हैदराबाद: बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन (बीडब्ल्यूएफ) ने एक बड़ा कदम उठाते हुए अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों के लिए सिंथेटिक शटलकॉक के इस्तेमाल करने के फैसले को मंजूरी दे दी है. अब 2021 से बैडमिंटन टूर्नामेंटों में ये शटल इस्तेमाल की जा सकती है.
मंजूरी देने से पहले बीडब्ल्यूएफ ने सिंथेटिक शटलकॉक का टेस्ट और ट्रायल किया गया है. इस शटल को योनेक्स ने संयुक्त रूप से तैयार किया था जो काफी किफायती होने के साथ साथ प्राकृतिक पंखों वाली शटलकॉक की तुलना में अधिक लंबे समय तक चलने वाली है.
क्यों किया गया ये नया प्रयोग ?
बीडब्ल्यूएफ की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि पारंपरिक शटलकॉक की तुलना में सिंथेटिक शटलकॉक अधिक टिकाऊ और किफायती है. हालाकि बीडब्ल्यूएफ के मुताबिक उनको पारंपरिक और सिंथेटिक शटलकॉक में ज्यादा अंतर नजर नहीं आया.
2021 से बैडमिंटन टूर्नामेंटों में ये शटल इस्तेमाल की जा सकती है. हालांकि, सभी टूर्नामेंटों में ये शटल इस्तेमाल करना अनिवार्य नहीं होगा. विभिन्न टूर्नामेंटों के मेजबानों पर अब निर्भर करेगा कि वे पारंपरिक और सिंथेटिक शटलकॉक में से किस शटल का इस्तेमाल करते हैं .
एक शटल में कितनी पंख होती हैं ?
इसके साथ ही बीडब्लूएफ ने इन शटलकॉकों को तैयार करने के लिए एक समान तकनीक का उपयोग करने के लिए भी योजना पर सहमति दी है, ताकि इसे लेकर किसी तरह का अंतर पैदा न हो. आपको बता दें कि एक शटलकॉक में 16 पंखों का इस्तेमाल किया जाता है जो गूज या बत्तख के पंख होते हैं.
कैसे बनती है शटल
चीन में शटलकोक बनाने में गूज के पंखों का उपयोग किया जाता है जबकि भारत में सफेद बतख के पंखों का उपयोग किया जाता है. हर शटल बनाने में बतख के केवल एक तरफ के (बाएं या दाएं) पंखों का उपयोग किया जाता है.
भारत के पूर्व बैंडमिटन खिलाड़ी चेतन आनंद ने कहा है कि, 'मुझे लगता है कि खेल के लिए ज्यादा बदलाव ठीक नहीं हैं हालांकि, अगर पंख और सिंथेटिक वेरिएंट के बीच बहुत अंतर नहीं है, तो मुझे कोई समस्या नहीं है.'