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CAA-NRC विवाद: इंटरनेट बंद करने के खिलाफ याचिका खारिज

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Published : Dec 24, 2019, 7:28 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने CAA के खिलाफ प्रदर्शन में इंटरनेट बंद को लेकर 19 दिसंबर को सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर द्वारा डाली गई याचिका को खारिज कर दिया है.

High court dismisses plea to shut down internet
हाईकोर्ट ने की इंटरनेट बंद करने की याचिका खारिज

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर प्रदर्शन के दौरान मोबाइल इंटरनेट बंद करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है.



'आदेश नियम के मुताबिक नहीं था'
याचिका सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर ने दायर किया था. याचिका में कहा गया था कि पुलिस उपायुक्त पीएस कुशवाहा के इंटरनेट बंद करने के फैसले को निरस्त किया जाए. याचिका में कहा गया था कि इंटरनेट बंद करने का आदेश अस्थाई निलंबन नियम 2017 के तहत नहीं था. साथ ही कहा गया कि ऐसा आदेश पारित करने के लिए सक्षम अधिकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय का सचिव या दिल्ली सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव के रैंक से नीचे का कोई अधिकारी नहीं हो.

'डीसीपी को आदेश देने का अधिकार नहीं'
याचिका में कहा गया था कि डीसीपी को अस्थाई निलंबन नियम 2017 के तहत यह आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं था. याचिका में कहा गया था कि इंटरनेट बंद करने से बैंकिंग गतिविधियां, बिलों के भुगतान और स्टार्टअप्स के कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ा.

'आदेश अस्थाई था'
याचिका में गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस आदेश का भी हवाला दिया गया था जिसमें इंटरनेट बंद करने के आदेश को निरस्त कर दिया गया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एएसजी संजय जैन ने कहा कि इंटरनेट बंद करने का आदेश देते समय उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था और वह अस्थाई आदेश था. केंद्र सरकार की इस दलील के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि आदेश अस्थाई था इसलिए याचिका खारिज की जाती है.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर प्रदर्शन के दौरान मोबाइल इंटरनेट बंद करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है.



'आदेश नियम के मुताबिक नहीं था'
याचिका सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर ने दायर किया था. याचिका में कहा गया था कि पुलिस उपायुक्त पीएस कुशवाहा के इंटरनेट बंद करने के फैसले को निरस्त किया जाए. याचिका में कहा गया था कि इंटरनेट बंद करने का आदेश अस्थाई निलंबन नियम 2017 के तहत नहीं था. साथ ही कहा गया कि ऐसा आदेश पारित करने के लिए सक्षम अधिकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय का सचिव या दिल्ली सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव के रैंक से नीचे का कोई अधिकारी नहीं हो.

'डीसीपी को आदेश देने का अधिकार नहीं'
याचिका में कहा गया था कि डीसीपी को अस्थाई निलंबन नियम 2017 के तहत यह आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं था. याचिका में कहा गया था कि इंटरनेट बंद करने से बैंकिंग गतिविधियां, बिलों के भुगतान और स्टार्टअप्स के कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ा.

'आदेश अस्थाई था'
याचिका में गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस आदेश का भी हवाला दिया गया था जिसमें इंटरनेट बंद करने के आदेश को निरस्त कर दिया गया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एएसजी संजय जैन ने कहा कि इंटरनेट बंद करने का आदेश देते समय उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था और वह अस्थाई आदेश था. केंद्र सरकार की इस दलील के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि आदेश अस्थाई था इसलिए याचिका खारिज की जाती है.

Intro:नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 19 दिसंबर को प्रदर्शन के दौरान दिल्ली में मोबाइल इंटरनेट बंद करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप अपनी बात उचित प्राधिकार के समक्ष रखें।




Body:इंटरनेट बंद करने का आदेश नियम के मुताबिक नहीं था
याचिका सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर ने दायर किया था। याचिका में कहा गया था कि पुलिस उपायुक्त पीएस कुशवाहा के इंटरनेट बंद करने के फैसले को निरस्त किया जाए। याचिका में कहा गया था कि इंटरनेट बंद करने का आदेश अस्थाई निलंबन नियम 2017 के तहत नहीं था। याचिका में कहा गया था कि ऐसा आदेश पारित करने के लिए सक्षम अधिकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय का सचिव या दिल्ली सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव के रैंक से नीचे का कोई अधिकारी नहीं हो।
डीसीपी को इंटरनेट बंद करने का आदेश देने का अधिकार नहीं
याचिका में कहा गया था कि डीसीपी को अस्थाई निलंबन नियम 2017 के तहत यह आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं था। याचिका में कहा गया था कि इंटरनेट बंद करने से बैंकिंग गतिविधियां, बिलों के भुगतान और स्टार्टअप्स के कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ा।



Conclusion:बंद अस्थायी था-केंद्र
याचिका में गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस आदेश का भी हवाला दिया गया था जिसमें इंटरनेट बंद करने के आदेश को निरस्त कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एएसजी संजय जैन ने कहा कि इंटरनेट बंद करने का आदेश देते समय उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था और वह अस्थाई आदेश था । केंद्र सरकार की इस दलील के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि आदेश अस्थाई था इसलिए याचिका खारिज की जाती है।
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