गाजियाबाद: क्या आप कल्पना कर सकते हैं जिस उम्र में बच्चे खिलौने के लिए जिद करते हैं, स्कूल जाने की तैयारी कर रहे होते हैं, उस उम्र में एक बच्ची ने किताब लिखने की शुरुआत कर दी. कहते हैं "होनहार विरवान के होते चिकने पात". इसे साकार किया है गाजियाबाद की अभिजिता गुप्ता ने, जो राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की परपोती हैं और 5वीं कक्षा में पढ़ती है. जब पांच साल की थी तभी से उसने किताब लिखनी शुरू कर दी थी. पिछले पांच सालों में उसने तीन महत्वपूर्ण किताबें लिख दी हैं.
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का नाम सुनते ही सबसे पहले उनकी अर्थबोध, ओजपूर्ण और देशभक्ति की कवितायें याद आती हैं. उनकी रचना भारत भारती का ख्याल आता है, जो आजादी की लड़ाई के समय काफी प्रभावशाली साबित हुई थी. 59 साल की उम्र में उन्होंने हिंदी को लगभग 74 रचनाएं प्रदान कीं, जिनमें दो महाकाव्य, 17 गीतिकाव्य, 20 खंड काव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य हैं. उनकी राह पर अभी से चल निकली है उनकी परपोती अभिजीता, जिसने महज 10 साल की उम्र में लेखिका की पहचान बना ली है. अंतर इतना है कि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी के कवि थे और अभिजीता ने अपनी किताबें अंग्रेजी में लिखी हैं. इसे समय का बदलाव भी कह सकते हैं. अभिजीता ने छोटी-सी उम्र में परिपक्व लेखिका का खिताब हासिल कर लिया है.
10 साल की उम्र में लिखी तीन किताबेंः किसी ने ठीक ही कहा है कि सफलता प्राय: उनके कदम चूमती है, जिनके पास सफलता को निहारने का वक्त नहीं होता. गाजियाबाद के इंदिरापुरम की रहने वाली अभिजीता ने "हैप्पीनेस आल अराउंड" (Happiness all around), "टू बिगिन विद लिटिल थिंग्स" (To begin with the Little things) और "वी विल श्योरली सस्टेन" (We will surely sustain) किताबें लिख चुकी हैं. अभिजीता अपना नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स और वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स (लंदन) में दर्ज करा चुकी हैं. इस लेखिका को अब तक दर्जन भर से अधिक अवार्ड भी मिल चुके हैं. हाल ही में उसने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात की थी.
"कुछ काम करो ,कुछ काम करो. जग में रहकर निज नाम करो, यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो... मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं की इन पक्तियों की तरह हीं उनकी परपोती भी जग में बड़ा नाम करना चाहती हैं."
परदादा के अनूठे संस्कारों की छांव में पली-बढ़ी अभिजीता सबसे कम उम्र की लेखिका बन गई है. उसका नाम अब तक एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है. अभिजीता ने इस किताब को महज तीन महीने में लिख दिया था. किताब में उसकी उर्वर कल्पना स्पष्ट दिखती है.
आसपास की चीजों को शब्दों में ढालने का कौशल रखने वाली अभिजिता कई अवार्ड बटोर चुकीं हैं. उसकी सक्सेस स्टोरी जानते हैं उसी के जुबानी. पढ़िए ETV भारत के संवाददाता शहजाद से उसकी बातचीत के अंश...
सवाल: कहां से आपको लिखने की प्रेरणा मिलती है?
जवाब: मैं अपने आसपास के माहौल से प्रेरणा लेती हूं. बहुत अच्छी आब्जर्वर हूँ. इसके अलावा, मैं अपनी भावनाओं और विचारों को शब्दों में पिरोती हूँ. मैंने कई तरह की किताबें पढ़ी हैं, जिनसे मैंने अपनी कल्पना का दायरा और बड़ा किया है.
सवाल: किताब लिखने के लिए विषय कहां से लेकर आती हो, क्योंकि विषय का चुनाव काफी महत्वपूर्ण होता है?
जवाब: मैं वही विषय चुनती हूं, जो हजारों लोगों तक आसानी से पहुंचे और जिसमें रीडर्स और लेखक के बीच एक जुड़ाव हो. ताकि हजारों लोग प्रेरित हो सकें. तभी आप एक लेखक के रूप में सफल हो सकते हैं.
सवाल: आपके परदादाजी हिंदी के बड़े कवि थे, लेकिन आपने अंग्रेजी माध्यम क्यों चुना?
जवाब: आजकल हमारी टेक्स्ट बुक्स इंग्लिश में होती हैं. लगभग सभी लोग इंग्लिश बोलते हैं. हम इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं, इसलिए जब मेरे विचारों को शब्दों में पिरोने का समय आता है, तो मुझे हिंदी की अपेक्षा इंग्लिश थोड़ी आसान लगती है. लेकिन मैं हिंदी में लिखने के लिए भी कोशिश कर रही हूँ.
सवाल: आपको परिवार से किस तरह का सहयोग मिलता है?
जवाब: जब भी परेशानियां आती हैं तो मेरा परिवार मुझे प्रोत्साहित करता है. वे मेरी कहानियों और कविताओं को सुनते समय मेरी तारीफ करते हैं. कभी-कभी मुझे रात में या सुबह के वक्त लिखना होता है. ऐसे में मुझे माता-पिता के साथ की जरूरत पड़ती है और वह कभी मुझे ना नहीं कहते. मेरा परिवार बाखूबी समझता है कि विचार समय देखकर नहीं आते.
सवाल: लेखक बनने में पूरी जिंदगी लग जाती है अपनी इतनी कम उम्र में इतनी सफलता कैसे हासिल की?
जवाब: जैसे कहते हैं, अपने शौक का पीछा करते हुए आप सफलता की ओर बढ़ते हैं. मैं खुद को लेखक नहीं मानती. बस यही है कि मैं अपने दिल की सुनती हूं, लेकिन मेरे सामने बहुत सी चीजें हैं और मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ करना है.
सवाल: लेखन और पढ़ाई में कैसे को-ऑर्डिनेशन बनाती हैं?
जवाब: जब बात पढ़ाई और लेखने के बीच कॉर्डिनेशन बनाने की होती है, तो मैं सबसे पहले अपना होमवर्क पूरा करती हूँ. क्योंकि मुझे जीवन में पढ़ाई के महत्व का पता है. इसलिए जब तक मेरा होमवर्क पूरा नहीं होता, मैं किसी भी चीज में अपना 100% नहीं दे सकती.
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