हैदराबाद : ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंकिंग (Global Hunger Index 2023) में भारत 125 देशों की सूची में 111वें स्थान पर खिसक गया है. हमारे देश की भावी पीढ़ियों में जीवन शक्ति और पोषण का संचार करने में असफल होना वास्तव में हमारे देश के भविष्य के सार को खतरे में डाल देगा.
आजादी के साढ़े सात दशकों के बाद भी, पोषण सुरक्षा और संपूर्ण जीवन की खोज हमारे देश के अनगिनत नागरिकों के लिए एक दूर का सपना बनी हुई है. लाखों बच्चे कुपोषण के निरंतर खतरे से प्रभावित हैं, एक ऐसी दुर्दशा जिसे वे अपने जन्म के क्षण से ही सहन करते हैं.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (डब्ल्यूएचआई), जो हमारे देश की गंभीर परिस्थितियों का एक स्पष्ट प्रतिबिंब है, इस निराशाजनक कहानी का वर्णन करता है. 2020 में, भारत इस सूचकांक में 94वें स्थान पर था, लेकिन आने वाले वर्षों में, हमारी स्थिति गिरकर 101 और फिर 107 पर आ गई.
ताजा रैंकिंग में भारत 125 देशों के बीच 111वें स्थान पर खिसक गया है. इस सूचकांक पर चिंताजनक मूल्यांकन चार महत्वपूर्ण संकेतकों को मिलाता है जो भूख की बहुआयामी प्रकृति को दर्शाते हैं. ये हैं अल्पपोषण, बच्चों का बौनापन, बच्चों का कमज़ोर होना और बाल मृत्यु दर.
इस चिंताजनक वास्तविकता के बिल्कुल विपरीत, केंद्र सरकार ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स के निष्कर्षों का विरोध किया है और इसे 'भूख का त्रुटिपूर्ण मूल्यांकन' करार दिया है जो भारत की वास्तविक स्थिति को सटीक रूप से चित्रित करने में विफल है. फिर भी, 2016-18 के व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण ने एक अशुभ चेतावनी दी थी: भोजन की कमी के खतरे ने अपनी पहुंच बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमाओं से परे बढ़ा दी है.
रिपोर्ट स्पष्ट रूप से घोषित करती है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण बढ़ रहा है, जो हमारे देश के स्वास्थ्य की एक गंभीर तस्वीर पेश करता है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा किए गए हालिया शोध में पाया गया कि 71% भारतीय कुपोषण से जूझ रहे हैं, एक ऐसी समस्या जो हर साल 17 लाख लोगों की जान ले लेती है. हंगर इंडेक्स को खारिज करना निरर्थक प्रयास बन जाता है जब अध्ययन निर्णायक रूप से स्थापित करते हैं कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवरुद्ध विकास से पीड़ित हैं. 68 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु का कारण कुपोषण है.
अफसोस की बात है कि देश में असंख्य माताएं एनीमिया से घिरी हुई हैं और शिशु कुपोषण लगातार मासूमों की जान ले रहा है. डॉ. विनय सहस्त्र बुद्धे की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे सामने आए, क्योंकि इसमें पोषण अभियान और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए आवंटित धन के अप्रभावी उपयोग पर प्रकाश डाला गया है.
देश अन्य मोर्चों पर तेजी से प्रगति कर रहा है, इसके बावजूद नागरिक भूख से होने वाली मौतों का शिकार हो रहे हैं. इस दिल दहला देने वाली सच्चाई का गवाह बनते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने यथासंभव अधिक से अधिक लोगों को राशन सामग्री के वितरण का निर्देश दिया है. इन परेशान करने वाले निष्कर्षों और हमारे देश के भीतर से मदद की तत्काल पुकार को ध्यान में रखते हुए, यह सर्वोपरि है कि मानवीय और दयालु भावना के साथ, शासन में मौजूद खामियों को तेजी से संबोधित किया जाए.
पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट इस बात को ज़ोर देकर रेखांकित करती है कि बच्चों में कुपोषण हमारे देश की प्रगति में एक बड़ी बाधा है. इस संबंध में नीति आयोग ने पुष्टि की है कि उचित स्तनपान संभावित रूप से बच्चों में अवरुद्ध विकास की पीड़ा को 60 प्रतिशत तक कम कर सकता है. इस दावे की सत्यता निर्विवाद है, क्योंकि जब माताएं स्वयं एनीमिया से जूझती हैं तो वे प्राकृतिक पोषण कैसे प्रदान कर सकती हैं?
जो देश इस मूलभूत सिद्धांत को समझते हैं और इस पर दृढ़ विश्वास के साथ कार्य करते हैं, वे निश्चित रूप से कई मोर्चों पर महत्वपूर्ण प्रगति देखते हैं. नेपाल एक उदाहरण के रूप में खड़ा है, जिसने अपनी अच्छी तरह से क्रियान्वित पोषण योजनाओं और नवजात शिशुओं और नर्सिंग माताओं पर अटूट ध्यान के आधार पर मातृ एवं शिशु देखभाल में सराहनीय प्रगति हासिल की है.
बांग्लादेश भी परिवर्तन की एक सम्मोहक कहानी पेश करता है. सिर्फ एक चौथाई सदी पहले, यहां कम वजन वाले बच्चों की अधिक संख्या थी. मातृ शिक्षा को प्राथमिकता देने, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता को बढ़ावा देने और मजबूत स्वास्थ्य देखभाल पहलों को लागू करने से देश में एक उल्लेखनीय बदलाव आया है.
अफसोस की बात है कि घर-घर में असमानताएं एक चिंताजनक तस्वीर पेश करती हैं. विश्व भूख सूचकांक हमें इस रहस्योद्घाटन से चिंतित करता है कि 18.7 प्रतिशत भारतीय बच्चों का वजन उनकी लंबाई के मुकाबले कम है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) इस मुद्दे की भयावहता को रेखांकित करता है, जिसमें 19.3 प्रतिशत लड़के और लड़कियां इस श्रेणी में आते हैं. इसके अलावा, हमारे देश में 35 प्रतिशत से अधिक अविकसित बच्चे कुपोषण के स्थायी परिणाम भुगतते हैं. इस संकट से निपटने के लिए देश भर में फैली 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्र सुविधाएं हैं, जिन्हें लगभग 10 करोड़ बच्चों, शिशुओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण प्रदान करने का काम सौंपा गया है.
हालांकि, ये नेक इरादे वाले प्रतिष्ठान कर्मचारियों की रिक्तियों से लेकर निगरानी चुनौतियों और वितरण विसंगतियों तक कई बाधाओं से जूझते हैं, जो उन्हें कल्पना से कम प्रभावी बनाते हैं.
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प्रधानमंत्री मोदी के शब्द पूर्ण रूप से सत्य हैं: एक स्वस्थ नागरिक वह आधार है जिस पर नए भारत की इमारत का निर्माण तभी किया जा सकता है, जब पौष्टिक भोजन सभी के लिए सुलभ हो. इसलिए सरकारों को दृढ़ उपाय अपनाने होंगे. खाद्य और पोषण योजनाओं को निष्पक्ष रूप से लागू किया जाना चाहिए, जबकि भ्रष्ट आचरण में शामिल लोगों को कठोर परिणाम भुगतने चाहिए. हमारे देश की भावी पीढ़ियों में जीवन शक्ति और पोषण का संचार करने में असफल होना वास्तव में हमारे देश के भविष्य के सार को खतरे में डाल देगा.
(ईनाडु में प्रकाशित संपादकीय का अनुवादित संस्करण)