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फिल्मों में पॉप-कल्चर संदर्भ मुझे याद दिलाते हैं कि मैं फिल्म क्यों कर रहा हूं : वसन बाला - डायरेक्टर वसन बाला

फिल्म 'साइको रमन' (2016) और 'मर्द को दर्द नहीं होता' (2018) के लेखक और फिल्म निर्देशक वसन बाला (Vasan Bala) ने कहा कि फिल्मों में पॉप-कल्चर के संदर्भ, उन्हें इस बात का एहसास दिलाता है कि वह फिल्म क्यों लिख रहे हैं.

वसन बाला
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Published : Jun 21, 2021, 8:22 PM IST

नई दिल्ली : फिल्म 'साइको रमन' (2016) और 'मर्द को दर्द नहीं होता' (2018) के लेखक और फिल्म निर्देशक वसन बाला का कहना है अपनी पसंदीदा फिल्म की यादों में जाना उन्हें एक कहानीकार के रूप में भावनात्मक रूप से प्रेरित करता है. पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में फिल्म निर्देशक वसन बाला ने फिल्म लेखन और निर्देशिकी से जुड़े अपने अनुभव के बारे में खुलकर बताया.

बाला का कहना है कि फिल्म लेखन के दौरान संदर्भों का परिचय जरूरी नहीं और उन्होंने इसे बाद का चरण बताया. उन्होंने कहा कि फिल्म लेखन में हमे पहले यह देखना होता है, 'हम क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं' और 'उनके चरित्र क्या हैं'. एक बार जब यह चरण पार हो जाता है, इसके बाद मैं फिल्मों के संदर्भों को पेश करने का आनंद लेता हूं.'

फिल्मों को देता हूं नया स्वरूप : वसन बाला

उन्होंने कहा, 'मैं बस अपनी फिल्मों को नए-नए अंदाज में संजोता हूं, भले ही इस पर दर्शक की कुछ भी राय हो, लेकिन मेरा काम मुझे भावनात्मक रूप से जोड़े रखता है.'

ये भी पढ़ें : योग कर फिट रहते हैं ये पांच बॉलीवुड स्टार्स, फिटनेस में हैं सब दमदार

बता दें, फिल्म 'पेडलर' से बाला ने अपना डायरेक्शनल डेब्यू किया था. इससे पहले वह शॉर्ट फिल्म बना रहे थे. बाला मशहूर फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप की फिल्म 'बॉम्बे वेलवेट' और 'रमन राघव 2.0' के सह-लेखक भी रह चुके हैं.

बाला ने कहा, जो इंसान पल्पी, लोकप्रिय और कल्ट फिल्में देखकर बड़ा हुआ हो, वो बतौर फिल्म निर्देशक उन अनुभवों को अपनी फिल्मों उतारने की कोशिश करता है. यह एक तरह से चीजों को रिकॉर्ड करने जैसा है. मैं इसे आगे भी करना चाहूंगा क्योंकि मैं इससे प्रेरित होता हूं.'

बता दें, बाला ने अपनी इस लय को अपनी अगली सीरीज 'रे' में बनाए रखा है. 'रे' एक एंथोलॉजी सीरीज है, जो मशहूर फिल्ममेकर सत्यजीत रे की लघु कथाओं पर आधारित है.

बाला ने बताया साल 2019 में 'रे' को लेकर टीम में विचार किया गया था और भारत में कोरोना वायरस के दस्तक देने से पहले इसके पहले पार्ट के लेखन को पूरा कर लिया गया था. शुरुआत में फिल्म का सेट वाराणसी में लगाया गया था, लेकिन कोरोना महामारी के बाद इसे इंडोर में ही कोरोना प्रोटोकॉल में रहकर करने का फैसला लिया.

'स्पॉटलाइट' में भी पॉप-कल्चर की झलक है और चरित्रों को अच्छे से दिखाया गया है ?

इस पर बाला ने कहा कि कहानी लिखने का सबसे अच्छा तरीका है कि हर किरदार को उसका अपना जीवन और व्यक्तित्व दिया जाए. इससे फिल्म के किरदारों को जिंदा चरित्र निभाने में कठिनाई नहीं होती है. बता दें 'स्पॉटलाइट' के अलावा 'हंगामा क्यों हैं बरपा', 'फॉरगेट मी नॉट' और 'बहरूपिया' तीन एंथोलॉजी सीरीज हैं.

सत्यजीत रे की लघुकथाओं को मात्र कुछ घंटे में पेश करना एक बड़ी चुनौती की तरह है ?

