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International Day of Sign Languages: मूक-बधिर बच्चों को मुफ्त पढ़ा रही रिचा वल्लभ खुल्बे, ऐसे बढ़ाती हैं आत्मविश्वास

महरौली की रहने वाली रिचा वल्लभ खुल्बे मूक-बधिर बच्चों की आवाज बन रही हैं. रिचा दिव्यांग बच्चों के लिए लर्निंग सेंटर चलाती हैं. जहां वो बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर उनके सपनों को पंख लगा रही है.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 23, 2023, 4:33 PM IST

मूक-बधिर सेंटर में पढ़ाई कर रहे बच्चे

नई दिल्ली/गाजियाबाद: हर साल 23 सितंबर अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (International Day of Sign Languages) के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है लोगों को सांकेतिक भाषा के महत्व के बारे में जागरूक करना. वहीं मूक-बधिर बच्चों को यदि सही शिक्षा व सकारात्मक माहौल मिले तो वे समाज की मुख्यधारा में ​शामिल होकर अपने जीवन को बेहतर बना लेते हैं. इसी मकसद के साथ महरौली की रहने वाली रिचा वल्लभ खुल्बे मूक-बधिर बच्चों की आवाज बन रही हैं. रिचा दिव्यांग बच्चों के लिए लर्निंग सेंटर चला रही हैं. बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. आपको बता दें कि बाधिर लोगों के लिए सांकेतिक भाषा काफी मायने रखता है. इसमें उंगलियों या हाथ के इशारों के माध्यम से बातचीत की जाती है.

देव भागीरथी लर्निंग सेंटर में बच्चे शरीर के अंगों के माध्यम से अपनी बात कहने की कला सिख रहे हैं. वो लोगों को उंगलियों या हाथ के इशारों के माध्यम से अपनी बात समझाते हैं. वहीं करीब डेढ़ दशक से हियरिंग इंपेयर्ड बच्चों को साइन लैंग्वेज सिखा रही शिक्षिका रूपा शर्मा बताती हैं कि "साइन लैंग्वेज सीखने के बाद मूकबधिर बच्चों की जिंदगी को एक नई दिशा मिलती है. बेसिक साइन लैंग्वेज सीखने में मूकबधिर बच्चे को 3 से 4 हफ्ते का वक्त लगता है. बच्चों के साथ-साथ उनके मां-बाप को भी साइन लैंग्वेज सिखाई जाती है. जिससे कि बच्चा घर पर जब अपने मां-बाप से बात करें तो वह साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल कर सके और उसकी साइन लैंग्वेज और इंप्रूव हो सके"

आपको बता दें कि साइन लैंग्वेज के माध्यम से बच्चों को एक्सप्रेशंस, अल्फाबेट्स, काउंटिंग आदि सिखाई जाती है. साइन लैंग्वेज सीखने के बाद डेफ एंड डंब बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में काफी आसानी होती है. हालांकि देश में अभी ऐसे बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूलों का काफी अभाव है.

क्या कहना है इन बच्चों के परिजनों का

गाजियाबाद में कन्नौजा गांव के रहने वाले आरिफ बताते कि उनकी बेटी यहां साइन लैंग्वेज सीखी रही है. पहले उन्हें साइन लैंग्वेज के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी. उन्होंने बटी का एडमिशन पास के एक स्कूल में करवाया था जहां वो कुछ समझ नहीं पाती थी. लेकिन जब से वह देव भागीरथी लर्निंग सेंटर आ रही है तब से काफी बदलाव देखने को मिल रहा है बेटी अब साइन लैंग्वेज में अपनी तमाम बातें हमसे कह पाती है.

महरौली के रहने वाली सर्वेश बताती हैं कि "पहले जब उनकी बेटी कुछ कहती थी तो उसको समझाना काफी मुश्किल होता था. स्कूल में साइन लैंग्वेज सीखने के बाद अब बेटी आसानी से अपनी बात हमसे कह पाती है और हम भी उसकी बात को समझ पाते हैं. साइन लैंग्वेज सीखने के बाद बेटी काफी डिसिप्लिन हो गई है. हमें अब काफी उम्मीद है कि हमारी बेटी शिक्षित होकर काफी आगे बढ़ेगी.

