आसनसोल : एक व्यक्ति ने सपना देखा कि उसका बेटा विश्व विख्यात निशानेबाज बनेगा. और इसलिए उन्होंने अपने बेटे का नाम ओलंपिक स्वर्ण विजेता निशानेबाज अभिनव बिंद्रा के नाम पर अभिनव रखा. संयोग से आसनसोल के अभिनव का जन्म 2008 में हुआ था जब भारत ने बीजिंग में अपना पहला व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता था. महज 16 साल की उम्र में आसनसोल के अभिनव ने हाल ही में जर्मनी में आईएसएसएफ जूनियर विश्व कप में मिश्रित युगल 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण जीतकर सभी को चौंका दिया. उन्हें मध्य प्रदेश की गौतमी भनोट के साथ जोड़ा गया था. दूसरी ओर, अभिनव शॉ ने 10 मीटर एकल में रजत पदक भी जीता. अभिनव के पिता रूपेश साव होम ट्यूटर हैं. उनका सपना भी एक बड़ा शूटर बनने का था, लेकिन मध्यमवर्गीय परिवारों की आर्थिक तंगी के कारण वे इतने महंगे खेल का खर्च नहीं उठा सकते थे.
रूपेश शॉ की पत्नी ने 2008 में अभिनव को जन्म दिया - इसी साल बीजिंग ओलंपिक का आयोजन किया गया था. तो, शूटर रूपेश ने अपने बेटे का नाम अभिनव रख दिया, यह सोचकर कि उसका बेटा बड़ा होकर निशानेबाजी करेगा. बड़ा होने पर रूपेश ने अभिनव को आसनसोल राइफल क्लब में भर्ती कराया. अभिनव ने शुरुआत से ही क्षेत्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया. अभिनव ने राष्ट्रीय स्तर पर भी पदक जीते. अभिनव ने पिछले साल विश्व जूनियर निशानेबाजी चैंपियनशिप में जर्मनी में रजत पदक जीता था. अभिनव इवेंट में सबसे कम उम्र के निशानेबाज थे.
16 साल की उम्र में अभिनव अब आसनसोल के एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ता है. अभिनव बिंद्रा के हमनाम के रूप में, वह एक दिन ओलंपिक में स्वर्ण जीतना चाहता है. जर्मनी में आईएसएसएफ जूनियर विश्व कप में गोल्ड मेडल जीतने के बाद अभिनव गुरुवार को आसनसोल लौट आएंगे. आसनसोल उनके स्वागत के लिए तैयार है. लेकिन सफलता के बावजूद अभिनव के पिता रूपेश भी चिंतित हैं. उनकी मुख्य चिंता यह है कि वे भविष्य में होम ट्यूटर होने के नाते इस महंगे खेल की लागत का प्रबंधन कैसे करेंगे. इसलिए, रूपेश सरकारी सहायता की याचना कर रहे हैं ताकि अभिनव के रास्ते को सुगम बनाया जा सके और वह शूटिंग में अपना करियर बना सके.