100 साल में कैसा रहा भारत का ओलंपिक सफर - ग्रीष्मकालीन ओलंपिक
टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत को बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी और निशानेबाजी में मेडल की उम्मीदें होंगी.
नई दिल्ली: जापान की राजधानी टोक्यो में इस साल जुलाई-अगस्त में 29वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन होना है. साल 1896 में ग्रीस में आधुनिक ओलंपिक खेलों का आगाज हुआ था. भारत ने 1920 में पहली बार आधिकारिक तौर पर ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था. इस लिहाज से भारत इस साल अपने ओलंपिक अभियान के 100 साल पूरे कर रहा है. 1900 के पेरिस ओलंपिक में नॉर्मन पिचर्ड ने ब्रिटिश शासन वाले भारत के लिए पुरुषों की 200 मीटर तथा 200 मीटर बाधा दौड़ में सिल्वर मेडल जीता था.
पिचर्ड ब्रिटिश शासन के नुमाइंदे थे. इसी कारण ओलंपिक इतिहासकार पिचर्ड के प्रदर्शन को भारत के मेडलों में शामिल नहीं करते. हालांकि 1894 में गठित अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) पिचर्ड द्वारा जीते गए मेडलों को भारत की झोली में मानता है. 1900 से 2016 तक भारत ने ओलंपिक में अब तक कुल 28 मेडल जीते हैं. अगर इनमें से पिचर्ड के मेडलों को निकाल दिया जाए तो इनकी कुल संख्या 26 हो जाएगी. इसमें 9 गोल्ड (हॉकी में 8 और एक निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा) के अलावा पांच सिल्वर और 12 ब्रॉन्ज शामिल हैं.
मेडल टैली
खेलों की बात की जाए तो भारत ने हॉकी में कुल 11 मेडल जीते हैं जबकि निशानेबाजी में चार मेडल जीते हैं. इसके अलावा भारत ने कुश्ती में पांच, बैडमिंटन और मुक्केबाजी में दो-दो तथा टेनिस और भारोत्तोलन में एक-एक मेडल जीता है.
मेडल का सफर
1900 ओलंपिक में सिर्फ पिचर्ड ने 'भारत' का प्रतिनिधित्व किया था. 1920 ओलंपिक में भारत ने 6 खिलाड़ियों का दल भेजा था जबकि 1924 में ये संख्या 15 हो गई.इसी तरह 1928 में 21, 1932 में 30, 1936 में 27, 1948 में 79, 1952 में 64, 1956 में 59, 1960 में 45, 1964 में 53, 1968 में 25, 1972 में 41, 1976 में 20, 1980 में 76, 1984 में 48, 1988 में 46, 1992 में 53, 1996 में 49, 2000 में 65, 2004 में 73, 2008 में 56, 2012 में 83 और 2016 में 118 खिलाड़ियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था.
पहला ओलंपिक
सिलसिलेवार तरीके से बात करें तो पेरिस के बाद भारत सेंट लुइस (1904), लंदन (1908) और स्टॉकहोम (1912) ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले सका. इसके बाद सर दोराबजी टाटा और बॉम्बे के गवर्नर जॉर्ज लॉयड ने भारत को आईओसी की सदस्यता दिलाई और फिर भारत ने 1920 के एंटवर्प (बेल्जियम) ओलंपिक में पहली बार अपनी आधिकारिक टीम भेजी. इस टीम में पुर्मा बनर्जी (100 मीटर, 400 मीटर), फादेप्पा चांगुले (10 हजार मीटर और मैराथन) तथा सदाशिव दातार (मैराथन) के अलावा कुमार नावाले (कुश्ती) और रणधीर सिंदेश (कुश्ती) ने भारत का प्रतिनिधित्व किया.
अच्छी शुरुआत
इस साल भारत को कोई मेडल नहीं मिला. पुर्मा को 100 मीटर में पांचवां, 400 मीटर में चौथा स्थान मिला जबकि सदाशिव और फेदप्पा अपने इवेंट्स में क्वालीफाई नहीं कर सके. कुश्ती में कुमार को पहले राउंड में हार मिली जबकि रणधीर ब्रॉन्ज मेडल के मुकाबले में हारे. ये अच्छी शुरुआत थी लेकिन इसके बाद भारतीय ओलंपिक अभियान अपने चरम को प्राप्त नहीं कर सका और अगले 96 सालों में सिर्फ 26 मेडल अपनी झोली में डाल सका. 1924 में पेरिस में एक बार फिर ओलंपिक का आयोजन हुआ और इस साल भी भारत की झोली खाली रही.
