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कोनेरू हंपी : कभी पिता को शतरंज में हराने का सपना देखने वाली ने जीत ली दुनिया

कोनेरू हंपी ने हाल ही में संपन्न हुई वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप का खिताब जीत कर भारत की पहली महिला शतरंज खिलाड़ी होने का गौरव हासिल किया है.

Koneru Humpy
Koneru Humpy
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Published : Jan 5, 2020, 1:46 PM IST

Updated : Jan 7, 2020, 3:17 PM IST

नई दिल्ली: शतरंज जैसे शातिरों के खेल में नन्ही सी एक लड़की पांच बरस की उम्र में ही सारी चालें और मोहरे समझने लगे, 12 साल की उम्र में इंटरनेशनल मास्टर और 15 की उम्र में ग्रैंड मास्टर टाइटल जीत ले तो 32 की उम्र में 64 काले सफेद खानों के इस खेल में उनका रैपिड वर्ल्ड टाइटल जीत लेना ज्यादा हैरान नहीं करता.

कोनेरू हंपी ने हाल ही में वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप जीतकर दुनिया के शतरंज के नक्शे पर एक बार फिर अपना नाम सुनहरे हरफों में लिख दिया. वो ये कारनामा अंजाम देने वाली देश की पहली महिला शतरंज खिलाड़ी हैं. देश के महानतम शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद पुरूष वर्ग में ये उपलब्धि अपने नाम कर चुके हैं.

देखिए वीडियो

31 मार्च 1987 को आंध्र प्रदेश के गुडिवाडा में रहने वाले अशोक कोनेरू के यहां एक बेटी का जन्म हुआ. पिता अपनी बेटी को अजेय देखना चाहते थे लिहाजा उन्होंने उसका नाम हंपी रखा, जिसका मतलब होता है 'विजयी' पिता शतरंज के खेल के माहिर थे, लिहाजा हंपी भी शतरंज की चालों में दिलचस्पी लेने लगी. पांच बरस की होते होते शतरंज में उसकी रूचि को देखते हुए उनके प्रोफेसर पिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी और बेटी को इस खेल में पारंगत करने का जिम्मा अपने सिर ले लिया.

पिता से शतरंज सीखने के दौरान हंपी को सबसे बड़ी उपलब्धि यही लगती थी कि एक दिन वो अपने पिता को हराएगी, लेकिन उसके मोहरों की 'चालें' इतनी सटीक थीं कि वो देखते ही देखते विश्व शतरंज के आसमान का चमकता सितारा बन गई.

हंपी ने पिछले दिनों रूस में चीन की 22 साल की लेई तिंगजी को हराकर फीडे वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप जीती. हंपी ने 12 राउंड के रैपिड इवेंट में 7 राउंड जीते. उन्होंने चीन की खिलाड़ी को प्लेऑफ में हराकर गोल्ड जीता. यहां ये जान लेना दिलचस्प होगा कि हंपी ने 13 साल की उम्र में शतरंज की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में अंडर-14 में लड़कों के वर्ग में खिताबी विजय हासिल की थी.

कोनेरू हंपी
कोनेरू हंपी

वर्तमान में ओएनजीसी में चीफ मैनेजर हंपी की सफलताओं की सूची बहुत लंबी है, लेकिन हाल ही में उन्होंने मातृत्व सुख हासिल करके परिवार के मोर्चे पर भी एक बड़ी सफलता हासिल की है. वो करीब दो बरस तक शतरंज की दुनिया से दूर रहीं और फिर धमाकेदार ढंग से वापसी की.

हंपी की उपलब्धियों की फेहरिस्त की बात करें तो 1997 में अंडर-10 चैंपियन, 1998 में गर्ल्स अंडर-10 और अंडर-12 चैंपियन. 1999 में एशिया की सबसे युवा महिला इंटरनेशनल मास्टर. 2000 में एशियन गर्ल्स अंडर-20 चैंपियन. 2001 में गर्ल्स अंडर-14 चैंपियन. 2001 में गर्ल्स अंडर-20 चैंपियन. 2000 और 2002 में ब्रिटिश लेडीज टाइटल. 2001 में एशिया की सबसे युवा महिला ग्रैंड मास्टर. 2002 में 15 साल 1 महीने, 27 दिन की उम्र में सबसे युवा ग्रैंड मास्टर. 2003 में अर्जुन अवॉर्ड, 2007 में पद्मश्री और अब वर्ल्ड रैपिड चैंपियन. इससे ज्यादा कोई क्या मांगे.

