नयी दिल्लीः ‘ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ (Duchenne Muscular Dystrophy) एक दुर्लभ और असाध्य अनुवांशिक बीमारी है. देश में इस समय इस रोग के पांच लाख से अधिक मामले हैं. हर साल इस बीमारी के इलाज पर 2-3 करोड़ रुपये का खर्च आता है. इसके इलाज को सुलभ बनाने के लिए IIT Jodhpur की ओर से ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी शोध केंद्र स्थापित किया गया है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) जोधपुर ने ‘डिस्ट्रोफी एनीहिलेशन रिसर्च ट्रस्ट’ (DART) बेंगलुरु और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( AIIMS Jodhpur ) जोधपुर के सहयोग से डीएमडी के लिए एक शोध केंद्र स्थापित किया है. इस केंद्र का उद्देश्य इस दुर्लभ और लाइलाज अनुवांशिक बीमारी (Incurable Hereditary Disease) के लिए सस्ते उपचार को देश में विकसित करना है.
‘‘वर्तमान में, DMD का कोई इलाज नहीं है, लेकिन एकीकृत उपचार के जरिये इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है। डीएमडी वाले मरीजों में प्रोटीन की अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग प्रकार के उत्परिवर्तन होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप डायस्ट्रोफिन ओआरएफ का निर्माण होता है. हमारी टीम का प्राथमिक लक्ष्य उच्च प्राथमिकता पर क्लिनिकल परीक्षण के लिए चिकित्सीय उपाय विकसित करना है’’-सुरजीत घोष, डीन, आईआईटी जोधपुर
पीड़ित मरीज 12 साल की उम्र में ही चलने में असमर्थ हो जाता है
आईआईटी जोधपुर में अनुसंधान एवं विकास के डीन, सुरजीत घोष ( Dean OF RnD In IIT Jodhpur Surjit Ghosh) के अनुसार- डीएमडी एक ‘एक्स लिंक्ड रिसेसिव मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ है, जो लगभग 3,500 लड़कों में से एक को प्रभावित करती है, जो धीरे-धीरे मांसपेशियों के ऊतकों को नुकसान पहुंचने का कारण बनती है. ऐसा देखा गया है कि इस बीमारी से ग्रस्तित बच्चे 12 साल की उम्र तक चलने में पूरी तरह से असमर्थ हो सकते हैं और उन्हें व्हीलचेयर का उपयोग करना पड़ सकता है. इस रोग में लगभग 20 वर्ष की आयु में व्यक्ति को सहायक वेंटिलेशन की आवश्यकता हो सकती है.
क्या है डीएमडी
‘ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ (डीएमडी) मांसपेशियों को प्रभावित करने वाली एक जेनेटिक बीमारी है. इस बीमारी की वजह से मांसपेशियां धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो जाती हैं. लंबे समय तक इस स्थिति के कारण मांसपेशियां पूरी खराब भी हो सकती है.इस बीमारी में मांसपेशियों की कोशिकाओं में ‘‘डाइस्ट्रोफिन’’ नामक एक प्रोटीन का उत्पादन कम होने लगता है या पूरी तरह से बंद भी हो सकता है. यह समस्या मुख्य रूप से लड़कों में देखी जाती है, लेकिन दुर्लभ मामलों में यह लड़कियों को भी प्रभावित कर सकती है.
DMD के इलाज के लिए उपलब्ध मौजूदा चिकित्सा विकल्प बहुत कम और काफी महंगे हैं, जिनकी लागत प्रति वर्ष प्रति बच्चा 2-3 करोड़ रुपये तक आती है. इसकी दवाइयां ज्यादातर विदेशों से आयात करना पड़ता है. इस रोग में दवाई की प्रति खुराक की लागत काफी अधिक है और यह ज्यादातर लोगों को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार मांसपेशियों में कमजोरी डीएमडी का प्रमुख लक्षण है. यह बीमारी दो या तीन साल की उम्र में बच्चे को अपनी चपेट में लेना शुरू कर देती है. कुछ समय पहले तक, डीएमडी से पीड़ित बच्चे आमतौर पर अपनी किशोरावस्था से अधिक जीवित नहीं रहते थे. हालांकि, हृदय और श्वसन देखभाल में प्रगति के साथ अब ऐसे मरीजों की जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है.
(Extra Input भाषा)
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