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'मैं चाहता था कि विपक्षी टीम के खिलाड़ी मुझसे डरे'

विराट कोहली ने ये बताया की कैसे 2012 में हुए ऑस्ट्रेलियाई दौरे के बाद उन्होंने अपने खेलने की शैली में बदलाव लाया और उनमें सुधार आया.

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Published : Sep 8, 2019, 1:00 PM IST

Updated : Sep 29, 2019, 9:09 PM IST

Virat Kohli

नई दिल्ली: भारतीय कप्तान विराट कोहली ने कहा कि विपक्षी टीम की निगाहों में उनके प्रति भय और सम्मान के अभाव से वो अपने काम करने के तरीके को बदलने के लिए बाधित हुए और एक 'प्रभावी खिलाड़ी' बनने में सफल हुए.

कोहली ने बताया कि कैसे उन्होंने 2012 में ऑस्ट्रेलियाई दौरे से वापसी के बाद अपनी फिटनेस पर काम किया जिससे उनके खेल में सुधार हुआ.

विराट कोहली
विराट कोहली

कोहली ने इसमें कहा,"ऐसा भी समय था जब मैं बल्लेबाजी के लिए उतरता था तो विपक्षी खेमे में मेरे प्रति कोई भय या सम्मान नहीं होता था."

उन्होंने कहा,"मैं मैदान में ऐसे नहीं जाना चाहता कि विपक्षी टीम सोचे कि ये खिलाड़ी इतना खतरनाक नहीं है. मैं सिर्फ कोई अन्य खिलाड़ी नहीं बनना चाहता था क्योंकि मैं प्रभाव डालना चाहता था."

कोहली ने कहा,"मैं चाहता था कि जब मैं चलूं तो टीमों को सोचना चाहिए कि हमें इस खिलाड़ी को आउट करना चाहिए वर्ना हम मैच गंवा देंगे."

उन्होंने साथ ही बताया कि फिटनेस कैसे उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई और कैसे इसने ब्रिटेन में विश्व कप के दौरान उन्हें तेजी से उबरने में मदद की.

उन्होंने कहा,"विश्व कप के दौरान प्रत्येक मैच में मेरा ऊर्जा का स्तर 120 प्रतिशत रहता था. मैं इतनी तेजी से उबरा कि प्रत्येक मैच में मैंने औसतन 15 किमी की दूरी तय की. मैं वापस आता और उबरने का उपचार करता और फिर दूसरे शहर में जाता और जल्द ही फिर से ट्रेनिंग के लिए तैयार रहता."

कोहली ने कहा,"इतनी ऊर्जा होती थी कि मैं जिम सत्र में हिस्सा ले सका और 35 दिन के थोड़े से समय में 10 मैच खेल सका. मैंने प्रत्येक मैच इसी ऊर्जा से खेला, मुझे कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ था. मेरे शरीर में कोई खिंचाव नहीं था."

भारतीय कप्तान विराट कोहली
भारतीय कप्तान विराट कोहली

अपने आदर्श सचिन तेंदुलकर के बतौर क्रिकेटर कौशल को वो सर्वश्रेष्ठ आंकते हैं जबकि खुद को वो कड़ी मेहनत का नतीजा मानते हैं.

उन्होंने कहा,"मैं जानता हूं कि जब मैं आया था तो मैं इतना कौशल रखने वाला खिलाड़ी नहीं था लेकिन मेरी एक चीज निरंतर रही कि मैं खुद पर काम करता रहा. अगर भारतीय टीम को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनना है तो उसे एक निश्चित तरीके से खेलने की जरूरत थी."

कोहली ने कहा,"जब हम 2012 में ऑस्ट्रेलिया से वापस आए थे तो मैंने हममें और ऑस्ट्रेलिया के बीच काफी अंतर देखा. मैंने महसूस किया कि अगर हम अपने खेलने, ट्रेनिंग करने और खाने के तरीके में बदलाव नहीं करते हैं तो हम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीमों से नहीं भिड़ सकते."