नई दिल्ली: शतरंज जैसे शातिरों के खेल में नन्ही सी एक लड़की पांच बरस की उम्र में ही सारी चालें और मोहरे समझने लगे, 12 साल की उम्र में इंटरनेशनल मास्टर और 15 की उम्र में ग्रैंड मास्टर टाइटल जीत ले तो 32 की उम्र में 64 काले सफेद खानों के इस खेल में उनका रैपिड वर्ल्ड टाइटल जीत लेना ज्यादा हैरान नहीं करता.

कोनेरू हंपी ने हाल ही में वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप जीतकर दुनिया के शतरंज के नक्शे पर एक बार फिर अपना नाम सुनहरे हरफों में लिख दिया. वो ये कारनामा अंजाम देने वाली देश की पहली महिला शतरंज खिलाड़ी हैं. देश के महानतम शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद पुरूष वर्ग में ये उपलब्धि अपने नाम कर चुके हैं.

देखिए वीडियो

31 मार्च 1987 को आंध्र प्रदेश के गुडिवाडा में रहने वाले अशोक कोनेरू के यहां एक बेटी का जन्म हुआ. पिता अपनी बेटी को अजेय देखना चाहते थे लिहाजा उन्होंने उसका नाम हंपी रखा, जिसका मतलब होता है 'विजयी' पिता शतरंज के खेल के माहिर थे, लिहाजा हंपी भी शतरंज की चालों में दिलचस्पी लेने लगी. पांच बरस की होते होते शतरंज में उसकी रूचि को देखते हुए उनके प्रोफेसर पिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी और बेटी को इस खेल में पारंगत करने का जिम्मा अपने सिर ले लिया.

पिता से शतरंज सीखने के दौरान हंपी को सबसे बड़ी उपलब्धि यही लगती थी कि एक दिन वो अपने पिता को हराएगी, लेकिन उसके मोहरों की 'चालें' इतनी सटीक थीं कि वो देखते ही देखते विश्व शतरंज के आसमान का चमकता सितारा बन गई.

हंपी ने पिछले दिनों रूस में चीन की 22 साल की लेई तिंगजी को हराकर फीडे वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप जीती. हंपी ने 12 राउंड के रैपिड इवेंट में 7 राउंड जीते. उन्होंने चीन की खिलाड़ी को प्लेऑफ में हराकर गोल्ड जीता. यहां ये जान लेना दिलचस्प होगा कि हंपी ने 13 साल की उम्र में शतरंज की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में अंडर-14 में लड़कों के वर्ग में खिताबी विजय हासिल की थी.

कोनेरू हंपी
कोनेरू हंपी

वर्तमान में ओएनजीसी में चीफ मैनेजर हंपी की सफलताओं की सूची बहुत लंबी है, लेकिन हाल ही में उन्होंने मातृत्व सुख हासिल करके परिवार के मोर्चे पर भी एक बड़ी सफलता हासिल की है. वो करीब दो बरस तक शतरंज की दुनिया से दूर रहीं और फिर धमाकेदार ढंग से वापसी की.

हंपी की उपलब्धियों की फेहरिस्त की बात करें तो 1997 में अंडर-10 चैंपियन, 1998 में गर्ल्स अंडर-10 और अंडर-12 चैंपियन. 1999 में एशिया की सबसे युवा महिला इंटरनेशनल मास्टर. 2000 में एशियन गर्ल्स अंडर-20 चैंपियन. 2001 में गर्ल्स अंडर-14 चैंपियन. 2001 में गर्ल्स अंडर-20 चैंपियन. 2000 और 2002 में ब्रिटिश लेडीज टाइटल. 2001 में एशिया की सबसे युवा महिला ग्रैंड मास्टर. 2002 में 15 साल 1 महीने, 27 दिन की उम्र में सबसे युवा ग्रैंड मास्टर. 2003 में अर्जुन अवॉर्ड, 2007 में पद्मश्री और अब वर्ल्ड रैपिड चैंपियन. इससे ज्यादा कोई क्या मांगे.

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कोनेरू हंपी : कभी पिता को शतरंज में हराने का सपना देखने वाली ने जीत ली दुनिया



 



कोनेरू हंपी ने हाल ही में संपन्न हुई वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप का खिताब जीत कर भारत की पहली महिला शतरंज खिलाड़ी होने का गौरव हासिल किया है.





नई दिल्ली: शतरंज जैसे शातिरों के खेल में नन्ही सी एक लड़की पांच बरस की उम्र में ही सारी चालें और मोहरे समझने लगे, 12 साल की उम्र में इंटरनेशनल मास्टर और 15 की उम्र में ग्रैंड मास्टर टाइटल जीत ले तो 32 की उम्र में 64 काले सफेद खानों के इस खेल में उनका रैपिड वर्ल्ड टाइटल जीत लेना ज्यादा हैरान नहीं करता.



कोनेरू हंपी ने हाल ही में वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप जीतकर दुनिया के शतरंज के नक्शे पर एक बार फिर अपना नाम सुनहरे हरफों में लिख दिया. वो ये कारनामा अंजाम देने वाली देश की पहली महिला शतरंज खिलाड़ी हैं. देश के महानतम शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद पुरूष वर्ग में ये उपलब्धि अपने नाम कर चुके हैं.



31 मार्च 1987 को आंध्र प्रदेश के गुडिवाडा में रहने वाले अशोक कोनेरू के यहां एक बेटी का जन्म हुआ. पिता अपनी बेटी को अजेय देखना चाहते थे लिहाजा उन्होंने उसका नाम हंपी रखा, जिसका मतलब होता है 'विजयी' पिता शतरंज के खेल के माहिर थे, लिहाजा हंपी भी शतरंज की चालों में दिलचस्पी लेने लगी. पांच बरस की होते होते शतरंज में उसकी रूचि को देखते हुए उनके प्रोफेसर पिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी और बेटी को इस खेल में पारंगत करने का जिम्मा अपने सिर ले लिया.



पिता से शतरंज सीखने के दौरान हंपी को सबसे बड़ी उपलब्धि यही लगती थी कि एक दिन वो अपने पिता को हराएगी, लेकिन उसके मोहरों की 'चालें' इतनी सटीक थीं कि वो देखते ही देखते विश्व शतरंज के आसमान का चमकता सितारा बन गई.



हंपी ने पिछले दिनों रूस में चीन की 22 साल की लेई तिंगजी को हराकर फीडे वर्ल्ड रैपिड चैंपियनशिप जीती. हंपी ने 12 राउंड के रैपिड इवेंट में 7 राउंड जीते. उन्होंने चीन की खिलाड़ी को प्लेऑफ में हराकर गोल्ड जीता. यहां ये जान लेना दिलचस्प होगा कि हंपी ने 13 साल की उम्र में शतरंज की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में अंडर-14 में लड़कों के वर्ग में खिताबी विजय हासिल की थी.



वर्तमान में ओएनजीसी में चीफ मैनेजर हंपी की सफलताओं की सूची बहुत लंबी है, लेकिन हाल ही में उन्होंने मातृत्व सुख हासिल करके परिवार के मोर्चे पर भी एक बड़ी सफलता हासिल की है. वो करीब दो बरस तक शतरंज की दुनिया से दूर रहीं और फिर धमाकेदार ढंग से वापसी की.



हंपी की उपलब्धियों की फेहरिस्त की बात करें तो 1997 में अंडर-10 चैंपियन, 1998 में गर्ल्स अंडर-10 और अंडर-12 चैंपियन. 1999 में एशिया की सबसे युवा महिला इंटरनेशनल मास्टर. 2000 में एशियन गर्ल्स अंडर-20 चैंपियन. 2001 में गर्ल्स अंडर-14 चैंपियन. 2001 में गर्ल्स अंडर-20 चैंपियन. 2000 और 2002 में ब्रिटिश लेडीज टाइटल. 2001 में एशिया की सबसे युवा महिला ग्रैंड मास्टर. 2002 में 15 साल 1 महीने, 27 दिन की उम्र में सबसे युवा ग्रैंड मास्टर. 2003 में अर्जुन अवॉर्ड, 2007 में पद्मश्री और अब वर्ल्ड रैपिड चैंपियन. इससे ज्यादा कोई क्या मांगे.


Conclusion:
Last Updated : Jan 7, 2020, 3:17 PM IST
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