लंदन : जलियांवाला बाग नरसंहार कांड की बरसी के मौके पर औपचारिक माफी की मांग को लेकर ब्रिटिश सरकार ने मंगलवार को इस पर विचार करने के लिए ‘वित्तीय मुश्किलों’ के तथ्य को भी ध्यान में रखने को कहा. जलियांवाला बाग नरसंहार के इस हफ्ते 100 साल पूरे हो रहे हैं.
ब्रिटिश विदेश मंत्री मार्क फील्ड ने ‘जलियांवाला बाग नरसंहार’ पर हाउस ऑफ कामंस परिसर के वेस्टमिंस्टर हॉल में आयोजित बहस में भाग लेते हुए कहा कि हमें उन बातों की एक सीमा रेखा खींचनी होगी जो इतिहास का ‘शर्मनाक हिस्सा’ हैं. ब्रिटिश राज से संबंधित समस्याओं के लिए बार-बार माफी मांगने से अपनी तरह की दिक्कतें सामने आती हैं.
फील्ड ने कहा कि वह ब्रिटेन के औपनिवेशिक काल को लेकर थोड़े पुरातनपंथी हैं और उन्हें बीत चुकी बातों पर माफी मांगने को लेकर हिचकिचाहट होती है.
उन्होंने कहा कि किसी भी सरकार के लिए यह चिंता की बात हो सकती है वह माफी मांगे. इसकी वजह यह भी हो सकती माफी मांगने में वित्तीय मुश्किलें भी हो सकती हैं.
गौरतलब है कि ब्रिटेन सरकार ने 20 फरवरी को कहा था कि ब्रिटिशराज के दौरान जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए औपचारिक माफी की मांग पर वह विचार कर रहा है.
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हजारों लोग रोलेट एक्ट और राष्ट्रवादी नेताओं सत्यपाल एवं डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे. तभी जनरल रेजीनल्ड डायर ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओड्वायर के आदेश पर अंधाधुंध गोलीबारी कर इनमें से सैकड़ों को मौत की नींद सुला दिया था.
कांग्रेस की उस समय की रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में कम से कम 1,000 लोग मारे गए और 2,000 के करीब घायल हुए. पार्क में लगी पट्टिका पर लिखा है कि लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए बाग में स्थित कुएं में छलांग लगा दी. अकेले इस कुएं से ही 120 शव बरामद हुए.