उन्होंने कहा,"अगर आप सर्वश्रेष्ठ नहीं होना चाहते तो प्रतिस्पर्धा करने का कोई मतलब नहीं. मैं खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहता था और फिर खेल के प्रति रवैये में भी बदलाव हुआ."

नई दिल्ली: भारतीय कप्तान विराट कोहली ने कहा कि विपक्षी टीम की निगाहों में उनके प्रति भय और सम्मान के अभाव से वो अपने काम करने के तरीके को बदलने के लिए बाधित हुए और एक 'प्रभावी खिलाड़ी' बनने में सफल हुए.

कोहली ने बताया कि कैसे उन्होंने 2012 में ऑस्ट्रेलियाई दौरे से वापसी के बाद अपनी फिटनेस पर काम किया जिससे उनके खेल में सुधार हुआ.

विराट कोहली
विराट कोहली

कोहली ने इसमें कहा,"ऐसा भी समय था जब मैं बल्लेबाजी के लिए उतरता था तो विपक्षी खेमे में मेरे प्रति कोई भय या सम्मान नहीं होता था."

उन्होंने कहा,"मैं मैदान में ऐसे नहीं जाना चाहता कि विपक्षी टीम सोचे कि ये खिलाड़ी इतना खतरनाक नहीं है. मैं सिर्फ कोई अन्य खिलाड़ी नहीं बनना चाहता था क्योंकि मैं प्रभाव डालना चाहता था."

कोहली ने कहा,"मैं चाहता था कि जब मैं चलूं तो टीमों को सोचना चाहिए कि हमें इस खिलाड़ी को आउट करना चाहिए वर्ना हम मैच गंवा देंगे."

उन्होंने साथ ही बताया कि फिटनेस कैसे उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई और कैसे इसने ब्रिटेन में विश्व कप के दौरान उन्हें तेजी से उबरने में मदद की.

उन्होंने कहा,"विश्व कप के दौरान प्रत्येक मैच में मेरा ऊर्जा का स्तर 120 प्रतिशत रहता था. मैं इतनी तेजी से उबरा कि प्रत्येक मैच में मैंने औसतन 15 किमी की दूरी तय की. मैं वापस आता और उबरने का उपचार करता और फिर दूसरे शहर में जाता और जल्द ही फिर से ट्रेनिंग के लिए तैयार रहता."

कोहली ने कहा,"इतनी ऊर्जा होती थी कि मैं जिम सत्र में हिस्सा ले सका और 35 दिन के थोड़े से समय में 10 मैच खेल सका. मैंने प्रत्येक मैच इसी ऊर्जा से खेला, मुझे कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ था. मेरे शरीर में कोई खिंचाव नहीं था."

भारतीय कप्तान विराट कोहली
भारतीय कप्तान विराट कोहली

अपने आदर्श सचिन तेंदुलकर के बतौर क्रिकेटर कौशल को वो सर्वश्रेष्ठ आंकते हैं जबकि खुद को वो कड़ी मेहनत का नतीजा मानते हैं.

उन्होंने कहा,"मैं जानता हूं कि जब मैं आया था तो मैं इतना कौशल रखने वाला खिलाड़ी नहीं था लेकिन मेरी एक चीज निरंतर रही कि मैं खुद पर काम करता रहा. अगर भारतीय टीम को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनना है तो उसे एक निश्चित तरीके से खेलने की जरूरत थी."

कोहली ने कहा,"जब हम 2012 में ऑस्ट्रेलिया से वापस आए थे तो मैंने हममें और ऑस्ट्रेलिया के बीच काफी अंतर देखा. मैंने महसूस किया कि अगर हम अपने खेलने, ट्रेनिंग करने और खाने के तरीके में बदलाव नहीं करते हैं तो हम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीमों से नहीं भिड़ सकते."

उन्होंने कहा,"अगर आप सर्वश्रेष्ठ नहीं होना चाहते तो प्रतिस्पर्धा करने का कोई मतलब नहीं. मैं खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहता था और फिर खेल के प्रति रवैये में भी बदलाव हुआ."