इस पर बाला ने कहा, कई विडंबनाएं होने के बाद भी वह निर्देशक के रूप स्क्रिप्ट में समा जाते हैं. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि जब हम एक फिल्म करते हैं, तो हमे उसमें पूरी तरह घर कर जाना चाहिए और जो ऐसा नहीं कर पाता, मुझे नहीं लगता कि वह कहानी के साथ न्याय कर पाएगा या नहीं. हमें कहानी को गढ़ने के लिए पहले खुद को उसमें झोंकना होता है.

ये भी पढे़ं : कंगना ने शेयर किया RANGOLI की फाेटाे, बताया कैसे याेग ने बदली बहन की जिंदगी

नई दिल्ली : फिल्म 'साइको रमन' (2016) और 'मर्द को दर्द नहीं होता' (2018) के लेखक और फिल्म निर्देशक वसन बाला का कहना है अपनी पसंदीदा फिल्म की यादों में जाना उन्हें एक कहानीकार के रूप में भावनात्मक रूप से प्रेरित करता है. पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में फिल्म निर्देशक वसन बाला ने फिल्म लेखन और निर्देशिकी से जुड़े अपने अनुभव के बारे में खुलकर बताया.

बाला का कहना है कि फिल्म लेखन के दौरान संदर्भों का परिचय जरूरी नहीं और उन्होंने इसे बाद का चरण बताया. उन्होंने कहा कि फिल्म लेखन में हमे पहले यह देखना होता है, 'हम क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं' और 'उनके चरित्र क्या हैं'. एक बार जब यह चरण पार हो जाता है, इसके बाद मैं फिल्मों के संदर्भों को पेश करने का आनंद लेता हूं.'

फिल्मों को देता हूं नया स्वरूप : वसन बाला

उन्होंने कहा, 'मैं बस अपनी फिल्मों को नए-नए अंदाज में संजोता हूं, भले ही इस पर दर्शक की कुछ भी राय हो, लेकिन मेरा काम मुझे भावनात्मक रूप से जोड़े रखता है.'

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बता दें, फिल्म 'पेडलर' से बाला ने अपना डायरेक्शनल डेब्यू किया था. इससे पहले वह शॉर्ट फिल्म बना रहे थे. बाला मशहूर फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप की फिल्म 'बॉम्बे वेलवेट' और 'रमन राघव 2.0' के सह-लेखक भी रह चुके हैं.

बाला ने कहा, जो इंसान पल्पी, लोकप्रिय और कल्ट फिल्में देखकर बड़ा हुआ हो, वो बतौर फिल्म निर्देशक उन अनुभवों को अपनी फिल्मों उतारने की कोशिश करता है. यह एक तरह से चीजों को रिकॉर्ड करने जैसा है. मैं इसे आगे भी करना चाहूंगा क्योंकि मैं इससे प्रेरित होता हूं.'

बता दें, बाला ने अपनी इस लय को अपनी अगली सीरीज 'रे' में बनाए रखा है. 'रे' एक एंथोलॉजी सीरीज है, जो मशहूर फिल्ममेकर सत्यजीत रे की लघु कथाओं पर आधारित है.

बाला ने बताया साल 2019 में 'रे' को लेकर टीम में विचार किया गया था और भारत में कोरोना वायरस के दस्तक देने से पहले इसके पहले पार्ट के लेखन को पूरा कर लिया गया था. शुरुआत में फिल्म का सेट वाराणसी में लगाया गया था, लेकिन कोरोना महामारी के बाद इसे इंडोर में ही कोरोना प्रोटोकॉल में रहकर करने का फैसला लिया.

'स्पॉटलाइट' में भी पॉप-कल्चर की झलक है और चरित्रों को अच्छे से दिखाया गया है ?

इस पर बाला ने कहा कि कहानी लिखने का सबसे अच्छा तरीका है कि हर किरदार को उसका अपना जीवन और व्यक्तित्व दिया जाए. इससे फिल्म के किरदारों को जिंदा चरित्र निभाने में कठिनाई नहीं होती है. बता दें 'स्पॉटलाइट' के अलावा 'हंगामा क्यों हैं बरपा', 'फॉरगेट मी नॉट' और 'बहरूपिया' तीन एंथोलॉजी सीरीज हैं.

सत्यजीत रे की लघुकथाओं को मात्र कुछ घंटे में पेश करना एक बड़ी चुनौती की तरह है ?

इस पर बाला ने कहा, कई विडंबनाएं होने के बाद भी वह निर्देशक के रूप स्क्रिप्ट में समा जाते हैं. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि जब हम एक फिल्म करते हैं, तो हमे उसमें पूरी तरह घर कर जाना चाहिए और जो ऐसा नहीं कर पाता, मुझे नहीं लगता कि वह कहानी के साथ न्याय कर पाएगा या नहीं. हमें कहानी को गढ़ने के लिए पहले खुद को उसमें झोंकना होता है.

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