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चाइनीज प्रोडक्ट ने ली मिट्टी के दीयों की जगह, सुनिए कारीगर की पीड़ा

राजधानी दिल्ली में मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों का कारोबार ठप पड़ा है. मिट्टी के दीयों की जगह चाइनीज़ समानों ने ले ली है.

मिट्टी के दीये etv bharat
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Published : Oct 4, 2019, 7:21 PM IST

नई दिल्ली: देश की प्राचीन और पौराणिक परंपराओं पर चाइनीज बाजारों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है. हिंदुओं का प्रमुख त्योहार दिवाली आने वाला है और दिवाली की तैयारियां कर रहे कुम्हार हाथ पर हाथ रखे खाली बैठे हैं. कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज बाजारों ने पूरी तरह से इन लोगों के रोजगार पर असर डाला है और बाकी की कसर सरकार ने पूरी कर दी है. अब कुम्हारों का परिवार खाली बैठकर सरकार को कोस रहा है.

कारीगरों का कारोबार पड़ा है ठप

'चीनी सामानों ने ले ली जगह'
भारतवर्ष में देवी-देवताओं की पूजा के लिए मिट्टी के बर्तनों में पूजा करना शुभ माना जाता है. जैसे-जैसे समय बदलता गया, हालात बदलते गए. मिट्टी के बर्तनों की जगह चाइनीज सामानों ने ले ली. देवी-देवताओं की पूजा के लिए मिट्टी के दीये जलाये जाते हैं. बाजार से मिट्टी के दिए केवल पूजा अर्चना लिए ही लोग खरीदते हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार के परिवार से बात की. उनका कहना है कि दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से चलती है. मिट्टी के दीयों का कारोबार बिल्कुल ठप पड़ा है. चार पांच लोगों का परिवार मिलकर सुबह से शाम तक मात्र 150 रुपये से 200 रुपये ही कमा पाता है.

'मजबूरी में करना पड़ता है काम'
सरकार ने पहले कुम्हारों के लिए मिट्टी के भंडार दिए थे लेकिन अब सरकार ने वापस ले लिए हैं. मिट्टी बाहर से महंगे दामों पर खरीद कर लानी पड़ती है. ऊपर से पुलिस वाले प्रतिबंधित मिट्टी लाने के आरोप में बंद तक कर देते हैं. जिसकी वजह से प्राचीन और पौराणिक परंपराएं खत्म होती जा रही है. कोई कुम्हार इस तरह के काम करना नहीं चाहता लेकिन मजबूरी और हालात ऐसे हैं कि दूसरे रोजगार ना होने की वजह से यह लोग अपने इन्हीं काम को अपनाए हुए हैं.

नई दिल्ली: देश की प्राचीन और पौराणिक परंपराओं पर चाइनीज बाजारों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है. हिंदुओं का प्रमुख त्योहार दिवाली आने वाला है और दिवाली की तैयारियां कर रहे कुम्हार हाथ पर हाथ रखे खाली बैठे हैं. कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज बाजारों ने पूरी तरह से इन लोगों के रोजगार पर असर डाला है और बाकी की कसर सरकार ने पूरी कर दी है. अब कुम्हारों का परिवार खाली बैठकर सरकार को कोस रहा है.

कारीगरों का कारोबार पड़ा है ठप

'चीनी सामानों ने ले ली जगह'
भारतवर्ष में देवी-देवताओं की पूजा के लिए मिट्टी के बर्तनों में पूजा करना शुभ माना जाता है. जैसे-जैसे समय बदलता गया, हालात बदलते गए. मिट्टी के बर्तनों की जगह चाइनीज सामानों ने ले ली. देवी-देवताओं की पूजा के लिए मिट्टी के दीये जलाये जाते हैं. बाजार से मिट्टी के दिए केवल पूजा अर्चना लिए ही लोग खरीदते हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार के परिवार से बात की. उनका कहना है कि दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से चलती है. मिट्टी के दीयों का कारोबार बिल्कुल ठप पड़ा है. चार पांच लोगों का परिवार मिलकर सुबह से शाम तक मात्र 150 रुपये से 200 रुपये ही कमा पाता है.