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'मैं मैदान में ऐसे नहीं जाना चाहता कि विपक्षी टीम सोचे कि ये खिलाड़ी खतरनाक नहीं है'



 



विराट कोहली ने ये बताया की कैसे 2012 में हुए ऑस्ट्रेलियाई दौरे के बाद उन्होंने अपने खेलने की शैली में बदलाव लाया और उनमें सुधार आया.



नई दिल्ली: भारतीय कप्तान विराट कोहली ने कहा कि विपक्षी टीम की निगाहों में उनके प्रति भय और सम्मान के अभाव से वो अपने काम करने के तरीके को बदलने के लिए बाधित हुए और एक 'प्रभावी खिलाड़ी' बनने में सफल हुए.



कोहली ने बताया कि कैसे उन्होंने 2012 में ऑस्ट्रेलियाई दौरे से वापसी के बाद अपनी फिटनेस पर काम किया जिससे उनके खेल में सुधार हुआ.



कोहली ने इसमें कहा,"ऐसा भी समय था जब मैं बल्लेबाजी के लिए उतरता था तो विपक्षी खेमे में मेरे प्रति कोई भय या सम्मान नहीं होता था."



उन्होंने कहा,"मैं मैदान में ऐसे नहीं जाना चाहता कि विपक्षी टीम सोचे कि ये खिलाड़ी इतना खतरनाक नहीं है. मैं सिर्फ कोई अन्य खिलाड़ी नहीं बनना चाहता था क्योंकि मैं प्रभाव डालना चाहता था."



कोहली ने कहा,"मैं चाहता था कि जब मैं चलूं तो टीमों को सोचना चाहिए कि हमें इस खिलाड़ी को आउट करना चाहिए वर्ना हम मैच गंवा देंगे."



उन्होंने साथ ही बताया कि फिटनेस कैसे उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई और कैसे इसने ब्रिटेन में विश्व कप के दौरान उन्हें तेजी से उबरने में मदद की.



उन्होंने कहा,"विश्व कप के दौरान प्रत्येक मैच में मेरा ऊर्जा का स्तर 120 प्रतिशत रहता था. मैं इतनी तेजी से उबरा कि प्रत्येक मैच में मैंने औसतन 15 किमी की दूरी तय की. मैं वापस आता और उबरने का उपचार करता और फिर दूसरे शहर में जाता और जल्द ही फिर से ट्रेनिंग के लिए तैयार रहता."



कोहली ने कहा,"इतनी ऊर्जा होती थी कि मैं जिम सत्र में हिस्सा ले सका और 35 दिन के थोड़े से समय में 10 मैच खेल सका. मैंने प्रत्येक मैच इसी ऊर्जा से खेला, मुझे कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ था. मेरे शरीर में कोई खिंचाव नहीं था."



अपने आदर्श सचिन तेंदुलकर के बतौर क्रिकेटर कौशल को वो सर्वश्रेष्ठ आंकते हैं जबकि खुद को वो कड़ी मेहनत का नतीजा मानते हैं.



उन्होंने कहा,"मैं जानता हूं कि जब मैं आया था तो मैं इतना कौशल रखने वाला खिलाड़ी नहीं था लेकिन मेरी एक चीज निरंतर रही कि मैं खुद पर काम करता रहा. अगर भारतीय टीम को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनना है तो उसे एक निश्चित तरीके से खेलने की जरूरत थी."



कोहली ने कहा,"जब हम 2012 में ऑस्ट्रेलिया से वापस आए थे तो मैंने हममें और ऑस्ट्रेलिया के बीच काफी अंतर देखा. मैंने महसूस किया कि अगर हम अपने खेलने, ट्रेनिंग करने और खाने के तरीके में बदलाव नहीं करते हैं तो हम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीमों से नहीं भिड़ सकते."



उन्होंने कहा,"अगर आप सर्वश्रेष्ठ नहीं होना चाहते तो प्रतिस्पर्धा करने का कोई मतलब नहीं. मैं खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहता था और फिर खेल के प्रति रवैये में भी बदलाव हुआ."


Conclusion:
Last Updated : Sep 29, 2019, 9:09 PM IST
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