पहला मेडल
कमबैक
टोक्यो (1964) में भारत ने एक बार फिर वापसी की और अपने खिताब की रक्षा करते हुए गोल्ड जीता. हालांकि 1968 के मैक्सिको सिटी और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारत को सिर्फ ब्रॉन्ज मेडल मिला. 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में भारत की झोली खाली रही लेकिन 1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने फिर से गोल्ड पर निशाना साधा।. यहां से भारतीय हॉकी का गोल्ड काल खत्म हो गया. इसके बाद भारत को हॉकी में अब तक कोई मेडल नहीं मिला है.
नए शुरुआत
1984 के लॉस एंजेलिस, 1988 के सियोल ओलंपिक और 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भारत ने कोई मेडल नहीं जीता जबकि 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ने भारत के लिए टेनिस में ब्रॉन्ज मेडल जीता. ये नए युग की शुरुआत थी. इसके बाद सिडनी में 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में ब्रॉन्ज जीतकर नया अध्याय लिखा. भारत ने अब तक हॉकी के अलावा कुश्ती (जाधव), टेनिस (पेस) और भारोत्तोलन (मल्लेश्वरी) में व्यक्तिगत मेडल जीते थे. ये सभी ब्रॉन्ज थे, लेकिन 2004 के एथेंस ओलंपिक में कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर ने निशानेबाजी में सिल्वर जीतकर नए युग की शुरुआत की.
पहला गोल्ड
100 साल का जश्न
जाने 100 साल के ओलंपिक सफर में भारत ने क्या कुछ हासिल किया
टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत को बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी और निशानेबाजी में मेडल की उम्मीदें होंगी.
नई दिल्ली: जापान की राजधानी टोक्यो में इस साल जुलाई-अगस्त में 29वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन होना है. साल 1896 में ग्रीस में आधुनिक ओलंपिक खेलों का आगाज हुआ था. भारत ने 1920 में पहली बार आधिकारिक तौर पर ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था. इस लिहाज से भारत इस साल अपने ओलंपिक अभियान के 100 साल पूरे कर रहा है. 1900 के पेरिस ओलंपिक में नॉर्मन पिचर्ड ने ब्रिटिश शासन वाले भारत के लिए पुरुषों की 200 मीटर तथा 200 मीटर बाधा दौड़ में सिल्वर मेडल जीता था.
पिचर्ड ब्रिटिश शासन के नुमाइंदे थे. इसी कारण ओलंपिक इतिहासकार पिचर्ड के प्रदर्शन को भारत के मेडलों में शामिल नहीं करते. हालांकि 1894 में गठित अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) पिचर्ड द्वारा जीते गए मेडलों को भारत की झोली में मानता है. 1900 से 2016 तक भारत ने ओलंपिक में अब तक कुल 28 मेडल जीते हैं. अगर इनमें से पिचर्ड के मेडलों को निकाल दिया जाए तो इनकी कुल संख्या 26 हो जाएगी. इसमें 9 गोल्ड (हॉकी में 8 और एक निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा) के अलावा पांच सिल्वर और 12 ब्रॉन्ज शामिल हैं.
मेडल टैली
खेलों की बात की जाए तो भारत ने हॉकी में कुल 11 मेडल जीते हैं जबकि निशानेबाजी में चार मेडल जीते हैं. इसके अलावा भारत ने कुश्ती में पांच, बैडमिंटन और मुक्केबाजी में दो-दो तथा टेनिस और भारोत्तोलन में एक-एक मेडल जीता है.
मेडल का सफर
1900 ओलंपिक में सिर्फ पिचर्ड ने 'भारत' का प्रतिनिधित्व किया था. 1920 ओलंपिक में भारत ने 6 खिलाड़ियों का दल भेजा था जबकि 1924 में ये संख्या 15 हो गई.इसी तरह 1928 में 21, 1932 में 30, 1936 में 27, 1948 में 79, 1952 में 64, 1956 में 59, 1960 में 45, 1964 में 53, 1968 में 25, 1972 में 41, 1976 में 20, 1980 में 76, 1984 में 48, 1988 में 46, 1992 में 53, 1996 में 49, 2000 में 65, 2004 में 73, 2008 में 56, 2012 में 83 और 2016 में 118 खिलाड़ियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था.
1920 एंटवर्प ओलंपिक
सिलसिलेवार तरीके से बात करें तो पेरिस के बाद भारत सेंट लुइस (1904), लंदन (1908) और स्टॉकहोम (1912) ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले सका. इसके बाद सर दोराबजी टाटा और बॉम्बे के गवर्नर जॉर्ज लॉयड ने भारत को आईओसी की सदस्यता दिलाई और फिर भारत ने 1920 के एंटवर्प (बेल्जियम) ओलंपिक में पहली बार अपनी आधिकारिक टीम भेजी. इस टीम में पुर्मा बनर्जी (100 मीटर, 400 मीटर), फादेप्पा चांगुले (10 हजार मीटर और मैराथन) तथा सदाशिव दातार (मैराथन) के अलावा कुमार नावाले (कुश्ती) और रणधीर सिंदेश (कुश्ती) ने भारत का प्रतिनिधित्व किया.
