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भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम समूह ने भारत के खिलाफ प्रस्ताव पेश करने के लिए महिला सांसद की सराहना की

अमेरिका के आईएएमसी ने एक ऐसे प्रस्ताव की सराहना की है जिसमें कथित तौर पर अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के लिए भारत की आलोचना की गई है.

Indian-American Muslim group commends woman lawmaker for moving resolution against India
भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम समूह ने भारत के खिलाफ प्रस्ताव पेश करने के लिए महिला सांसद की सराहना की
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Published : Jun 24, 2022, 10:52 AM IST

वाशिंगटन: अमेरिका के एक मुस्लिम संगठन 'इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल' (आईएएमसी) ने डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर की प्रतिनिधि सभा में एक ऐसा प्रस्ताव पेश करने के लिए सराहना की है, जिसमें कथित तौर पर अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के लिए भारत की आलोचना की गई है.

अमेरिकी सांसद रशीदा तालिब और जुआन वर्गास द्वारा सह-प्रायोजित, प्रस्ताव में विदेश मंत्रालय से अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया गया है, और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत को विशेष चिंता वाला देश (सीपीसी) घोषित करने की मांग की गई है.

विदेश मंत्रालय यूएससीआईआरएफ की अनुशंसाओं को मानने के लिए बाध्य नहीं है और पिछले कई वर्षों में कई प्रशासनों ने इसकी अनुशंसाओं को कोई खास तवज्जो नहीं दी है. आईएएमसी ने एक बयान जारी करके उमर और दो अन्य सांसदों की इस प्रस्ताव को पेश करने के लिए सराहना की है.

संगठन के अध्यक्ष सैयद अफजल अली ने कहा, 'यह देखना दुखद है कि जिस देश से हम प्यार करते है वह अपने सबसे कमजोर नागरिकों के साथ भेदभाव कर रहा है और कट्टरता, असहिष्णुता के मार्ग पर चल रहा है.' हालांकि, इस तरह के प्रस्ताव के पारित होने की उम्मीद न के बराबर है, खासतौर पर सांसद उमर के प्रतिशोधी रुख को देखते हुए.

उन्होंने कई मौकों पर भारत के मुद्दे पर पाकिस्तानी अधिकारियों का खुलकर साथ दिया है. भारत से जुड़ी कांग्रेस की कई सुनवाइयों में भी उमर ने लगातार भारत विरोधी रुख दिखाया है. उमर का प्रस्ताव भारत में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निंदा करता है, जिसमें मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों, आदिवासियों और अन्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को ‘लक्षित’ करना शामिल है.

इसमें भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ 'खराब सलूक' पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है. इससे पहले भारत ने धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट में उसकी आलोचना को खारिज करते हुए कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी ‘वोट बैंक की राजनीति' की जा रही है.

ये भी पढ़ें- अमेरिकी नागरिकों को बंदूक रखने का मौलिक अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत पर यह रिपोर्ट 'पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है.' इससे पहले, अमेरिकी सांसद इल्हान अब्दुल्ला उमर ने अप्रैल में पाकिस्तान की यात्रा की थी और पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान सहित देश के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी. वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) भी गईं थी. इस यात्रा का मकसद अभी तक पता नहीं चल पाया है.

भारत ने उमर की पीओके यात्रा की निंदा करते हुए कहा था कि इस क्षेत्र की उनकी यात्रा ने देश की संप्रभुता का उल्लंघन किया है और यह उनकी ‘संकीर्ण मानसिकता’ वाली राजनीति को दर्शाता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, 'अगर कोई अपने देश में ऐसी संकीर्ण मानसिकता वाली राजनीति करता है, तो उससे हमें कोई मतलब नहीं है. किन्तु अगर कोई इस क्रम में हमारी क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता का उल्लंघन होता है, यह हमसे जुड़ा मामला बन जाता है. यह यात्रा निंदनीय है.'

(पीटीआई-भाषा)

वाशिंगटन: अमेरिका के एक मुस्लिम संगठन 'इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल' (आईएएमसी) ने डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर की प्रतिनिधि सभा में एक ऐसा प्रस्ताव पेश करने के लिए सराहना की है, जिसमें कथित तौर पर अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के लिए भारत की आलोचना की गई है.

अमेरिकी सांसद रशीदा तालिब और जुआन वर्गास द्वारा सह-प्रायोजित, प्रस्ताव में विदेश मंत्रालय से अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया गया है, और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत को विशेष चिंता वाला देश (सीपीसी) घोषित करने की मांग की गई है.

विदेश मंत्रालय यूएससीआईआरएफ की अनुशंसाओं को मानने के लिए बाध्य नहीं है और पिछले कई वर्षों में कई प्रशासनों ने इसकी अनुशंसाओं को कोई खास तवज्जो नहीं दी है. आईएएमसी ने एक बयान जारी करके उमर और दो अन्य सांसदों की इस प्रस्ताव को पेश करने के लिए सराहना की है.

संगठन के अध्यक्ष सैयद अफजल अली ने कहा, 'यह देखना दुखद है कि जिस देश से हम प्यार करते है वह अपने सबसे कमजोर नागरिकों के साथ भेदभाव कर रहा है और कट्टरता, असहिष्णुता के मार्ग पर चल रहा है.' हालांकि, इस तरह के प्रस्ताव के पारित होने की उम्मीद न के बराबर है, खासतौर पर सांसद उमर के प्रतिशोधी रुख को देखते हुए.

उन्होंने कई मौकों पर भारत के मुद्दे पर पाकिस्तानी अधिकारियों का खुलकर साथ दिया है. भारत से जुड़ी कांग्रेस की कई सुनवाइयों में भी उमर ने लगातार भारत विरोधी रुख दिखाया है. उमर का प्रस्ताव भारत में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निंदा करता है, जिसमें मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों, आदिवासियों और अन्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को ‘लक्षित’ करना शामिल है.

इसमें भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ 'खराब सलूक' पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है. इससे पहले भारत ने धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट में उसकी आलोचना को खारिज करते हुए कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी ‘वोट बैंक की राजनीति' की जा रही है.

ये भी पढ़ें- अमेरिकी नागरिकों को बंदूक रखने का मौलिक अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत पर यह रिपोर्ट 'पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है.' इससे पहले, अमेरिकी सांसद इल्हान अब्दुल्ला उमर ने अप्रैल में पाकिस्तान की यात्रा की थी और पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान सहित देश के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी. वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) भी गईं थी. इस यात्रा का मकसद अभी तक पता नहीं चल पाया है.

भारत ने उमर की पीओके यात्रा की निंदा करते हुए कहा था कि इस क्षेत्र की उनकी यात्रा ने देश की संप्रभुता का उल्लंघन किया है और यह उनकी ‘संकीर्ण मानसिकता’ वाली राजनीति को दर्शाता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, 'अगर कोई अपने देश में ऐसी संकीर्ण मानसिकता वाली राजनीति करता है, तो उससे हमें कोई मतलब नहीं है. किन्तु अगर कोई इस क्रम में हमारी क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता का उल्लंघन होता है, यह हमसे जुड़ा मामला बन जाता है. यह यात्रा निंदनीय है.'

(पीटीआई-भाषा)

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