करने से मना कर देते हैं और एक से दूसरे अस्पताल में रेफर करने का खेल खेलते रहते हैं. उनको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मरीज की को तुरंत इलाज मिलना बेहद जरूरी है. जितेंद्र ने बताया कि भाई की मौत के बाद उनके परिवार बच्चों और मां की देखरेख की बड़ी जिम्मेदारी उन पर आ गई है.



सरकारी अस्पतालों की लापरवाही से गई प्रमोद की जान

नई दिल्ली: शराब के नशे में पुलिस की जिप्सी से गिरने के बाद घायल हुए प्रमोद उर्फ पप्पू की दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में इलाज न मिलने के कारण उसकी मौत हो गई. प्रमोद की मौत से उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. उसके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. उसके परिवार में पत्नी ममता (44), एक बेटी ऋतिका (20), एक बेटा सुधांशु (17) और 15 साल का एक और बेटा है. इनके साथ ही उसकी बुजुर्ग मां और एक छोटा भाई जितेंद्र है.

परिजनों ने बताया कि जितेंद्र को शराब पीने की आदत थी. शराब के नशे में वह कभी-कभी झगड़ा कर लेता था. दो जनवरी को घटना वाली रात भी प्रमोद ने शराब के नशे में झगड़ा कर लिया था. इसके बाद पुलिस उसको पकड़कर थाने ले जा रही थी, जहां पर पुलिस की जिप्सी से कूदने के कारण उसको चोट लगी और अस्पतालों में इलाज न मिलने के चलते उसकी मौत हो गई.

घटनास्थल के नजदीक स्थित दिल्ली सरकार के बड़े अस्पताल जीटीबी में अगर समय पर सीटी स्कैन और इलाज मिल जाता तो उसकी जान बच सकती थी. लेकिन, अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब होने के चलते उसे लोकनायक अस्पताल रेफर कर दिया गया. इस मामले में जीटीबी अस्पताल के पीआरओ रजत झांब से फोन करने पर उनका फोन ऑफ मिला.

बता दें कि दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल होने के बावजूद लोकनायक अस्पताल (2010 बेड) में वेंटिलेटर बेड खाली नहीं होने की बात कह कर प्रमोद को भर्ती करने से मना कर दिया गया. लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉक्टर सुरेश कुमार का कहना है कि अस्पताल की इमरजेंसी में दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश हरियाणा के भी मरीज बड़ी संख्या में आते हैं जिसकी वजह से अस्पताल के अधिकतर बेड फुल रहते हैं.

उन्होंने आगे बताया हालांकि जो भी मरीज अस्पताल की इमरजेंसी में आते हैं बेड खाली होने की स्थिति में उनको भर्ती करना हमारी प्राथमिकता होती है. लेकिन लोकनायक अस्पताल में दिल्ली ही नहीं उत्तर प्रदेश और हरियाणा से भी मरीज बड़ी संख्या में आते हैं. ऐसी स्थिति में अस्पताल में हमेशा बेड फुल ही रहते हैं. जब भी कोई बेड खाली होता है तो उसे पर पहले से ही 10 मरीज वेटिंग में होते हैं.

ऐसे में वेंटिलेटर बेड खाली रहना बहुत मुश्किल होता है. बेड न खाली होने की स्थिति में मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर करना उनकी मजबूरी होती है. लोकनायक अस्पताल में बेड न मिलने के बाद पुलिस टीम प्रमोद को लेकर आरएमएल अस्पताल पहुंची. वहां, भी बेड खाली न होने की बात कहकर उसको वापस कर दिया गया. अंत में पुलिस टीम प्रमोद को लेकर उस्मानपुर स्थित जग प्रवेश चंद्र अस्पताल पहुंची, जहां तीन जनवरी को सुबह 5:45 बजे उसकी मौत हो गई.

बता दें कि पूर्वी दिल्ली इलाके में जग प्रवेश चंद्र अस्पताल जीटीबी, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी के बाद चौथा बड़ा अस्पताल है. लेकिन, यहां भी आपातकालीन स्थिति में इलाज की उचित व्यवस्था न होने के चलते प्रमोद को ज़ीटीबी रेफर किया गया. अगर प्रमोद को पहली बार में ही जग प्रवेश चंद्र अस्पताल में इलाज मिल जाता तो शायद उसकी उसकी मौत नहीं होती.

मृतक के भाई का कहना है कि आए दिन दिल्ली सरकार अपने स्वास्थ्य मॉडल की तारीफ करती है. लेकिन, इमरजेंसी में अधिकतर अस्पताल मरीज को भर्ती करने से मना कर देते हैं और एक से दूसरे अस्पताल में रेफर करने का खेल खेलते रहते हैं. उनको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मरीज की को तुरंत इलाज मिलना बेहद जरूरी है. जितेंद्र ने बताया कि भाई की मौत के बाद उनके परिवार बच्चों और मां की देखरेख की बड़ी जिम्मेदारी उन पर आ गई है.



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