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आईसीजे ने म्यांमार के दावों को किया खारिज, रोहिंग्या मामले की होगी सुनवाई

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लिए म्यांमार सरकार के जिम्मेदार होने के आरोपों पर म्यामांर की प्रारंभिक आपत्तियां शुक्रवार को खारिज कर दी.

will hear Rohingya case
रोहिंग्या मामले की सुनवाई
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Published : Jul 22, 2022, 10:32 PM IST

द हेग: संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत ने रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लिए म्यांमार सरकार के जिम्मेदार होने के आरोपों पर म्यामांर की प्रारंभिक आपत्तियां शुक्रवार को खारिज कर दी है. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) के इस निर्णय के साथ ही गांबिया की ओर से म्यांमार के शासकों के खिलाफ नरसंहार के आरोपों की सुनवाई आगे जारी रहेगी. यह बात दीगर है कि इसमें वर्षों लगेंगे.

रोहिंग्या के साथ किएजाने वाले कथित दुर्व्यवहार को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न आक्रोश के बीच, गांबिया ने विश्व अदालत में मामला दायर कर आरोप लगाया कि म्यांमार नरसंहार संधि का उल्लंघन कर रहा है. इसकी दलील है कि गांबिया और म्यांमार दोनों ही संधि के पक्षकार हैं और सभी हस्ताक्षरकर्ताओं का यह कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि इसे लागू किया जाए. इस बीच, इस मामले में फैसला आने से पहले अंतरराष्ट्रीय अदालत के मुख्यालय 'पीस पैलेस' के बाहर रोहिंग्या-समर्थक प्रदर्शनकारियों का एक छोटा समूह इकट्ठा हुआ, जिनके हाथों में बैनर थे. इन बैनरों पर लिखा था, 'रोहिंग्या को न्याय दिलाने की प्रक्रिया तेज हो. नरसंहार में बचे रोहिंग्या मुसलमान पीढ़ियों तक इंतजार नहीं कर सकते.'

आईसीजे को पहले इस बात का निर्णय करना था कि क्या हेग स्थित अदालत का (संबंधित मामले की) सुनवाई का अधिकार क्षेत्र है या नहीं और 2019 में छोटे अफ्रीकी राष्ट्र गांबिया की ओर से दर्ज कराया गया मामला सुनवाई योग्य है या नहीं. मानवाधिकार समूह और संयुक्त राष्ट्र की जांच में इस नरसंहार को 1948 की संधि का उल्लंघन करार दिया जा चुका है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मार्च में कहा था कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का हिंसक दमन नरसंहार के बराबर है.

यह भी पढ़ें-रोहिंग्या नरसंहार मामले को संयुक्त राष्ट्र कोर्ट में खारिज किया जाना चाहिए: म्यांमार

म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने फरवरी में तर्क दिया था कि इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि विश्व अदालत केवल देशों के बीच के मामलों की सुनवाई करती है, जबकि रोहिंग्या का मामला इस्लामिक सहयोग संगठन की ओर से गांबिया ने दायर किया है. उन्होंने यह भी दावा किया कि गांबिया इस मामले में अदालत नहीं जा सकता क्योंकि यह सीधे तौर पर म्यांमार की घटनाओं से जुड़ा नहीं था और मामला दायर होने से पहले दोनों देशों के बीच कोई कानूनी विवाद भी नहीं था.

(पीटीआई-भाषा)

द हेग: संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत ने रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लिए म्यांमार सरकार के जिम्मेदार होने के आरोपों पर म्यामांर की प्रारंभिक आपत्तियां शुक्रवार को खारिज कर दी है. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) के इस निर्णय के साथ ही गांबिया की ओर से म्यांमार के शासकों के खिलाफ नरसंहार के आरोपों की सुनवाई आगे जारी रहेगी. यह बात दीगर है कि इसमें वर्षों लगेंगे.

रोहिंग्या के साथ किएजाने वाले कथित दुर्व्यवहार को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न आक्रोश के बीच, गांबिया ने विश्व अदालत में मामला दायर कर आरोप लगाया कि म्यांमार नरसंहार संधि का उल्लंघन कर रहा है. इसकी दलील है कि गांबिया और म्यांमार दोनों ही संधि के पक्षकार हैं और सभी हस्ताक्षरकर्ताओं का यह कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि इसे लागू किया जाए. इस बीच, इस मामले में फैसला आने से पहले अंतरराष्ट्रीय अदालत के मुख्यालय 'पीस पैलेस' के बाहर रोहिंग्या-समर्थक प्रदर्शनकारियों का एक छोटा समूह इकट्ठा हुआ, जिनके हाथों में बैनर थे. इन बैनरों पर लिखा था, 'रोहिंग्या को न्याय दिलाने की प्रक्रिया तेज हो. नरसंहार में बचे रोहिंग्या मुसलमान पीढ़ियों तक इंतजार नहीं कर सकते.'

आईसीजे को पहले इस बात का निर्णय करना था कि क्या हेग स्थित अदालत का (संबंधित मामले की) सुनवाई का अधिकार क्षेत्र है या नहीं और 2019 में छोटे अफ्रीकी राष्ट्र गांबिया की ओर से दर्ज कराया गया मामला सुनवाई योग्य है या नहीं. मानवाधिकार समूह और संयुक्त राष्ट्र की जांच में इस नरसंहार को 1948 की संधि का उल्लंघन करार दिया जा चुका है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मार्च में कहा था कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का हिंसक दमन नरसंहार के बराबर है.

यह भी पढ़ें-रोहिंग्या नरसंहार मामले को संयुक्त राष्ट्र कोर्ट में खारिज किया जाना चाहिए: म्यांमार

म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने फरवरी में तर्क दिया था कि इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि विश्व अदालत केवल देशों के बीच के मामलों की सुनवाई करती है, जबकि रोहिंग्या का मामला इस्लामिक सहयोग संगठन की ओर से गांबिया ने दायर किया है. उन्होंने यह भी दावा किया कि गांबिया इस मामले में अदालत नहीं जा सकता क्योंकि यह सीधे तौर पर म्यांमार की घटनाओं से जुड़ा नहीं था और मामला दायर होने से पहले दोनों देशों के बीच कोई कानूनी विवाद भी नहीं था.

(पीटीआई-भाषा)

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