मुंबई: खेल के शीर्ष सितारों ने अक्सर बायो-बबल में लंबे समय तक रहने के बारे में आशंका व्यक्त की है और भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी संदेश झिंगन भी इस बात से सहमत हैं, लेकिन उनका मानना है कि ये शून्य (डिग्री सेल्सियस) से नीचे की तापमान में तैनात सैनिकों के जीवन से 'अधिक चुनौतीपूर्ण नहीं' हैं.
कोविड-19 के वैश्विक प्रसार के कारण दुनियाभर में खेल गतिविधियां रुक गयी थी लेकिन तीन महीने के बाद बायो-बबल में खेल आयोजन फिर से शुरू हुए.
झिंगन ने पीटीआई-भाषा को दिए इंटरव्यू में कहा, "ईमानदारी से कहूं तो ये (बायो-बबल) उतना डरावना नहीं है, लेकिन ये कठिन है क्योंकि आप अपने कमरे में बंद रहते हैं. पिछले दो साल में ये अब मेरा चौथा या पांचवां बबल है. मैं क्लब और राष्ट्रीय टीम के लिए बबल में रहा हूं."
28 साल के इस डिफेंडर खिलाड़ी ने कहा, "ये अब भी उन लोगों की तरह चुनौतीपूर्ण नहीं है जो सेना में हैं, जो लोग महीनों और वर्षों तक शून्य से कम तापमान में रहते है. दुनिया में ऐसी और भी कई चीज है जो इससे अधिक चुनौतीपूर्ण है. बायो-बबल भी चुनौतीपूर्ण है और मैं इसका सामना कर रहा हूं लेकिन मैं सकारात्मक पक्ष देखता हूं."
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झिंगन क्रोएशिया से लौटने के बाद इंडियन सुपर लीग में एटीके मोहन बागान के लिए खेल रहे हैं. क्रोएशिया में चोट के कारण उन्हें कोई प्रतिस्पर्धी मैच खेलने का मौका नहीं मिला.
चंडीगढ़ के इस खिलाड़ी ने कहा, "ये इस पेशे का हिस्सा है, ये मुश्किल है. आपको अपने माता-पिता की कमी महसूस होती है, आपको अपने परिवार की याद आती है. आप समय यहां बीत रहा है और घर पर माता-पिता बूढ़े हो रहे हैं, निश्चित रूप से आपको ऐसा लगता है कि 'काश मैं घर पर होता'."
उन्होंने कहा, "लेकिन एक खिलाड़ी के तौर पर हम यह खुद चुनते हैं. पेशेवर बनने से पहले हम जानते थे कि अगर हम इस रास्ते पर चलते हैं, तो निजी जिंदगी हमेशा आखिरी चीज होगी (और) मुख्य चीज सिर्फ पेशा है."
झिंगन ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि ISL या अंतरराष्ट्रीय मैचों का आयोजन हो रहा है. उन्होंने कहा, "अभी जो हो रहा है, वो इतना अप्रत्याशित है कि किसी ने इसकी उम्मीद नहीं की थी. इसलिए आप किसी को दोष नहीं दे सकते, हमें बस इसके साथ चलना है, इसे स्वीकार करना है क्योंकि अगर लीग या अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं होती तो ये और अधिक निराशाजनक होता."