अच्छी शुरुआत
इस साल भारत को कोई मेडल नहीं मिला. पुर्मा को 100 मीटर में पांचवां, 400 मीटर में चौथा स्थान मिला जबकि सदाशिव और फेदप्पा अपने इवेंट्स में क्वालीफाई नहीं कर सके. कुश्ती में कुमार को पहले राउंड में हार मिली जबकि रणधीर ब्रॉन्ज मेडल के मुकाबले में हारे. ये अच्छी शुरुआत थी लेकिन इसके बाद भारतीय ओलंपिक अभियान अपने चरम को प्राप्त नहीं कर सका और अगले 96 सालों में सिर्फ 26 मेडल अपनी झोली में डाल सका. 1924 में पेरिस में एक बार फिर ओलंपिक का आयोजन हुआ और इस साल भी भारत की झोली खाली रही.
1928 में पहला मेडल
भारत को अपना पहला मेडल एम्सटर्डम ओलंपिक (1928) में मिला और वो भी सीधे गोल्ड. हॉकी टीम ने भारत को मेडल दिलाया. इसके बाद भारतीय हॉकी टीम ने लॉस एंजेलिस (1932), बर्लिन (1936), लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) ओलंपिक खेलों में लगातार गोल्ड मेडल जीते. 1952 ओलंपिक भारत के लिए खास है क्योंकि इस साल कासाबा दादासाहेब जाधव ने भारत के लिए पहला व्यक्तिगत मेडल जीता. जाधव ने कुश्ती के फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग में ब्रॉन्ज जीता था. भारतीय हॉकी टीम हालांकि 1960 के रोम ओलंपिक में अपने खिताब की रक्षा नहीं कर पाई और फाइनल में पाकिस्तान से 0-1 से हारकर सिल्वर से संतोष करने पर मजबूर हुई.
हॉकी में कमबैक
टोक्यो (1964) में भारत ने एक बार फिर वापसी की और अपने खिताब की रक्षा करते हुए गोल्ड जीता. हालांकि 1968 के मैक्सिको सिटी और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारत को सिर्फ ब्रॉन्ज मेडल मिला. 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में भारत की झोली खाली रही लेकिन 1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने फिर से गोल्ड पर निशाना साधा।. यहां से भारतीय हॉकी का गोल्ड काल खत्म हो गया. इसके बाद भारत को हॉकी में अब तक कोई मेडल नहीं मिला है.
नए युग की शुरुआत
1984 के लॉस एंजेलिस, 1988 के सियोल ओलंपिक और 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भारत ने कोई मेडल नहीं जीता जबकि 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ने भारत के लिए टेनिस में ब्रॉन्ज मेडल जीता. ये नए युग की शुरुआत थी. इसके बाद सिडनी में 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में ब्रॉन्ज जीतकर नया अध्याय लिखा. भारत ने अब तक हॉकी के अलावा कुश्ती (जाधव), टेनिस (पेस) और भारोत्तोलन (मल्लेश्वरी) में व्यक्तिगत मेडल जीते थे. ये सभी ब्रॉन्ज थे, लेकिन 2004 के एथेंस ओलंपिक में कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर ने निशानेबाजी में सिल्वर जीतकर नए युग की शुरुआत की.
पहला गोल्ड
बीजिंग ओलंपिक भारत के लिए सबसे सफल रहा क्योंकि इसमें अभिनव बिंद्रा ने भारत के लिए पहला और अब तक का एकमात्र व्यक्तिगत गोल्ड जीता. बिंद्रा ने ये मेडल निशानेबाजी में हासिल किया. इसके अलावा सुशील कुमार ने कुश्ती और विजेंदर सिंह ने मुक्केबाजी में ब्रॉन्ज जीते. मुक्केबाजी में भारत का खाता पहली बार खुला. लंदन में भारत ने अपने किसी एक ओलंपिक में सबसे अधिक मेडल जीते. भारत ने इस साल दो सिल्वर (कुश्ती में सुशील और निशानेबाजी में विजय कुमार) और चार ब्रॉन्ज (मुक्केबाजी में एमसी मैरीकोम, बैडमिंटन में सायना नेहवाल, कुश्ती में योगेश्वर दत्त और निशानेबाजी में गगन नारंग) जीते.
100 साल का जश्न
रियो ओलंपिक (2016) में भारत ने एक सिल्वर (बैडमिंटन में पीवी सिंधु) और एक ब्रॉन्ज (कुश्ती में साक्षी मलिक) जीता. अब भारतीय खिलाड़ी 100वें साल के जश्न को शानदार तरीके से मनाना चाहेंगे. भारत की 100 से अधिक खिलाड़ियों का दल टोक्यो भेजने की तैयारी है. इनमें से भारत को बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी और निशानेबाजी में मेडल मिल सकते हैं.
Conclusion: