नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अभिनेत्री मुनमुन दत्ता (Munmun Dutta) के खिलाफ दर्ज कई प्राथमिकी में आपराधिक कार्यवाही पर शुक्रवार को रोक लगा दी. टीवी धारावाहिक 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) की अभिनेत्री मुनमुन दत्ता के खिलाफ प्राथमिकी एक वीडियो में कथित तौर पर जातिवादी टिप्पणी (casteist slur in a video) करने को लेकर दायर की गई है. न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने अभिनेत्री की याचिका पर हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र सहित अन्य से जवाब मांगा.
छह सप्ताह तक कार्रवाई पर रोक
अभिनेत्री मुनमुन दत्ता ने अनुरोध किया है कि विभिन्न राज्यों में दर्ज सभी प्राथमिकी को हरियाणा के हिसार जिले के हांसी सिटी थाने में दर्ज पहली प्राथमिकी के साथ जोड़ दिया जाए. न्यायालय ने सभी प्रतिवादी राज्यों और अन्य लोगों से छह सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा. पीठ ने निर्देश दिया, 'इस बीच, गुजरात, मध्य प्रदेश, नई दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों में दर्ज प्राथमिकी पर कार्यवाही पर रोक रहेगी.'
भाषा के कारण शब्द के सही मायने से अनजान
सुनवाई की शुरुआत में, अभिनेत्री की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत बाली ने कहा कि उन्होंने जानबूझकर जातिवादी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था और इस शब्द का इस्तेमाल करने का उनका कोई मकसद नहीं था. उन्होंने कहा कि अभिनेत्री ने इस शब्द को लेकर माफी भी मांगी है और शब्द का अर्थ समझने के बाद वीडियो को हटा दिया है. बाली ने कहा कि भाषा की बाध्यता के कारण, बंगाली होने के कारण, वह इस शब्द के सही अर्थ से अनजान थीं.
सुप्रीम कोर्ट का सख्त सवाल
पीठ ने कहा, 'हर कोई इस शब्द का अर्थ जानता है. बंगाली में उसी शब्द का प्रयोग किया जाता है और वह कोलकाता में थीं, जब उन्होंने यह टिप्पणी की थी.' पीठ ने सवाल किया, 'क्या महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज्यादा अधिकार हैं या उन्हें समान अधिकार हैं?'
पढ़ें : हरियाणा : आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर इन सितारों पर भी दर्ज हो चुके हैं मुकदमे
सभी मामलों को एक साथ जोड़ने की अपील
बाली ने कहा कि अभिनेत्री महिला हैं और हाल ही में उनके पिता की मृत्यु हो गयी. वह इस बात से सहमत हैं कि उन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल किया है, लेकिन संदर्भ अलग था. उन्होंने न्यायालय से सभी प्राथमिकी को एक साथ जोड़ने और अधिकारियों को एक ही घटना के लिए ऐसी प्राथमिकी दर्ज करने से रोकने का निर्देश देने का आग्रह किया. हालांकि, पीठ ने अधिकारियों को इसी तरह की प्राथमिकी दर्ज करने से रोकने के लिए कोई आदेश नहीं पारित किया और कहा कि याचिकाकर्ता कोई नया मामला दर्ज होने की स्थिति में अदालत का दरवाजा खटखटा सकती हैं.
(पीटीआई-भाषा)