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दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष योगानंद शास्त्री ने कुछ यूं किया शीला दीक्षित को याद....

निधन के साथ ही शीला दीक्षित अब इतिहास बन चुकी हैं. मामले में ईटीवी भारत से योगानंद शास्त्री ने बीत की और उनसे जुड़ी यादों को साझा किया. योगानंद शास्त्री दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं.

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Published : Jul 22, 2019, 9:01 PM IST

योगानंद शास्त्री etv bharat

नई दिल्ली: निधन के साथ ही शीला दीक्षित अब इतिहास बन चुकी हैं. कुछ है तो सिर्फ उनसे जुड़ी यादें और इन यादों में वे लोग भी हैं, जो शीला दीक्षित के सियासी और सामाजिक रूप से करीब रहे. इन्हीं में से एक हैं योगानंद शास्त्री, जो शीला दीक्षित कैबिनेट में मंत्री भी रहे और विधानसभा अध्यक्ष भी. शीला दीक्षित से जुड़ी उनकी क्या यादें हैं और वे शीला दीक्षित को किस रूप में याद करते हैं, इसे लेकर ईटीवी भारत ने योगानंद शास्त्री से खास बातचीत की.

योगानंद शास्त्री से खास बातचीत
योगानंद शास्त्री ने शीला दीक्षित के व्यक्तिगत जीवन से लेकर उनके सियासी जीवन तक के हर पहलू पर विस्तृत रूप में प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि किस तरह से शीला दीक्षित ने विनोद दीक्षित से शादी के बाद उनके पिता उमाशंकर दीक्षित से सियासत की बारीकियां सीखी और फिर दिल्ली की सियासत का एक बड़ा चेहरा बनी.

सबको साथ लेकर चलती थीं
सबको साथ लेकर चलने के शीला दीक्षित के गुण का भी योगानंद शास्त्री ने जिक्र किया. उन्होंने बताया कि किस तरह से हरियाणा में जब कांग्रेस पार्टी की स्थिति डांवाडोल थी, उस समय शीला दीक्षित ने कांग्रेस पार्टी के दो गुटों के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश की और इसके कारण वहां पर कांग्रेस पार्टी की सरकार भी बनी. अपने तीनों कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित किस तरह पूरी कैबिनेट को साथ लेकर चलीं और इसके पीछे उनकी क्या रणनीतियां रहीं, इस बाबत भी योगानंद शास्त्री ने अपनी बात रखी.


शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते हुए योगानंद शास्त्री विधानसभा के अध्यक्ष थे. इस दौरान के अपने अनुभवों को साझा करते हुए योगानंद शास्त्री ने बताया कि कई बार शीला दीक्षित जी से लोग कहते थे कि स्पीकर के रूप में शास्त्रीजी विपक्षी दलों के प्रति कठोर नहीं हैं, तो इसपर शीला दीक्षित हंसकर जवाब देती थीं कि इनके काम करने का तरीका अलग है, ये हंसते मुस्कुराते सबको समझा कर साथ लेकर चलते हैं.

योगानंद शास्त्री ने यह भी कहा कि शीला दीक्षित इस रूप में अलहदा थीं कि वे ज्यादा गुस्सा नहीं करती थीं, किसी को डांटती, फटकारती नहीं थीं. यह उनका खास गुण था कि वे प्यार से समझाकर ब्यूरोक्रेट्स से कोई भी काम करा लेती थीं. इस सवाल पर कि आगे अब शीला दीक्षित के न रहने पर कांग्रेस पार्टी उनकी किस सीख और किन संदेशों को लेकर आगे बढ़ेगी, इस पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी को उनसे बहुत सीख मिली है और अब और ज्यादा मिलेगी, क्योंकि आदमी के न रहने पर उसके सन्देश समझ आते हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस पार्टी के वर्तमान नेताओं को शीला दीक्षित से कर्तव्य परायणता, शालीनता, हर व्यक्ति को इज्जत देना और कोई काम कल के लिए न टालना सीख सकते हैं.



नई दिल्ली: निधन के साथ ही शीला दीक्षित अब इतिहास बन चुकी हैं. कुछ है तो सिर्फ उनसे जुड़ी यादें और इन यादों में वे लोग भी हैं, जो शीला दीक्षित के सियासी और सामाजिक रूप से करीब रहे. इन्हीं में से एक हैं योगानंद शास्त्री, जो शीला दीक्षित कैबिनेट में मंत्री भी रहे और विधानसभा अध्यक्ष भी. शीला दीक्षित से जुड़ी उनकी क्या यादें हैं और वे शीला दीक्षित को किस रूप में याद करते हैं, इसे लेकर ईटीवी भारत ने योगानंद शास्त्री से खास बातचीत की.

योगानंद शास्त्री से खास बातचीत
योगानंद शास्त्री ने शीला दीक्षित के व्यक्तिगत जीवन से लेकर उनके सियासी जीवन तक के हर पहलू पर विस्तृत रूप में प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि किस तरह से शीला दीक्षित ने विनोद दीक्षित से शादी के बाद उनके पिता उमाशंकर दीक्षित से सियासत की बारीकियां सीखी और फिर दिल्ली की सियासत का एक बड़ा चेहरा बनी.

सबको साथ लेकर चलती थीं
सबको साथ लेकर चलने के शीला दीक्षित के गुण का भी योगानंद शास्त्री ने जिक्र किया. उन्होंने बताया कि किस तरह से हरियाणा में जब कांग्रेस पार्टी की स्थिति डांवाडोल थी, उस समय शीला दीक्षित ने कांग्रेस पार्टी के दो गुटों के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश की और इसके कारण वहां पर कांग्रेस पार्टी की सरकार भी बनी. अपने तीनों कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित किस तरह पूरी कैबिनेट को साथ लेकर चलीं और इसके पीछे उनकी क्या रणनीतियां रहीं, इस बाबत भी योगानंद शास्त्री ने अपनी बात रखी.


शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते हुए योगानंद शास्त्री विधानसभा के अध्यक्ष थे. इस दौरान के अपने अनुभवों को साझा करते हुए योगानंद शास्त्री ने बताया कि कई बार शीला दीक्षित जी से लोग कहते थे कि स्पीकर के रूप में शास्त्रीजी विपक्षी दलों के प्रति कठोर नहीं हैं, तो इसपर शीला दीक्षित हंसकर जवाब देती थीं कि इनके काम करने का तरीका अलग है, ये हंसते मुस्कुराते सबको समझा कर साथ लेकर चलते हैं.

योगानंद शास्त्री ने यह भी कहा कि शीला दीक्षित इस रूप में अलहदा थीं कि वे ज्यादा गुस्सा नहीं करती थीं, किसी को डांटती, फटकारती नहीं थीं. यह उनका खास गुण था कि वे प्यार से समझाकर ब्यूरोक्रेट्स से कोई भी काम करा लेती थीं. इस सवाल पर कि आगे अब शीला दीक्षित के न रहने पर कांग्रेस पार्टी उनकी किस सीख और किन संदेशों को लेकर आगे बढ़ेगी, इस पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी को उनसे बहुत सीख मिली है और अब और ज्यादा मिलेगी, क्योंकि आदमी के न रहने पर उसके सन्देश समझ आते हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस पार्टी के वर्तमान नेताओं को शीला दीक्षित से कर्तव्य परायणता, शालीनता, हर व्यक्ति को इज्जत देना और कोई काम कल के लिए न टालना सीख सकते हैं.



Intro:निधन के साथ ही शीला दीक्षित अब इतिहास बन चुकी हैं. कुछ है तो सिर्फ उनसे जुड़ी यादें और इन यादों में वे लोग भी हैं, जो शीला दीक्षित के सियासी और सामाजिक रूप से करीब रहे. इन्हीं में से एक हैं, योगानंद शास्त्री, जो शीला दीक्षित कैबिनेट में मंत्री भी रहे और विधानसभा अध्यक्ष भी. शीला दीक्षित से जुड़ी उनकी क्या यादें हैं और वे शीला दीक्षित को किस रूप में याद करते हैं, इसे लेकर ईटीवी भारत ने योगानंद शास्त्री से खास बातचीत की.


Body:नई दिल्ली: योगानंद शास्त्री ने शीला दीक्षित के व्यक्तिगत जीवन से लेकर उनके सियासी जीवन तक के हर पहलू पर विस्तृत रूप में प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि किस तरह से शीला दीक्षित ने विनोद दीक्षित से शादी के बाद उनके पिता उमाशंकर दीक्षित से सियासत की बारीकियां सीखी और फिर दिल्ली की सियासत का एक बड़ा चेहरा बनी.

सबको साथ लेकर चलने के शीला दीक्षित के गुण का भी योगानंद शास्त्री ने जिक्र किया. उन्होंने बताया कि किस तरह से हरियाणा में जब कांग्रेस पार्टी की स्थिति डांवाडोल थी, उस समय शीला दीक्षित ने कांग्रेस पार्टी के दो गुटों के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश की और इसके कारण वहां पर कांग्रेस पार्टी की सरकार भी बनी. अपने तीनों कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित किस तरह पूरी कैबिनेट को साथ लेकर चलीं और इसके पीछे उनकी क्या रणनीतियां रहीं, इस बाबत भी योगानंद शास्त्री ने अपनी बात रखी.

शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते हुए योगानंद शास्त्री विधानसभा के अध्यक्ष थे. इस दौरान के अपने अनुभवों को साझा करते हुए योगानंद शास्त्री ने बताया कि कई बार शीला दीक्षित जी से लोग कहते थे कि स्पीकर के रूप में शास्त्रीजी विपक्षी दलों के प्रति कठोर नहीं हैं, तो इसपर शीला दीक्षित हंसकर जवाब देती थीं कि इनके काम करने का तरीका अलग है, ये हंसते मुस्कुराते सबको समझा कर साथ लेकर चलते हैं.

योगानंद शास्त्री ने यह भी कहा कि शीला दीक्षित इस रूप में अलहदा थीं कि वे ज्यादा गुस्सा नहीं करती थीं, किसी को डांटती, फटकारती नहीं थीं. यह उनका खास गुण था कि वे प्यार से समझाकर ब्यूरोक्रेट्स से कोई भी काम करा लेती थीं. इस सवाल पर कि आगे अब शीला दीक्षित के न रहने पर कांग्रेस पार्टी उनकी किस सीख और किन संदेशों को लेकर आगे बढ़ेगी, इस पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी को उनसे बहुत सीख मिली है और अब और ज्यादा मिलेगी, क्योंकि आदमी के न रहने पर उसके सन्देश समझ आते हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस पार्टी के वर्तमान नेताओं को शीला दीक्षित से कर्तव्य परायणता, शालीनता, हर व्यक्ति को इज्जत देना और कोई काम कल के लिए न टालना सीख सकते हैं.



Conclusion:अब देखने वाली बात यह होगी कि योगानंद शास्त्री ने जो बातें कहीं उसे वर्तमान कांग्रेसी नेता किस तरह से आत्मसात करते हैं.
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