यह भी पढ़ें-International Day of Sign language : भारत में बधिरों की संख्या 50 लाख के पार, जानें श्रवण बाधितों के लिए कितना जरूरी है सांकेतिक भाषा

मूक-बधिर सेंटर में पढ़ाई कर रहे बच्चे

नई दिल्ली/गाजियाबाद: हर साल 23 सितंबर अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (International Day of Sign Languages) के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है लोगों को सांकेतिक भाषा के महत्व के बारे में जागरूक करना. वहीं मूक-बधिर बच्चों को यदि सही शिक्षा व सकारात्मक माहौल मिले तो वे समाज की मुख्यधारा में ​शामिल होकर अपने जीवन को बेहतर बना लेते हैं. इसी मकसद के साथ महरौली की रहने वाली रिचा वल्लभ खुल्बे मूक-बधिर बच्चों की आवाज बन रही हैं. रिचा दिव्यांग बच्चों के लिए लर्निंग सेंटर चला रही हैं. बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. आपको बता दें कि बाधिर लोगों के लिए सांकेतिक भाषा काफी मायने रखता है. इसमें उंगलियों या हाथ के इशारों के माध्यम से बातचीत की जाती है.

देव भागीरथी लर्निंग सेंटर में बच्चे शरीर के अंगों के माध्यम से अपनी बात कहने की कला सिख रहे हैं. वो लोगों को उंगलियों या हाथ के इशारों के माध्यम से अपनी बात समझाते हैं. वहीं करीब डेढ़ दशक से हियरिंग इंपेयर्ड बच्चों को साइन लैंग्वेज सिखा रही शिक्षिका रूपा शर्मा बताती हैं कि "साइन लैंग्वेज सीखने के बाद मूकबधिर बच्चों की जिंदगी को एक नई दिशा मिलती है. बेसिक साइन लैंग्वेज सीखने में मूकबधिर बच्चे को 3 से 4 हफ्ते का वक्त लगता है. बच्चों के साथ-साथ उनके मां-बाप को भी साइन लैंग्वेज सिखाई जाती है. जिससे कि बच्चा घर पर जब अपने मां-बाप से बात करें तो वह साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल कर सके और उसकी साइन लैंग्वेज और इंप्रूव हो सके"

आपको बता दें कि साइन लैंग्वेज के माध्यम से बच्चों को एक्सप्रेशंस, अल्फाबेट्स, काउंटिंग आदि सिखाई जाती है. साइन लैंग्वेज सीखने के बाद डेफ एंड डंब बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में काफी आसानी होती है. हालांकि देश में अभी ऐसे बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूलों का काफी अभाव है.

क्या कहना है इन बच्चों के परिजनों का

गाजियाबाद में कन्नौजा गांव के रहने वाले आरिफ बताते कि उनकी बेटी यहां साइन लैंग्वेज सीखी रही है. पहले उन्हें साइन लैंग्वेज के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी. उन्होंने बटी का एडमिशन पास के एक स्कूल में करवाया था जहां वो कुछ समझ नहीं पाती थी. लेकिन जब से वह देव भागीरथी लर्निंग सेंटर आ रही है तब से काफी बदलाव देखने को मिल रहा है बेटी अब साइन लैंग्वेज में अपनी तमाम बातें हमसे कह पाती है.

महरौली के रहने वाली सर्वेश बताती हैं कि "पहले जब उनकी बेटी कुछ कहती थी तो उसको समझाना काफी मुश्किल होता था. स्कूल में साइन लैंग्वेज सीखने के बाद अब बेटी आसानी से अपनी बात हमसे कह पाती है और हम भी उसकी बात को समझ पाते हैं. साइन लैंग्वेज सीखने के बाद बेटी काफी डिसिप्लिन हो गई है. हमें अब काफी उम्मीद है कि हमारी बेटी शिक्षित होकर काफी आगे बढ़ेगी.

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