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Learning From Asian Games : मेडल की झड़ी तो भारत भी लगा सकता है, बशर्ते ...

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 9, 2023, 4:37 PM IST

एशियाई खेल 2023 में भारत ने चौथा स्थान प्राप्त किया. चीन, जापान और द. कोरिया के बाद भारत का स्थान रहा. भारत ने एशियाई खेल में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. हालांकि, सवाल भी कम नहीं पूछे जा रहे हैं. लोग जानना चाहते हैं कि क्या भारत, चीन और जापान की तरह पदकों की झड़ी नहीं लगा सकता है ? क्या भारत में खेल के बुनियादी ढांचे इन देशों की तरह नहीं हैं ? पेश है ईनाडु संपादकीय का आलेख.

asian games, Design photo
एशियन गेम, डिजाइन फोटो

हैदराबाद : चीन के हांगझोऊ शहर में एशियाई खेल खत्म हो चुका है. जिस भव्यता के साथ 72 सालों से एशियाई खेल का आयोजन चला आ रहा है, चीन ने उस ऐतिहासिक परंपरा को कायम रखा. भारत के लिए यह एशियाई गेम कई मायनों में उल्लेखनीय रहा. एशियाई खेलों में भारत का यह अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा. उसकी झोली में 28 गोल्ड आए, कुल 107 मेडल भारत ने जीता. ओवर ऑल मेडल टैली में भारत का स्थान चौथा रहा.

मेडल टैली में पहले स्थान पर चीन, दूसरे स्थान पर जापान और तीसरे स्थान पर द. कोरिया रहा. भारत के लिहाज से देखें तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. हमने अपने पिछले रिकॉर्ड से काफी बेहतर परफॉर्मेंस किया है. पिछली बार इंडोनेशिया के जकार्ता में एशियाई गेम हुआ था. 2018 के इस गेम में भारत ने 70 मेडल हासिल किए थे. जाहिर है इस उपलब्धि का श्रेय उन खिलाड़ियों को जाता है, जिन्होंने कठिन चुनौतियों का सामना करने के बावजूद देश का मान बढ़ाया. यह उनकी प्रतिबद्धता और लगन की जीत थी.

एशियाई खेल में भारत की शुरुआत 1951 से हुई. तब भारत को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था. 1962 के जकार्ता एशियाई खेल में भारत को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ था. इस बार भारत को चौथा स्थान प्राप्त हुआ और उसे सौ से अधिक मेडल मिले. इनमें भारत के तीरंदाज ज्योति और ओजस प्रवीन का विशेष योगदान रहा. दोनों को तीन-तीन गोल्ड मेडल मिले. यह उनकी प्रतिभा और लगन का परिणाम था.

  • What a historic achievement for India at the Asian Games!

    The entire nation is overjoyed that our incredible athletes have brought home the highest ever total of 107 medals, the best ever performance in the last 60 years.

    The unwavering determination, relentless spirit and hard… pic.twitter.com/t8eHsRvojl

    — Narendra Modi (@narendramodi) October 8, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इसके अलावा सात्विकसाईराज और चिराग शेट्टी ने बैडमिंटन में गोल्ड मेडल जीतकर नया इतिहास बनाया. आर्चरी, कबड्डी, क्रिकेट, बैडमिंटन, शूटिंग, एथलेटिक्स और अन्य खेलों में खिलाड़ियों ने टीम भावना, अनुशासन और जीतने की उत्कट इच्छा का सर्वोच्च प्रदर्शन किया. यहां इसका भी उल्लेख जरूरी है कि इन खिलाड़ियों ने सीमित संसाधनों में इसे हासिल किया. घरेलू स्तर पर खिलाड़ियों को कितनी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है.

2018 में चीन ने जकार्ता में 289 मेडल हासिल किया था, जिनमें 132 गोल्ड शामिल थे. होंगझाऊ में भी चीन ने 383 मेडल प्राप्त किया, जिनमें 201 गोल्ड मेडल शामिल हैं. अगर आप इसे और भी बेहतर ढंग से समझना चाहते हैं तो ऐसे समझिए, कि जापान की आबादी 12 करोड़ है, जबकि बिहार की आबादी 13 करोड़ है. जापान ने 188 मेडल जीते, जिनमें 52 गोल्ड मेडल शामिल हैं. इसी तरह से द. कोरिया की आबादी करीब पांच करोड़ है, जिसने 190 मेडल जीते, जिनमें 42 गोल्ड मेडल शामिल हैं. ओडिशा की आबादी पांच करोड़ है, और उपलब्धि, आप खुद अंदाजा लगाइए.