'मजबूरी में करना पड़ता है काम'
सरकार ने पहले कुम्हारों के लिए मिट्टी के भंडार दिए थे लेकिन अब सरकार ने वापस ले लिए हैं. मिट्टी बाहर से महंगे दामों पर खरीद कर लानी पड़ती है. ऊपर से पुलिस वाले प्रतिबंधित मिट्टी लाने के आरोप में बंद तक कर देते हैं. जिसकी वजह से प्राचीन और पौराणिक परंपराएं खत्म होती जा रही है. कोई कुम्हार इस तरह के काम करना नहीं चाहता लेकिन मजबूरी और हालात ऐसे हैं कि दूसरे रोजगार ना होने की वजह से यह लोग अपने इन्हीं काम को अपनाए हुए हैं.

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Location narela

बाईट- योगेंद्र कुमार प्रजापति व विमला ( कुम्हार )
बाईट- पन्नालाल कुम्हार ।

स्टोरी-- देश के प्राचीन और पौराणिक परंपराओं पर चाइनीस बाजारों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है । हिंदुओं का प्रमुख त्योहार दिवाली आने वाला है और दिवाली की तैयारियां कर रहे कुम्हार हाथ पर हाथ रखे खाली बैठे हैं । कुम्हारों का कहना है कि चाइनीस बाजार ने पूरी तरह से इन लोगों के रोजगार पर असर डाला है और बाकी की कसर सरकार ने पूरी कर दी । अब कुम्हारों का परिवार खाली बैठकर सरकार को कोस रहा है ।Body:भारतवर्ष में देवी-देवताओं की पूजा के लिए मिट्टी के बर्तनों पूजा करना शुभ माना जाता है । फिर चाहे घर किसी अमीर या गरीब का ही क्यों न हो । लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया, हालात बदलते गए, लोगों की अर्थव्यवस्था बदलती गई । मिट्टी के बर्तनों की जगह चाइनीस सामानों ने ले ली । देवी-देवताओं की पूजा के लिए मिट्टी के दिए जलाये जाते है । बाजार से मिट्टी के दिए केवल पूजा अर्चना लिए ही लोग खरीदते हैं ।

ईटीवी भारत की टीम ने मिट्टी के दीए बनाने वाले कुम्हार के परिवार से बात की गई उनका कहना है कि दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से चलती है । केवल इतना है कि आधा अधूरा पेट भर सो जाते हैं । बच्चों के पास को रोजगार नहीं है यदि उन्हें रोजगार मिल जाए तो हम इस काम को छोड़ दें । मिट्टी के इस काम में पूरा परिवार लगा रहता है, कोई चौक चलाता है, कोई मिट्टी तोड़ता है, कोई मिट्टी गूंदता है, कोई बर्तनों को आकार देता है, चार पांच लोगों का परिवार मिलकर सुबह से शाम तक मात्र डेढ़ सौ से ₹200 ही कमा पाता है । अब ये लोग खाली बैठकर सरकार को कोस रहे हैं इन लोगों के काम में सरकार और चाइनीस बाजार सबसे बड़े बाधक हैं । चाइनीस आइटम के सामने देसी आइटम महंगा होता है । जिसे लोग मात्र शगुन के लिए ही खरीदते हैं । लगता नहीं कि अब दोबारा से बाजार में वही पुरानी रौनक लौटेगी । जिन्होंने एक शिल्पकार को खाली बैठने पर मजबूर कर दिया ।

मिट्टी का काम करने वाले कुम्हारो का कहना है कि जीवन यापन करने के लिए ही मिट्टी के बर्तन बिक रहे हैं । अब ज दिवाली का त्योहार नजदीक है काम तो है लेकिन खरीददार नहीं है । दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से चल रही है ।सरकार ने पहले कुम्हारों के लिए मिट्टी के भंडार दिए हुए थे लेकिन सरकार ने वापस ले लिए । मिट्टी बाहर से महंगे दामों पर खरीद कर लानी पड़ती है । ऊपर से पुलिस वाले प्रतिबंधित मिट्टी लाने के आरोप में बंद तक कर देते हैं । जिसकी वजह से प्राचीन और पौराणिक परंपराएं खत्म होती जा रही है ।अब कोई कुम्हार इस तरह के काम करना नहीं चाहता लेकिन मजबूरी और हालात ऐसे हैं कि दूसरे रोजगार ना होने की वजह से यह लोग अपने इन्हीं काम को अपनाए हुए हैं ।


Conclusion:शिल्पकार मजबूरी में खाली बैठकर रो रहा है कि महंगा सामान कोई खरीदता नहीं सस्ता बाजार में मिलता नहीं । ऐसी स्थिति में वह करें तो क्या करें । सरकार को इस ओर इनकी स्थिति पर ध्यान देना चाहिए ।
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