1982 एशियन गेम से लगातार चीन का दबदबा कायम रहा है. 1982 में भारत ने एशियाई खेल की मेजबानी की थी. इसके पहले 1951 में भी भारत ने ही मेजबानी की थी. चीन यूं ही इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर रहा है. उसने खेल के पीछे निवेश किया है. उसके लिए पूरा इको-सिस्टम तैयार किया है. देश भर में जिम्नेजियम खोल रखा है. किशोरावस्था से ही टैलेंट की पहचान कर उसे नर्चर किया जाता है. मेडल टैली में ऊपर बने रहने के पीछे अथक परिश्रम और बेहतर प्लानिंग छिपी होती है. जापान में भी खेल के प्रति कम उम्र में ही बच्चों को उसे सीखने को प्रेरित किया जाता है. वहां पर हरेक स्कूल में खेल के लिए ढांचा मौजूद है. जगह-जगह ट्रेनिंग सेंटर खुले हुए हैं. बेसबॉल, गोल्फ, मोटर स्पोर्ट्स और टेनिस के प्रति उन्हें कम उम्र में ही एक्सपोजर मिल जाता है. उसके बाद उनकी रुचि के आधार पर ट्रेनिंग दी जाती है.

द. कोरिया का तरीका थोड़ा अलग है. इसने चीन मॉडल को अपने तरीके से लागू किया है. किशोर अवस्था में ही खेल के प्रति रूचि रखने वालों को वैज्ञानिक तरीके से ट्रेनिंग दी जाती है. उसके बाद उन्हें उस गेम के लिए तराशा जाता है. यहां पर हरेक पुरुषों के लिए जरूरी होता है कि 28वां साल पूरा होते-होते डेढ़ साल तक सेना में योगदान करें. हालांकि, एशियाई या ओलंपिक खेल में पदक जीतने वालों को इससे अलग रखा गया है. उन्हें छूट दी जाती है. उन्हें अलग से इंसेंटिव भी मिलता है. खेल के क्षेत्र में पूरी दुनिया में सबसे अच्छी सुविधा द. कोरिया में दी जाती है.

इन सफलताओं की कहानियों से जो बात सामने आती है वह यह है कि ये सभी देश एक मजबूत खेल बुनियादी ढांचे के निर्माण पर जोर देते हैं. वे समझते हैं कि खेल में आत्मविश्वास का बहुत बड़ा योगदान होता है और वे इसे देश के विकास में प्रतिबिंबित भी करते हैं. उनके इसी दृष्टिकोण की वजह से दुनिया भर में उन्हें सराहा जाता है.

ऐसी ही सफलता भारत से भी उम्मीद करते हैं, तो आपको भी यहां बुनियादी ढांचे का विकास करना होगा. प्रत्येक राज्य में एथलेटिक सुविधाएं और इंसेटिव की शुरुआत करनी होगी. प्रतिभा को पहचान कर उसे निखारने की व्यवस्था करनी होगी. इतने बड़े देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, जरूरत है तो उसे पहचानने और संस्थागत सहयोग करने की. इस तरह का व्यापक दृष्टिकोण न केवल पदकों की संख्या बढ़ाएगा, बल्कि ओवरऑल खेल की संस्कृति को भी बढ़ावा देगा.

ये भी पढ़ें : Watch : एथलेटिक्स के क्षितिज पर नया सितारा विथ्या रामराज, ट्रक ड्राइवर की बेटी ने एशियन गेम्स में दिलाया कांस्य पदक

हैदराबाद : चीन के हांगझोऊ शहर में एशियाई खेल खत्म हो चुका है. जिस भव्यता के साथ 72 सालों से एशियाई खेल का आयोजन चला आ रहा है, चीन ने उस ऐतिहासिक परंपरा को कायम रखा. भारत के लिए यह एशियाई गेम कई मायनों में उल्लेखनीय रहा. एशियाई खेलों में भारत का यह अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा. उसकी झोली में 28 गोल्ड आए, कुल 107 मेडल भारत ने जीता. ओवर ऑल मेडल टैली में भारत का स्थान चौथा रहा.

मेडल टैली में पहले स्थान पर चीन, दूसरे स्थान पर जापान और तीसरे स्थान पर द. कोरिया रहा. भारत के लिहाज से देखें तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. हमने अपने पिछले रिकॉर्ड से काफी बेहतर परफॉर्मेंस किया है. पिछली बार इंडोनेशिया के जकार्ता में एशियाई गेम हुआ था. 2018 के इस गेम में भारत ने 70 मेडल हासिल किए थे. जाहिर है इस उपलब्धि का श्रेय उन खिलाड़ियों को जाता है, जिन्होंने कठिन चुनौतियों का सामना करने के बावजूद देश का मान बढ़ाया. यह उनकी प्रतिबद्धता और लगन की जीत थी.

एशियाई खेल में भारत की शुरुआत 1951 से हुई. तब भारत को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था. 1962 के जकार्ता एशियाई खेल में भारत को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ था. इस बार भारत को चौथा स्थान प्राप्त हुआ और उसे सौ से अधिक मेडल मिले. इनमें भारत के तीरंदाज ज्योति और ओजस प्रवीन का विशेष योगदान रहा. दोनों को तीन-तीन गोल्ड मेडल मिले. यह उनकी प्रतिभा और लगन का परिणाम था.

  • What a historic achievement for India at the Asian Games!

    The entire nation is overjoyed that our incredible athletes have brought home the highest ever total of 107 medals, the best ever performance in the last 60 years.

    The unwavering determination, relentless spirit and hard… pic.twitter.com/t8eHsRvojl

    — Narendra Modi (@narendramodi) October 8, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इसके अलावा सात्विकसाईराज और चिराग शेट्टी ने बैडमिंटन में गोल्ड मेडल जीतकर नया इतिहास बनाया. आर्चरी, कबड्डी, क्रिकेट, बैडमिंटन, शूटिंग, एथलेटिक्स और अन्य खेलों में खिलाड़ियों ने टीम भावना, अनुशासन और जीतने की उत्कट इच्छा का सर्वोच्च प्रदर्शन किया. यहां इसका भी उल्लेख जरूरी है कि इन खिलाड़ियों ने सीमित संसाधनों में इसे हासिल किया. घरेलू स्तर पर खिलाड़ियों को कितनी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है.

2018 में चीन ने जकार्ता में 289 मेडल हासिल किया था, जिनमें 132 गोल्ड शामिल थे. होंगझाऊ में भी चीन ने 383 मेडल प्राप्त किया, जिनमें 201 गोल्ड मेडल शामिल हैं. अगर आप इसे और भी बेहतर ढंग से समझना चाहते हैं तो ऐसे समझिए, कि जापान की आबादी 12 करोड़ है, जबकि बिहार की आबादी 13 करोड़ है. जापान ने 188 मेडल जीते, जिनमें 52 गोल्ड मेडल शामिल हैं. इसी तरह से द. कोरिया की आबादी करीब पांच करोड़ है, जिसने 190 मेडल जीते, जिनमें 42 गोल्ड मेडल शामिल हैं. ओडिशा की आबादी पांच करोड़ है, और उपलब्धि, आप खुद अंदाजा लगाइए.

1982 एशियन गेम से लगातार चीन का दबदबा कायम रहा है. 1982 में भारत ने एशियाई खेल की मेजबानी की थी. इसके पहले 1951 में भी भारत ने ही मेजबानी की थी. चीन यूं ही इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर रहा है. उसने खेल के पीछे निवेश किया है. उसके लिए पूरा इको-सिस्टम तैयार किया है. देश भर में जिम्नेजियम खोल रखा है. किशोरावस्था से ही टैलेंट की पहचान कर उसे नर्चर किया जाता है. मेडल टैली में ऊपर बने रहने के पीछे अथक परिश्रम और बेहतर प्लानिंग छिपी होती है. जापान में भी खेल के प्रति कम उम्र में ही बच्चों को उसे सीखने को प्रेरित किया जाता है. वहां पर हरेक स्कूल में खेल के लिए ढांचा मौजूद है. जगह-जगह ट्रेनिंग सेंटर खुले हुए हैं. बेसबॉल, गोल्फ, मोटर स्पोर्ट्स और टेनिस के प्रति उन्हें कम उम्र में ही एक्सपोजर मिल जाता है. उसके बाद उनकी रुचि के आधार पर ट्रेनिंग दी जाती है.

द. कोरिया का तरीका थोड़ा अलग है. इसने चीन मॉडल को अपने तरीके से लागू किया है. किशोर अवस्था में ही खेल के प्रति रूचि रखने वालों को वैज्ञानिक तरीके से ट्रेनिंग दी जाती है. उसके बाद उन्हें उस गेम के लिए तराशा जाता है. यहां पर हरेक पुरुषों के लिए जरूरी होता है कि 28वां साल पूरा होते-होते डेढ़ साल तक सेना में योगदान करें. हालांकि, एशियाई या ओलंपिक खेल में पदक जीतने वालों को इससे अलग रखा गया है. उन्हें छूट दी जाती है. उन्हें अलग से इंसेंटिव भी मिलता है. खेल के क्षेत्र में पूरी दुनिया में सबसे अच्छी सुविधा द. कोरिया में दी जाती है.

इन सफलताओं की कहानियों से जो बात सामने आती है वह यह है कि ये सभी देश एक मजबूत खेल बुनियादी ढांचे के निर्माण पर जोर देते हैं. वे समझते हैं कि खेल में आत्मविश्वास का बहुत बड़ा योगदान होता है और वे इसे देश के विकास में प्रतिबिंबित भी करते हैं. उनके इसी दृष्टिकोण की वजह से दुनिया भर में उन्हें सराहा जाता है.

ऐसी ही सफलता भारत से भी उम्मीद करते हैं, तो आपको भी यहां बुनियादी ढांचे का विकास करना होगा. प्रत्येक राज्य में एथलेटिक सुविधाएं और इंसेटिव की शुरुआत करनी होगी. प्रतिभा को पहचान कर उसे निखारने की व्यवस्था करनी होगी. इतने बड़े देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, जरूरत है तो उसे पहचानने और संस्थागत सहयोग करने की. इस तरह का व्यापक दृष्टिकोण न केवल पदकों की संख्या बढ़ाएगा, बल्कि ओवरऑल खेल की संस्कृति को भी बढ़ावा देगा.

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